CHARAN SINGH RAJPUT
नई दिल्ली। देश में अपनी बात रखने और विभिन्न मुद्दों पर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए भले ही जंतर-मंतर को जाना जाता हो पर आज की तारीख में सीएए के विरोध में शाहीन बाग में हो रहे आंदोलन ने जो मुकाम हासिल किया है वह जंतर-मंतर को पीछे छोड़ता प्रतीत हो रहा है। गणतंत्र दिवस में जिस तरह से वहां पर सीएए के विरोधियों की भीड़ उमड़ी और गणतंत्र दिवस मनाया उसने मोदी सरकार द्वारा मनाए जा रहे गणतंत्र दिवस को भी पीछे छोड़ दिया। भले ही राजपथ पर देश की आन-बान-शान में विभिन्न झांकियां निकाली गईं हों पर शाहीन बाग के गणतंत्र दिवस समारोह ने न केवल देश बल्कि विदेश का भी ध्यान अपनी ओर खींचा।
भले ही भाजपा आईटी सेल के 500-500 रुपये देकर आंदोलन में भीड़ इकट्ठी करने की बात बात की जा रही हो पर शाहीन बाग आंदोलन ने जो मुकाम हासिल किया है, उसे पैसे की भीड़ नहीं कहा जा सकता है। सत्ता पक्ष के शाहीन बाग आंदोलन पर बोलने का मतलब ही यह है कि शाहीन बाग आंदोलन से सरकार में बेचैनी है। अब तक तो भाजपा के दूसरी लाइन के नेता ही इस आंदोलन पर उंगली उठा रहे थे अब तक खुद कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद भी शाहीन बाग आंदोलन से बच्चों को स्कूल जाने में असुविधा होने की बात कर आंदोलन को कांग्रेस और आप से जोड़ रहे हैं। भले ही भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी इस आंदोलन को कानून से खिलवाड़ करने की बात कर रहे हों पर बिना किसी नेता के चल रहे इस आंदोलन ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। यह आंदोलन का प्रभाव ही है कि सीएए के विरोध में देश में विभिन्न शहरों में चल रहे महिलाओं के आंदोलन को दूसरे शाहीन बाग के नाम से पुकारा जाने लगा है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के विरोध में जब जंतर-मंतर पर आवाज बुलंद हुई तो एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण का हवाला देते हुए वहां पर आंदोरन कर रहे आंदोलनकारियों को हटवा दिया। साथही पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का भी हवाला दिया। कई महीने तक जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन नहीं हुए। हां संसद रोड पर कुछ आंदोलन हुए पर जंतर-मंतर पर वीरानी छा गई थी। पूर्व सैनिकों के साथ ही कई संगठनों ने इसके विरोध में अदालती लड़ाई लड़ी। जीत आंदोलनकारियों की हुई पर दिल्ली पुलिस के किसी भी धरना-प्रदर्शन के लिए एक ही दिन की अनुमति देने की परिपाटी अपना लेने पर जंतर-मंतर पर आंदोलन का माहौल नहीं बन पाया। कुल मिलाकर एक योजना के तहत मतलब मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलनकारियों को जमने नहीं दिया गया। हां सीएए के विरोध में शाहीनबाग में जो महिलाओं ने माहौल बनाया है उसने किसी समय जंतर-मंतर पर होने वाले आंदोलनों को भी फीका साबित कर दिया है।
यह जमीनी हकीकत है कि शाहीनबाग आंदोलन मोदी सरकार के लिए एक बड़ी आफत बनता जा रहा है। यदि मोदी सरकार आंदोलन को जेएनयू, जामिया की तरह कुचलवाती है तो उसे यह डर सता रहा है कि आंदोलन में महिलाएं ही महिलाएं हैं। महिलाएं भी वो जो सीएए केविरोध में सब कुछ दांव पर लगाने के लिए बैठी हैं। इस आंदोलन की यह खासियत है कि जहां वहां पर नमाज पढ़ी जा रही है वहीं यज्ञ भी हो रहे हैं। भले ही पुलिस द्वारा भंडारे की व्यवस्था करने वाले हलवाईयों को गिरफ्तार कर लिया गया खाने की व्यवस्था को वह विफल नहीं कर पाई है। यह आंदोलन का वजूद ही है कि सत्ता पक्ष के लोग अब आंदोलन को बदनाम करने में लग गये हैं। सत्ता पक्ष की ओर से देश और विदेश से बड़े स्तर पर शाहीन बाग आंदोलन को फंडिंग करने का आरोप लगाया जा रहा है। इस आंदोलन ने यह पहचान बनाई कि लोग आंदोलन देखने ही जाने लगे हैं। न केवल देश बल्कि विदेश का मीडिया भी इस आंदोलन की ओर आकर्षित हुआ है।
