भारत का साठ साल नया लोकतंत्र अब घुटनों के बजाय पैरों पर आने लगा है। खुद को संभाल लेने की कुव्वत रखने वाले इस सिस्टम ने आम आदमी को इतनी ताकत दे दी है कि आम आदमी को पहले पहल समझ में ही नहीं आया कि इतनी ताकत का क्या करे। सो नाम दिया दान का। आम आदमी मतदान करता हैं। यानि एक नेता को पांच साल तक लूटने, खसोटने, दादागिरी करने और ताकत के साथ किए जा सकने वाले सभी गलत कार्य करने की छूट देने वाले वोट का वह दान देता है। और मजे की बात की भूल भी जाता है।
इस बार के राजस्थान के चुनाव को एक ओर वोटर तो दूसरी ओर पत्रकार की तरह देखा। कुर्सियों पर बैठे लोगों को कुछ ही दिन में गली-गली गांव-गांव घुटनों के बल चलते देखा। आम आदमी के चेहरे पर रुआब देखा। किसी ने जिरह करके तो किसी ने प्रेम से पूछा तो वोटर बोला आप ही को वोट दूंगा। लेकिन जब जनादेश आया तो लुभावने वादे और प्रचारों का शोर कहीं पीछे छूटा नजर आया। जनता ने पांच साल का हिसाब लगाया और सत्ता पर काबिज रानी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद एक सामान्य अमीर महिला की तरह कुर्सी से दूर खड़ी दूसरे लोगों द्वारा राज चलाए जाने का इंतजार कर रही है। वसुंधरा ने पांच साल में राजस्थान में बहुत से काम कराए। सैकड़ों करोड़ रुपए आम आदमी की देहरी पर आ गिरे। लेकिन सबकुछ एक तय नीति के तहत हुआ और चुनाव के आस-पास विकास का माहौल बनाने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही महारानी काकी (काकी इसलिए कि मूलत: मध्यप्रदेश की हैं और राजस्थान में ब्याहकर आई हुई है।) ने खराब छवि वाले कई नेताओं को टिकट वितरण के दौरान किनारे कर एंटी इंकंबेसी फैक्टर को भी कम करने का प्रयास किया।
सबकुछ ठीक-ठाक लग रहा था। विकास, गुंडा नेताओं से मुक्ति, महिलाओं को टिकट, लाखों नौकरियां, कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग। यानि सभी खुश। वहीं कर्मचारी अब भी गहलोत से नाराज थे। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि दो सौ में से डेढ सौ सीटें लेकर भाजपा की यह महारानी फिर से राज करती लेकिन राजस्थान के सजग वोटरों ने ऐसा गणित बनाया कि हर किसी को त्रिशंकू बनाकर छोड़ दिया। न कोई राज कर सके न करने दे। अब आगामी पांच साल में किसी तरह बहुमत हासिल करने वाले राज करेंगे और प्रबल विपक्ष पैनी निगाह रखकर उलटफेर का प्रयास करता रहेगा। इस बीच वोटरों को फिर से अपने पाले में लेने के प्रयास भी होते रहेंगे। वोटर खुश। उसने दोनो पार्टियों और राज करने की सोचने वालों को जमीन सूंघा दी।
इस बार भले ही वोटर को एक ग्राहक समझा गया और उसे प्रचार माध्यम से लुभावने वादे दिखाए गए लेकिन अगले चुनाव में निश्चय ही वोटरों का खौफ बोलेगा। और पूरी ताकत से बोलेगा। तब लोकतंत्र पैरों की ओर देखना छोड़ बाजुओं और ऊंचे उठे सिर की ओर आ जाएगा...
9.12.08
अब वोटर का खौफ बोलेगा
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2 comments:
सही कहा आपने वोटर अगर जाग जाए तो लोकतंत्र का सर गर्व से ऊंचा हो जाएगा|
prakashbadal.blogspot.com
i agree with u.....
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