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26.12.08

कहाँ गई वो दिल की भडास ?


ये अचानक भडासी परिवार को क्या हो गया ?

मैं रोज ही एक बार यहाँ अवश्य झाँक जाता हूँ , किंतु निराशा होती है .........

ढेर सारी खिन्नता भी ! कोई विचार नहीं .....कोई सार्थक लेखन नहीं !

जब कोई मुद्दा ही नहीं तो बहस कहाँ से होगी ?

कहाँ गई वो दिल की भडास ?

वाद - प्रतिवाद की जगह गाली - गलौज, खुन्नसबाजी, और निरर्थक लेखन !

संत रैदास, जीसस, संत नामदेव, तैलंग स्वामी, गीता सार, कबीर.............

क्या यही सब पढने को मिलेगा अब ?

5 comments:

Prakash Badal said...

ख़ामोशी भी कभी-कभी बहुत कुछ कह देती है। जब लोग लिखेंगे तो कमाल कर देंगे। उन्हें कुछ देर खामोश रहने दीजिए अगर वे रहना चाहते हैं तो!

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

प्रकाश भाईसाहब मैं बिना किसी संदेह के आपकी बात से सहमत हूं कि भड़ास का मूल दर्शन इस पन्ने से लगता है विदा हो गया है लेकिन जो भी पवित्र-पवित्र सा लेखन है वह यदि लेखक के मन की भड़ास ही है तो उसमें भी मजा है मेरे जैसे लोग परेशान न हों क्योंकि तैतीस करोड़ तो हिंदुओं के देवी-देवता है और फिर यहां तो मुस्लिम इसाई सिख वगैरह सभी समेट लिये गए हैं तो दुनिया के नष्ट होने तक पर्याप्त मसाला है लिखने के लिये:)खबरदार यदि वाद-विवाद करा तो सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी:(
आनंद मनाइये
जय जय भड़ास

Anonymous said...

भाई,
भड़ास हो दिल में और उसे आप निकालें तो नए विचार और आयाम आते हैं, प्रतिक्रया को वापस बोरे में बंद करके आपको भेज दिया जाए तो बेहतर है कि अपना बोरा अपने पास ही रखो, इस्वर अल्लाह जीसस और धर्म गुरु के नाम पर चुतियापा की रोटी सेंकने वालों कि कमी नही और भडासी इन चूतियों की मारने में विश्वास रखता है मगर अब आप चुतिओं कि नही मार सकते, प्रतिबंधित है और प्रतिबंद में तो हम साँस भी नही लेते मारने कि बात तो अलग है.
हुजूम में रहना हमें पसनद नही, हुजूम के साथ चलना हमें पसंद नही, हमारी विचारधारा आपको पसंद नही तो राम राम. मगर हम मारेंगे जरूर.
जय जय भड़ास.

कुमार संभव said...

भाई मेरे डर का अंदाजा इसी बात से लगा लो की यहाँ कमेन्ट लिखते हुए भी अब डर लगता है. दुष्यंत ने कहा था ...

मेरे दिल के किसी कोने में मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है

भड़ास अब बड़ों की दुनिया होते जा रही है .

प्रकाश गोविंद said...

यहाँ बात पवित्र लेखन की नहीं है ......
बात सार्थक लेखन की है , मुद्दों की है,
अपनी बात को दो टूक खरी-खरी कहने की है !!

हाँ ये सही है कि मै स्वयं को चार्वाक दर्शन के करीब पाता हूँ लेकिन मेरा किसी भी आस्तिक से कोई विरोध नहीं है !
मुझे शिकायत है उन लोगों से जो अपना चूतियापा दूसरों पर भी थोपते रहते हैं !
आपका दूध अगर गणेश जी ने पिया तो अच्छी बात है ! हमको क्यूँ बता रहे हैं कि आपको कैसा अलौकिक अनुभव हुआ .....कैसे आपके बिगडे काम बन गए ! आप अपनी श्रद्धा अपने तक ही सीमित रखिये न !

और कुमार सम्भव जी आलोचना से घबरा जाए उसे किसी भी तरह के स्रजनात्मक कार्य से दूर रहना चाहिए !
एक बात में तो मैं रूपेश जी की तारीफ करना ही चाहूँगा कि जब लोग एक पोस्ट में उनको गालियाँ दे रहे थे उन्होंने वो भी स्वीकार कर ली , जबकि अगर वो चाहते तो आसानी से उसे प्रकाशित होने से रोक सकते थे ! उन्होंने गालियाँ खाना स्वीकार किया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन नहीं किया !

वैसे मेरा मानना है कि आजकल गालियों से भी शख्शियत संवारती है !