दरअसल धारा 370 और राम मंदिर निर्माण के बाद एनआरसी, एनपीआर और सीएए को लेकर मुस्लिमों में एक असुरक्षा का माहौल देखा जा रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी बार-बार देश के मुसलमानों को सीएए से कोई खतरा न होने की बात कर रहे हैं। सीएए में बाहर से आए हिन्दू,-ईसाई, सिखों को राहत देते हुए मुसलमानों को टारगेट करने पर देश के मुसलमान इसे सीधे-सीधे अपने ऊपर हमला मानकर चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंसक आंदोलन की आड़ में योगी सरकार ने मुस्लिम युवाओं को टारगेट बनाया और उनकी संपत्ति जब्त की जा रही है। उससे देश मुस्लिम मोदी सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं। भले ही भाजपा विभिन्न कार्यक्रम चलाकर सीएए के बारे में विपक्ष द्वारा भ्रम फैलाने की बात कर रही हो। लोगों को जागरूक करने की बात की जा रही हो पर इससे मुस्लिमों पर कोई असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। भाजपा के सीएए के समर्थन में चलाए जा रहे अभियान का मुस्लिमों पर इसलिए भी कोई असर नहीं पड़ रहा है क्योंकि भाजपा यह अभियान अपने समर्थकों को ही चला रही है। मतलब जो लोग पहले से ही सीएए के पक्ष में हैं उन्हें ही जागरूक किया जा रहा है। कहना गलत न होगा कि शाहीन बाग आंदोलन मोदी सरकार के लिए गले की हड्डी बन गई है।
नई दिल्ली। देश में अपनी बात रखने और विभिन्न मुद्दों पर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए भले ही जंतर-मंतर को जाना जाता हो पर आज की तारीख में सीएए के विरोध में शाहीन बाग में हो रहे आंदोलन ने जो मुकाम हासिल किया है वह जंतर-मंतर को पीछे छोड़ता प्रतीत हो रहा है। गणतंत्र दिवस में जिस तरह से वहां पर सीएए के विरोधियों की भीड़ उमड़ी और गणतंत्र दिवस मनाया उसने मोदी सरकार द्वारा मनाए जा रहे गणतंत्र दिवस को भी पीछे छोड़ दिया। भले ही राजपथ पर देश की आन-बान-शान में विभिन्न झांकियां निकाली गईं हों पर शाहीन बाग के गणतंत्र दिवस समारोह ने न केवल देश बल्कि विदेश का भी ध्यान अपनी ओर खींचा।
भले ही भाजपा आईटी सेल के 500-500 रुपये देकर आंदोलन में भीड़ इकट्ठी करने की बात बात की जा रही हो पर शाहीन बाग आंदोलन ने जो मुकाम हासिल किया है, उसे पैसे की भीड़ नहीं कहा जा सकता है। सत्ता पक्ष के शाहीन बाग आंदोलन पर बोलने का मतलब ही यह है कि शाहीन बाग आंदोलन से सरकार में बेचैनी है। अब तक तो भाजपा के दूसरी लाइन के नेता ही इस आंदोलन पर उंगली उठा रहे थे अब तक खुद कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद भी शाहीन बाग आंदोलन से बच्चों को स्कूल जाने में असुविधा होने की बात कर आंदोलन को कांग्रेस और आप से जोड़ रहे हैं। भले ही भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी इस आंदोलन को कानून से खिलवाड़ करने की बात कर रहे हों पर बिना किसी नेता के चल रहे इस आंदोलन ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। यह आंदोलन का प्रभाव ही है कि सीएए के विरोध में देश में विभिन्न शहरों में चल रहे महिलाओं के आंदोलन को दूसरे शाहीन बाग के नाम से पुकारा जाने लगा