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27.1.20

साईं बाबा : न पाथरी के न शिरडी के,वे तो सबके हैं


कृष्णमोहन झा

महाराष्ट्र में जब से शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं कांग्रेस की महा विकास आघाडी सरकार के हाथों में सत्ता की बागडोर आई है, तब से रोज नए विवादों के जन्म लेने का सिलसिला थम नहीं रहा है। अब इन विवादों की पहुंच उन क्षेत्रों तक भी हो गई है ,जो वर्षों से लोगों की आस्था और श्रद्धा के केंद्र बने हुए है। पिछले दिनों इसी तरह का एक अनावश्यक विवाद करोड़ों लोगों की आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र शिरडी को लेकर निर्मित हुआ है, जो साईं बाबा की तपस्थली के रूप में सारे विश्व में विख्यात हैं। साईं बाबा की समाधि के दर्शन हेतु प्रतिदिन यहां पचास हजार से अधिक लोग आते हैं और यह संख्या अवकाश के दिनों में तथा नव वर्ष , रामनवमी, गुरुपूर्णिमा तथा विजयदशमी के शुभ अवसर पर लाखों की संख्या को पार कर जाती है।

 साईं बाबा के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले इन लाखों, करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए शिर्डी एक तीर्थ स्थल है। शिर्डी और साईं बाबा एक दूसरे के पर्याय है। शिर्डी साईं बाबा की है और साईं बाबा केवल शिर्डी के हैं। बाबा के श्रद्धालुओं के इस विश्वास को विगत दिनों शिवसेना के सुप्रीमो और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की घोषणा से गहरी चोट पहुंची कि महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव को साईं बाबा की जन्म स्थली के रूप में विकसित करने हेतु सरकार 100 करोड़ रुपये का अनुदान देगी। शिर्डी को तीर्थ मानने वाले बाबा के भक्तों और शिर्डी के निवासियों ने यह कहते हुए मुख्यमंत्री की घोषणा पर कड़ा एतराज जताया कि साईं बाबा ने अपने जीवन काल में कभी अपने जन्म स्थान अथवा अपने धर्म के बारे में अधिकृत रूप से कुछ नहीं बताया। वह हमेशा कहा करते थे कि सबका मालिक एक । जब बाबा ने खुद अपने जन्म स्थान के बारे में कुछ नहीं बताया तो सरकार पाथरी को उनकी जन्मस्थली के रूप में विकसित करने का इतना बड़ा फैसला अपने स्तर पर कैसे ले सकती है। शिर्डी वासियों का कहना था कि सरकार पाथरी के विकास हेतु 100 करोड नहीं बल्कि 200 करोड़ दे ,परंतु बाबा तो शिर्डी के ही रहेंगे। शिर्डी और बाबा को अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

उद्धव ठाकरे की घोषणा ने शिर्डी वासियों को इतना उत्तेजित कर दिया कि उसका विरोध करने के लिए शिर्डी और आसपास के 25 से अधिक गांव में अनिश्चितकालीन बंद का फैसला कर लिया गया। उद्धव ठाकरे को शिर्डी वासियों के इस विरोध का अंदेशा नहीं था ,इसलिए विरोध बढ़ने पर उन्हें शिर्डी एवं पाथरी गांव के निवासियों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाने पर विवश होना पड़ा, जिससे इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके। दोनों पक्षों की बैठक में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह फैसला किया कि पाथरी का विकास करने हेतु सरकार 100 करोड़ के अनुदान की घोषणा पर कायम रहेगी, परंतु इसे बाबा की जन्म स्थली के रूप में विकसित नहीं किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से अनावश्यक विवाद का पटाक्षेप हो गया और अब सभी ने राहत की सांस ली है। शिर्डी में भी पहले की तरह जनजीवन और कारोबार सामान्य हो गया। गौरतलब है कि बंद के दौरान भी समाधि मंदिर एवं प्रसादालय खुले थे ,ताकि साईं भक्तों को बाबा के दर्शनों एवं प्रसाद ग्रहण करने में कोई अड़चन का सामना ना करना पड़े। बंद के दौरान उन होटलों में भक्तों को ठहरने की सुविधा प्रदान की गई, जहां पहले से कमरे बुक हो चुके थे। एयरपोर्ट से मंदिर तक टैक्सी सेवा भी पूर्ववत चालू रही। यद्यपि वहां की दुकानें और अन्य कारोबार ठप रहने से श्रद्धालुओं को कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा।

