वह मासूम छात्रा उन दारिंदों के हाथ का खिलौना बन कर रह गयी
भाई यशवन्त, पेशे से पत्रकार हूं लेकिन जो आप को भेज रहा हूं उसे छाप नहीं सकता। न छाप पाने की वजह से भारी कुण्ठा में हूं। वैसे भी किसी भी संवेदनशील और जागरूक व्यक्ति को हिला कर रख देने वाली है यह घटना। पूरा मामला जानने के बाद आप भी हिल जायेंगे और शायद सारे भडासी भी। इसलिये आपसे अनुरोध भी है और आपको चुनौती भी। इस पूरे विवरण को अपने ब्लाग पर लाकर भडासियों की एक मुहीम खडी करने की।
मेरे शहर गोरखपुर में एक प्रतिष्ठित विद्यालय है। शैक्षिक सत्र की शुरुआत होने पर उसमें अपने बच्चों को दाखिला दिलाने के लिये जबरदस्त मारामारी होती है। उसी विद्यालय में पिछले दिनों एक सनसनीखेज घटना हुई। उस विद्यालय में सांतवीं कक्षा में पढने वाली एक छात्रा ने खुदकुशी कर ली।
बताते हैं कि विद्यालय में अंग्रेजी पढाने वाले एक शिक्षक ने कुछ छात्रों के साथ मिल कर उस छात्रा का एमएमएस तैयार किया। इसके लिये उन्होंने अश्लील फिल्म में उसकी तस्वीर जोड दी और उसे यू ट़यूब में डाल दिया। इतना ही नहीं छात्रों और अंग्रेजी शिक्षक ने उस छात्रा का मनचाहा इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया। वह मासूम छात्रा उन दारिंदों के हाथ का खिलौना बन कर रह गयी। सभी मिल कर उसका मनचाहा इस्तेमला करने लगे। छात्रों के इस गिरोह में सभी बडे परिवरों के बच्चे शामिल थे।
इससे तंग आकर छात्रा ने 6 दिसम्बर 08 को अपने घर के अंदर पंखे से झूल कर खुदकुशी कर ली। सूत्र बताते हैं कि छात्रा ने इस संबंध में सुसाइड नोट भी छोडा था। जिससे छात्रा के परिवार वालों को पूरी बात पता चली। हालांकि परिवार वाले इस मामले में मुंह नहीं खोले। लेकिन दूसरे दिन 7 दिसम्बर 08 को जब विद्यालय के शिक्षक छात्रा के घर पहुंचे तो छात्रा के परिजनों का आक्रोस फूट पडा। उन्होंने शिक्षकों को जम कर धुन दिया।
गौर करने की बात यह है कि इस पूरी घटना के बारे में विद्यालय के हर बच्चे को मालूम है। उस विद्यालय में पढने वाले बच्चे रिक्शे और बसों में इस घटना के बारे में चर्चा करते रहते हैं। बच्चों के माध्यम से यह बात अन्य घरों में भी पहुंच गयी है। अभिभावक सहमे हुये है। खास कर पूरे मामले में विद्यालय के शिक्षक की भूमिका का पता चलने के बाद। लेकिन बच्चों की भविष्य की चिंता की वजह कोई कुछ बोल नहीं रहा है। विद्यालय परिसर में भी इन दिनों अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। मगर छात्रा के परिजन अपनी इज्जत बचाने के लिये कुछ बोल नहीं रहे हैं।
स्थानीय के चलते यह खबर यहां छप नहीं सकती। हालांकि पत्रकार होने की वजह से मैने यह खबर लिखी जरूर है। यदि इस खबर को अपने ब्लाग पर जगह देंगे तो मेरे मन में इस घटना को लेकर पल रही कुंठा निकल जायेगी। आपसे अनुरोध है कि इसे भड़ासियों के बीच लाकर मासूमों के पक्ष में आवाज बुलंद करें। आभारी रहूंगा।
नवनीत
गोरखपुर
16.12.08
पेशे से पत्रकार हूं लेकिन जो आप को भेज रहा हूं उसे छाप नहीं सकता
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11 comments:
भाई, सचमुच यह दिल को झकझोर देने वाली घटना है। मगर अफसोस की स्थानीय मीडिया ने इसे तवज्जो नहीं दी.यह और भी दुखद है। वैसे उस प्रतिष्ठित विद्यालय का नाम क्या है और उस अध्यापक व उसके साथियों का क्या हुआ.अगर बता सकते है तो जरूर बताएंगे। क्या ऐसे कुकर्र्मो को रोकने और समाज की सड़ास बने ऐसे लोगों को सजा दिलाने के लिए हम कुछ नहीं कर सकते? कर सकते है नवनीत भाई। बस हौसला चाहिए।
पता नहीं क्यूँ मैंने आज यहाँ आना था....और यह सब देखना था....बहुत मार्मिक....बहुत विन्दम्बनापूर्ण....बहुत लोमहर्षक है ये सब....और यह सब अब तक का धरती का सबसे सभ्य माना जाने वाला मनुष्य ही यह सब करता है...और हम सब मनुष्य ही यह सब देखने को अभिशप्त......!!?? .....समझ नहीं आता कि करें तो क्या करें....क्यूंकि किसी अभिभावक को भी इस घटना की भयावहता का अंदाजा ही कहाँ है....वे तो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर मुंह तक नहीं खोलते...ये मासूम अभिभावक ये भी तो नहीं जानते कि कल उनके भी बच्चों के साथ वही सम्भव है...!!??
