जिन्दगी यूँ ही गुजर जाती तो क्या बात थी
तेरे क़दमों में ठहर जाती तो क्या बात थी
यूँ तो उसका चेहरा किसी नूर से कम नहीं,
कुछ और निखर जाती तो क्या बात थी
कौन डूबता है घुटनों घुटनों पानी में,
इक और लहर आ तो क्या बात थी
तू बात करती थी अक्सर जिस शाम की,
इन आंखों में उतर जाती तो क्या बात थी
वो जा रही थी मौसम बदलने से पहले
जरा सा और ठहर जाती तो क्या बात थी।
22.12.08
मेरी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment