विनय बिहारी सिंह
तैलंग स्वामी ने कितने वर्ष इस पृथ्वी पर बिताने के बाद अपना शरीर छोड़ा, यह रहस्य ही है। कुछ विशेषग्यों का कहना है कि वाराणसी में जब उन्होंने शरीर छोडा़ तो उस समय उनकी आयु करीब ३०० वर्ष थी। लेकिन कुछ उनकी आयु ५०० वर्ष भी बताते हैं। बहरहाल, तैलंग स्वामी की आयु जानना हमारा लक्ष्य नहीं है। तैलंग स्वामी ने इस दुनिया को जो अद्भुत शिक्षा दी, वह है- अनावश्यक चीजों की तरफ ध्यान न देकर, लगातार ईश्वर में ही मन लगाना। वे प्रवचन या भाषण नहीं देते थे। वे जीवन के ज्यादातर वर्षों में चुप ही रहे। बोले भी तो बहुत कम। लेकिन अपनी दिनचर्या, आचार, व्यवहार या साइलेंट वाइब्रेशन (मौन) से ईश्वरीय तरंगें सारी दुनिया में फैलाते रहते थे। ़
वे नंगा रहा करते थे। शरीर पर कोई वस्त्र नहीं। एक बार वाराणसी में एक अंग्रेज पुलिस वाले ने नंगा देख कर उन्हें जेल भिजवा दिया। शाम को देखा गया कि तैलंग स्वामी के कमरे का ताला तो बंद है लेकिन वे जेल की छत पर आराम से टहल रहे हैं। बार- बार उन्हें जेल में बंद किया गया लेकिन हर बार वे अपनी दिव्य शक्ति से जेल से बाहर निकल आते। हार कर प्रशासन ने उन्हें मुक्त कर दिया।
तैलंग स्वामी कभी कुछ खाते नहीं थे। लेकिन अगर कोई भक्त प्रेम से उन्हें कुछ देता था तो वे खाते जरूर थे। कभी कभी वे कई किलो मिठाई खा जाते थे। उनके भक्त कहते थे- मिठाई वे नहीं खाते हैं, कोई और खाता है। एक दुष्ट व्यक्ति ने तैलंग स्वामी की परीक्षा लेने के लिए ताजे चूने के घोल को दही बता कर तैलंग स्वामी से खाने का अनुरोध किया। यह चूने का घोल भी बड़े से ड्रम में था। तैलंग स्वामी मुस्कराते हुए सारा घोल खा गए। सामान्य व्यक्ति अगर इतना घोल खाता तो उसकी मृत्यु निश्चित थी, लेकिन तैलंग स्वामी डकार लेते हुए मुस्करा रहे थे। थोड़ी ही देर में जिस व्यक्ति ने उन्हें चूने का घोल दिया था, उसके पेट में भयानक दर्द हुआ। वह दर्द के मारे चीखने, चिल्लाने और जमीन पर लोटने लगा। वह तैलंग स्वामी से अपने जीवन की भीख मांगने लगा। तब जाकर तैलंग स्वामी ने उस पर कृपा की। वह स्वस्थ हो गया। लेकिन फिर कभी किसी साधु पुरुष के साथ उसने कोई घातक मजाक नहीं किया।
तैलंग स्वामी बाबा विश्वनाथ या शंकर भगवान के मनुष्य अवतार कहे जाते थे। वे अत्यंत कृपालु थे। कोई सच्चा भक्त अगर उनसे पवित्र हृदय से कुछ मांगता था तो उसे वे दे भी देते थे। लेकिन उनका आशीर्वाद मूक होता था। उनका शरीर अत्यंत विशाल था। पेट लगभग पीपे की तरह लंबा चौड़ा था। लेकिन भोजन उनके लिए आवश्यक नहीं था।
जगत का कल्याण हो, लोग सात्विक जीवन जीएं, ईश्वर की भक्ति करें, यही तो कोई भी संत चाहता है।
9.12.08
तैलंग स्वामी
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