नवनीत भाई, अगर पत्रकार डरने लगे……तब तो कलम की ताकत ही खत्म हो जायेगी। मैं मानता हु, आपकी कुछ मजबुरी होगी। लेकिन काश आप उस मासुम की दर्द को समझ पाते। उस मासुम ने तो अभी तक दुनिया को ढंग से देखा भी नहीं होगा।
मैं आपके इस पोस्ट को अपने ब्लाग पर डाल रहा हु। शायद कोई आगे आये उस मासुम को इंसाफ दिलाने के वास्ते………
भाई स्कूल का नाम तो बताइए, साथ ही हो सके तो टीचर और अमीरजादों के नामों का भी खुलासा कीजिये. आपकी खबर नहीं प्रकाशित हो पाई इसे तो समझ सकता हूँ पर यहाँ भड़ास पर तो आपकी कलम कोई नहीं रोक रहा है तो यहाँ तो उन हराम के पिल्लों के नामों का खुलासा कीजिये.
नवनीत भाई,
बड़ा ही मार्मिक है, और पतित होते हमारे समाज का आइना भी, आपकी व्यथित मनोभावना समझा जा सकता है, विशेष कर पत्रकार होने का दंभ भी संवेदा के आगे ख़तम हो जाता है, आपकी संवेदनशीलता को नमन, और हाँ अगर आप विस्तृत ब्यौरा दें तो मैं इसे आपके हवाले से या अपनी कलम से विस्तार से लोगों के सामने रख सकूं.
भड़ास सिर्फ़ एक मंच नही अपितु सामाजिक, और मानविय भावना का समूह है और अपने आस पास होने वाले तमाम इन जहालातों के ख़िलाफ़ एकमुश्त आवाज में विरोध ही नही करता अपितु कुछ करने को भी तत्पर रहता है.
जय जय भड़ास
नवनीत भाई, इस से पहेले दिल्ली के डी.पी.अस.स्कूल में भी ऐसा कुछ हुआ था.क्या हुआ उस रहिस जादे का .कही पैसा कही इज्जत .यही खेल है
राजीव महेश्वरी
क्यूंकि किसी अभिभावक को भी इस घटना की भयावहता का अंदाजा ही कहाँ है....वे तो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर मुंह तक नहीं खोलते...सही कहा है भुतनाथ जी......
बिल्कुल सही........................
राजीव महेश्वरी
नवनीत जी आपके माध्यम से ह्रदय विदारक घटना मालूम चली ! सभ्य समाज को कलंकित कर देने वाली इस घटना ने मनो-मस्तिष्क को झकझोर के रख दिया !
स्थानीय मीडिया इतनी बड़ी घटना को गंभीरता से क्यूँ नहीं ले रहा है ?
यह बात बहुत अजीब लग रही है ! पूरा मीडिया जगत इस लोमहर्षक घटना पे खामोशी कैसे अख्तियार कर सकता है ?
मैंने अपने 2-3 पत्रकार मित्रों से बात की है वो
भी हैरान हैं !
आप कृपया विस्तृत विवरण देने का प्रयास करें ! अपनी पहचान छुपाकर भी आप यह तो बता ही सकते हैं कि कौन सा स्कूल है ?
स्कूल का प्रबंधन किसके हाथों में है ?
इस शैतानी करतूत में शामिल लोगों के नाम क्या हैं ?
जो छात्र इस घिनौनी करतूत में शामिल रहे हैं उनका सम्बन्ध किस प्रतिष्ठित घरानों से है ?
ऐसी घटनाओं में अक्सर देखा गया है कि पीड़ित पक्ष की खामोशी भी दोषियों का हौसला बढाती है ! जब की ऐसी घटना किसी भी परिवार के साथ हो सकती है ! क्या उस स्कूल में पुलिस महकमें में कार्यरत अधिकारियों अथवा मीडिया कर्मियों के घर का कोई बच्चा नहीं पढता है ?
नवनीत जी, ये वाकई एक गंभीर अपराध घटित हुआ है, क्या उस लड़की के परिवार वालों ने इस बाबत को रिपोर्ट दर्ज नही कराई? क्या उन्हे किसी तरह डराया धमकाया गया है? यदि वे डरे हुए हैं और बकौल आपके मामला सारे क्षेत्र में चर्चा का विषय है, तो वहां का स्थानीय मीडिया, नेता और मानव अधिकार संगठन चुप क्यों हैं?
आप भड़ास के माध्यम से अवश्य ही इस मामले से सभी को अवगत कराते रहें। ये एक गंभीर मामला है और इसकी रिपोर्ट कम से कम पुलिस तक तो पहुंचनी ही चाहिये।
भाई,
मैं आपके दर्द को समझ सकता हूं और उसका सम्मान भी करता हूं। लेकिन, जब खुद ही लड़की के घरवाले इस मसले पर कुछ कहने और अपनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं... तो मेरे हिसाब से ऐसे मामले में ज़्यादा कुछ नहीं हो सकता। घरवालों को अगर अपनी बेटी खोने के बाद अब भी अपनी इज्ज़त जाने का ख़्याल सता रहा है, तो फिर बाहर के लोग क्या कर सकते हैं? दुआ कीजिए कि उन्हें सदबुद्धि मिले। वरना, हमारी और आपकी तमाम कोशिश मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त वाली बात कही जाएगी।
बैनर्जी से सहमत हूं
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