है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के विरोध में जब जंतर-मंतर पर आवाज बुलंद हुई तो एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण का हवाला देते हुए वहां पर आंदोरन कर रहे आंदोलनकारियों को हटवा दिया। साथही पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का भी हवाला दिया। कई महीने तक जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन नहीं हुए। हां संसद रोड पर कुछ आंदोलन हुए पर जंतर-मंतर पर वीरानी छा गई थी। पूर्व सैनिकों के साथ ही कई संगठनों ने इसके विरोध में अदालती लड़ाई लड़ी। जीत आंदोलनकारियों की हुई पर दिल्ली पुलिस के किसी भी धरना-प्रदर्शन के लिए एक ही दिन की अनुमति देने की परिपाटी अपना लेने पर जंतर-मंतर पर आंदोलन का माहौल नहीं बन पाया। कुल मिलाकर एक योजना के तहत मतलब मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलनकारियों को जमने नहीं दिया गया। हां सीएए के विरोध में शाहीनबाग में जो महिलाओं ने माहौल बनाया है उसने किसी समय जंतर-मंतर पर होने वाले आंदोलनों को भी फीका साबित कर दिया है।
यह जमीनी हकीकत है कि शाहीनबाग आंदोलन मोदी सरकार के लिए एक बड़ी आफत बनता जा रहा है। यदि मोदी सरकार आंदोलन को जेएनयू, जामिया की तरह कुचलवाती है तो उसे यह डर सता रहा है कि आंदोलन में महिलाएं ही महिलाएं हैं। महिलाएं भी वो जो सीएए केविरोध में सब कुछ दांव पर लगाने के लिए बैठी हैं। इस आंदोलन की यह खासियत है कि जहां वहां पर नमाज पढ़ी जा रही है वहीं यज्ञ भी हो रहे हैं। भले ही पुलिस द्वारा भंडारे की व्यवस्था करने वाले हलवाईयों को गिरफ्तार कर लिया गया खाने की व्यवस्था को वह विफल नहीं कर पाई है। यह आंदोलन का वजूद ही है कि सत्ता पक्ष के लोग अब आंदोलन को बदनाम करने में लग गये हैं। सत्ता पक्ष की ओर से देश और विदेश से बड़े स्तर पर शाहीन बाग आंदोलन को फंडिंग करने का आरोप लगाया जा रहा है। इस आंदोलन ने यह पहचान बनाई कि लोग आंदोलन देखने ही जाने लगे हैं। न केवल देश बल्कि विदेश का मीडिया भी इस आंदोलन की ओर आकर्षित हुआ है।
दरअसल धारा 370 और राम मंदिर निर्माण के बाद एनआरसी, एनपीआर और सीएए को लेकर मुस्लिमों में एक असुरक्षा का माहौल देखा जा रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी बार-बार देश के मुसलमानों को सीएए से कोई खतरा न होने की बात कर रहे हैं। सीएए में बाहर से आए हिन्दू,-ईसाई, सिखों को राहत देते हुए मुसलमानों को टारगेट करने पर देश के मुसलमान इसे सीधे-सीधे अपने ऊपर हमला मानकर चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंसक आंदोलन की आड़ में योगी सरकार ने मुस्लिम युवाओं को टारगेट बनाया और उनकी संपत्ति जब्त की जा रही है। उससे देश मुस्लिम मोदी सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं। भले ही भाजपा विभिन्न कार्यक्रम चलाकर सीएए के बारे में विपक्ष द्वारा भ्रम फैलाने की बात कर रही हो। लोगों को जागरूक करने की बात की जा रही हो पर इससे मुस्लिमों पर कोई असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। भाजपा के सीएए के समर्थन में चलाए जा रहे अभियान का मुस्लिमों पर इसलिए भी कोई असर नहीं पड़ रहा है क्योंकि भाजपा यह अभियान अपने समर्थकों को ही चला रही है। मतलब जो लोग पहले से ही सीएए के पक्ष में हैं उन्हें ही जागरूक किया जा रहा है। कहना गलत न होगा कि शाहीन बाग आंदोलन मोदी सरकार के लिए गले की हड्डी बन गई है।
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