भारत और इंग्लैंड
के बीच टेस्ट सीरीज शुरु होने से पहले इसे बदले की सीरीज कहा जा रहा था क्योंकि
2011 में इंग्लैंड के दौरे पर गई टीम इंडिया को अंग्रेजों ने टेस्ट सीरीज में 4-0
से करारी मात दी थी। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को उम्मीद थी कि भारत अंग्रेजों को
4-0 से मात देकर 2011 की हार का बदला ले लेगा। सीरीज शुरु हुई तो अहमदाबाद टेस्ट
में भारत की 9 विकेट से जीत के बाद ये लगने भी लगा था। लेकिन मुंबई में लय में
लौटे अंग्रेजों ने भारत को 10 विकेट से करारी मात देकर न सिर्फ सीरीज में जोरदार
वापसी की बल्कि भारतीय खिलाड़ियों की अहमदाबाद जीत की खुमारी भी उतार दी। कोलकाता
में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला और अंग्रेजों ने भारत को 7 विकेट से हराकर सीरीज
में 2-1 की बढ़त बना ली जो निर्णायक भी साबित हुई। पुजारा पहले और दूसरे टेस्ट मैच
में तो दीवार बने लेकिन बाद के दो टेस्ट मैच में अंग्रेजों ने पुजारा का भी तोड़
ढ़ूंढ लिया। नागपुर टेस्ट में कोहली और धोनी का बल्ले की खामोशी तो टूटी लेकिन तब
तक बहुत देर हो चुकी थी और अंग्रेज भारत के सीरीज जीतने के सपने को चकनाचूर कर चुके
थे। भारतीय गेंदबाज स्पिन खेलने में परांगत कहे जाते हैं लेकिन पूरी सीरीज में यही
भारतीय बल्लेबाज अपने घर में ही अंग्रेज स्पिनरों के आगे घुटने टेकते नजर आए। पूरी
सीरीज में सिर्फ दो अंग्रेज स्पिनरों ने भारतीय बल्लेबाजों पर कैसे नकेल कसी इसका
अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि पनेसर और स्वान ने मिलकर सीरीज के 4
टेस्ट मैचों में 37 विकेट झटके जिसमें
से स्वान ने 4 मैचों में 20 तो पनेसर ने 3 मैच में 17 विकेट झटके। यानि कि स्पिन
गेंदबाजों को खेलने में महारत हासिल रखने वाले भारतीय बल्लेबाज स्वान और पनेसर की फिरकी
में ऐसे उलझे की एक के बाद एक पवेलियन लौटते चले गए। सिर्फ दो स्पिन गेंदबाजों ने
ही भारतीय टीम की वॉट लगा के रख दी। बाउंस होती विदेशी पिचों पर भारतीय बल्लेबाज
सीमर्स को नहीं खेल पाते ये तो समझ में आता था लेकिन अपने ही देश में घरेलु
परिस्थितियों में फिरकी में उलझ जाना ये समझ से परे है। स्वान और पनेसर के अलावा
तेज गेंदबाज एंडरसन के आगे भी भारतीय बल्लेबाज संघर्ष करते नजर आए। हालांकि एंडरसन
4 टेस्ट मैच में सिर्फ 12 ही विकेट ले सके लेकिन अंग्रेजों की जीत में एंडरसन की
भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्वान, पनेसर और एंडरसन ने पूरी सीरीज में
49 विकेट लेकर 28 साल बाद भारत में अपनी टीम की सीरीज जीत की पटकथा लिख दी थी।
जबकि भारत के 5 फिरकी गेंदबाज ओझा, अश्विन, हरभजन, चावला और जडेजा पूरी सीरीज में अंग्रेजों
के सिर्फ 43 विकेट ही ले सके। भारतीय बल्लेबाज जिस पिच पर ताश के पत्तों की तरह
ढ़हते नजर आए उसी पिच पर अंग्रेज बल्लेबाजों ने जिस तरह बल्लेबाजी कि उसकी जितनी
तारीफ की जाए कम है। खासकर अंग्रेज कप्तान कुक ने पूरी सीरीज में जो बल्लेबाजी की वो
वाकई में दर्शनीय थी। हालांकि पीटरसन, ट्राट, कॉम्पटन और बेल ने भी जरूरत के वक्त
अपने बल्ले की चमक बिखेरी और इंग्लैड का भारत में 28 साल बाद सीरीज जीतने के सपने
को पूरा किया। कुल मिलाकर देखा जाए तो अंग्रेज खिलाड़ियों ने एक संगठित टीम की तरह
खेल दिखाया औऱ सभी खिलाड़ियों ने हर मैच में अपना पूरा योगदान दिया...और नतीजा
सबके सामने हैं...जबकि भारतीय टीम में ये कमी साफ तौर पर नजर आई। भारत की हार के
बाद आलोचनाओं का बाजार गर्म है और टीम के पोस्टमार्टम के साथ ही धोनी की कप्तानी
पर भी सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि चयनकर्ताओं को अपने चयन
पर सोचने के साथ ही कुछ कड़े फैसले लेने का साहस जुटाना चाहिए ताकि ये मिथक टूटे
की भारतीय चयनकर्ता खिलाड़ी के प्रदर्शन नहीं बल्कि खिलाड़ी के कद को देखकर टीम का
चयन करते हैं। साथ ही हर खिलाड़ी को अपने प्रदर्शन का आत्म अवलोकन करना चाहिए कि
क्या वाकई में उसने अपने नाम के अनुरुप प्रदर्शन किया है ?
deepaktiwari555@gmail.com
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