'वो' कहती है, थोड़ा और ठहरो। ऐसे ही चले जाओगे, मुझे अधूरा छोड़कर? सारी रात तो दी है तुम्हें, करवटों, शिकन और सकून भरी रात अब और क्या चाहिए? भोर हो गई अब जाने दो और भी तो जरूरी काम हैं ज़िंदगी में। ऐसे ज़ुमलों से उसे बहलाने की कोशिश करता हूं, लेकिन 'वो' मानती ही नहीं। कई बार तो अजब उलझन में डाल देती है। कहती है मुझसे भी ज़रूरी है कुछ काम। तुम तो कहते हो ज़िंदगी में मुझसे ज़रूरी कुछ और है ही नहीं। तुम ज़िंदगी का ईंधन हो। अब कहां गए सारे दावे। चुप्पी लगा के फिर से उसके आगोश में चला जाता हूं। उसकी खुमारी ही कुछ ऐसी है कि दफ्तर लेट पहुंचकर शर्मिंदगी झेलने में कोई खास दिक्कत नहीं होती, लेकिन मंदी के असर ने इस खुमारी को ढीला करना शुरू कर दिया है। 'पिंक स्लिप' यानी छंटनी के डर ने उससे लगाव को ज़रा डिगा दिया है। फिर भी उसके आगोश की पकड़ ढीली करने का मन नहीं चाहता। दलीलें देकर भी देख चुका उसे लेकिन कहती है कि रूठ गई तो मनाने से मानूंगी, जिस ज़िंदगी को मेरे साथ रंगीन करते हो, मेरे साथ गुजारने के सपने देखते हो, वो नरक बन जाएगी। पागल हो जाओगे मेरे बिना। सच ही तो कहती है। ऐसा कहते ही मन फिर से अकर्मण्य हो जाता है और 'वो' फिर मेरा हाथ पकड़कर बिस्तर पर गिरा देती है। मैं हमेशा कहता हूं कि इतना स्टेमिना नहीं बचा कि तुम्हें और वक्त दे सकूं। इंसान हूं कमर दर्द करने लगी है, अब तो बख्श दो। 'वो' कहती है कि नादान हो भोर ही तो सही वक्त है। आ जाओ, सारी दुनिया को भूलकर मेरे पहलू में, और मेरी आंखों को चूमकर मुझे फिर अपने साथ लेटा लेती है। आज वो मेरे साथ नहीं है। इसलिए परेशान हूं। रात गए इंटरनेट पर ब्लॉगिया रहा हूं। सच में, वो है ही इतनी खूबसूरत कि मन करता है कि अपनी आंखों पर उसकी पलकें झुकाकर उसके साथ लेटा रहूं। 'वो' और मैं एक हो जाएं। आज उसे बुलाया नहीं आई। सौ बहाने बनाए, हर तरह से रिझाया नहीं मानी। पता नहीं क्यों नाराज़ है मेरी 'वो' यानी मेरी नींद मुझसे।
8.12.08
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2 comments:
wo ka interesting detail hai but at last reminds only to dada Kondake style of "Dwiarthi" comedy.
but cool so keep writing
wo ka interesting detail hai but at last reminds only to dada Kondake style of "Dwiarthi" comedy.
but cool so keep writing
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