 पूर्व विधायक एवं ग्राम सभा के मंत्री राम कृष्ण विखे पाटील ने भी मुख्यमंत्री की घोषणा का विरोध किया था। उनका कहना था देश विदेश में साईं बाबा के अनेक मंदिर हैं और पाथरी का मंदिर भी उसी का एक हिस्सा है ,परंतु बाबा के जन्म स्थान के रूप में उसे मान्यता नहीं दी जा सकती है। शिवसेना के एक सांसद ने भी पाथरी को साईं बाबा की जन्म स्थली घोषित करने के फैसले का विरोध करते हुए बंद का समर्थन किया था। दूसरी और महाराष्ट्र की महा विकास आघाडी सरकार के एक घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता दुर्रानी अब्दुल्ला खान ने दावा किया था कि उनके पास साईं की जन्मस्थली पाथरी के होने के पर्याप्त सबूत है। यह सच जो जानते हैं ,वह शिर्डी के साथ पाथरी में भी बाबा के दर्शन करते हैं। पाथरी को बाबा की जन्म स्थली बताने वाले उनके भक्तों ने कहा कि उनके पास अपने दावे को सही साबित करने के लिए 29 सबूत है। इसके जवाब में शिर्डी वासियों की ओर से कहा गया कि हमारे पास भी अपने इस दावे को सही साबित करने के लिए 30 सबूत है कि बाबा की जन्मस्थली के रूप में पाथरी को मान्यता नहीं देगा दी जा सकती। बाबा केवल शिर्डी के हैं।

दरअसल यह विवाद कोई नया नहीं है। इसके पहले महाराष्ट्र में 2005 में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की संयुक्त सरकार के कार्यकाल में भी पाथरी में साईं बाबा के जन्म उत्सव के आयोजन को एन वक्त पर रद्द करना पड़ा था। उक्त आयोजन में तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और कई प्रमुख हस्तियों के आने की कार्य का कार्यक्रम भी तय हो चुका था, परंतु कोपरगांव के रहता न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए उक्त आयोजन पर रोक लगा दी थी। यह याचिका साईं बाबा के जीवन काल में शिर्डी में उनकी सेवा सुश्रुषा करने वाली लक्ष्मीबाई की पोती शैलजा के बेटे अरुण गायकवाड ने दायर की थी,  जिसमें पाथरी में साईं बाबा के जन्म उत्सव के आयोजन का विरोध किया गया था। न्यायालय ने अरुण गायकवाड के पक्ष में फैसला सुनाया था और इसके बाद पाथरी में साईं के जन्म उत्सव का आयोजन रद्द कर दिया गया था। उसके बाद से यह विवाद कभी नहीं उठा।

यद्यपि पाथरी से साईं बाबा की जन्म स्थली के दावे जब तक किए जाते रहे हैं ,परंतु विगत दिनों यह विवाद इसलिए पुनः गर्मा उठा क्योंकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पाथरी को विकसित करने हेतु 100 करोड रुपए के अनुदान की घोषणा कर दी। दरअसल उद्धव ठाकरे ने यह घोषणा हाल ही में तब की थी ,जब इस गांव के निवासियों ने हेमाडपंत दमोलकर कर द्वारा लिखित साईं सतचरित्र के आठवें संस्करण में प्रकाशित एक जानकारी के आधार पर इस तरह की मांग की गई। इस जानकारी के अनुसार पाथरी गांव को ही साईं की जन्मस्थली बताया गया है। इसके जवाब में के साई भक्तों ने कहा था कि 1984 से 1989 के दौरान साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट के सदस्य रहे विश्वास खेर और सीताराम धानु ने गुपचुप तरीके से साईं सतचरित्र नए संस्करण में पाथरी का नाम साईं बाबा के जन्म स्थान के रूप में दर्ज करवा दिया था। वे दोनों वास्तव मे पाथरी गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए उनकी रुचि पाथरी को साईं बाबा की प्रचारित करने में थी। वे शायद यह चाहते थे कि प्रतिवर्ष शिर्डी आने वाले लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र पाथरी बन जाए, परंतु शिर्डी वासियों के भारी विरोध के कारण यह संभव नहीं हो सका। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अब पाथरी को साईं बाबा के जन्म स्थान के रूप में विकसित करने की अपनी घोषणा वापस ले ली है। इसलिए यह अनावश्यक विवाद भी शांत पड़ गया है, जो अतीत में भी जन्म ले चुका है। अतः अब उम्मीद यही की जाती है कि अब यह विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।

krishanmohan jha

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