द्वितीय विश्व युद्ध में जब अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु बम गिराया तो उसके ऐसे दुष्परिणाम सामने आये कि दुनिया में मानवता को बचाने के लिए परमाणु नीति पर विश्वस्तरीय मंथन हुआ। परमाणु बम पर प्रतिबंध के लिए कड़े नियम कानून बने। जैविक हथियारों के प्रतिबंध के लिए विश्वस्तरीय नीति बानी।
हुआ क्या जिन प्रभावशाली देशों ने यह नीति बनाई वे अपने को ताकतवर दिखाने के लिये खुद तो परमाणु शक्ति को अपनाते रहे पर विकासशील देशों को उपदेश देते रहे। इस तानाशाही नीति का परिणाम यह हुआ कि अधिकतर देशों ने परमाणु बम बना लिया। यहां तक कि आतंकियों को शरण देने वाले पाकिस्तान के पास भी परमाणु बम है। ये सब हथियारों के धंधे और होड़ का ही दुष्परिणाम दुनिया के सामने आया है। यह विभिन्न देशों के शासकों की गैर जवाबदेही, जनहित से ज्यादा तवज्जो अपने धंधों को देने का ही नतीजा है कि जहां पूरी दुनिया कोरोना जैसे जैविक हथियार से जूझ रही है, वहीं प्रभावशाली देशों ने तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बना दी है।
यह तो लगभग स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना वायरस चीन की करामात है और इस त्रासदी में अमेरिका भी बराबर का भागीदार है। वह बात दूसरी है कि अब जब खुद अमेरिका में ही यह कोरोना कहर बरपाने लगा तो अब वह चीन पर मुखर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सबक सिखाने की पूरी तैयारी कर ली है। खबरें आ रही हैं कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने कोरोना मामले में चीन के खिलाफ सबूत भी जुटा लिए हैं।
कोरोना मामले में भी दुनिया के दो ताकतों में बंटने की पूरी रूपरेखा बन चुकी है। अमेरिका के साथ ही फ्रांस और ब्रिटेन खुलकर चीन के खिलाफ खड़े हो गए हैं। रूस और सीरिया के साथ ही कई देश इसके लिए अमेरिका और इस्राइल को जिम्मेदार ठहराकर चीन की पैरवी करते प्रतीत हो रहे हैं। वैसे तो भारत का दोस्त रूस माना जाता है पर जिस तरह से हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती जगजाहिर हुई है उससे भारत चीन की ओर देखा जा रहा है। वैसे भी अमेरिका को हैड्रोक्लोरोक्वीन दवा देकर मोदी ने इस दोस्ती को और मजबूती प्रदान की है। पाकिस्तान और दूसरे कई मुस्लिम देशों का रुझान चीन की ओर देखा जा रहा है।
बात प्रभावशाली देशों की सनक, हनक और टकराव की ही नहीं है । बात यह है यदि कोरोना से लड़ी जा रही इस लड़ाई के बीच यदि प्रभावशाली देश आपस में टकरा जाते हैं। तीसरा विश्वयुद्ध हो जाता है तो फिर यह मानकर चलें कि दुनिया में तबाही का वह मंजर सामने आएगा कि सब कुछ तहस नहस हो जाएगा। इस युद्ध में जैविक हथियारों के बड़े स्तर पर इस्तेमाल करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी कोरोना के रूप में एक तरह से यह इस्तेमाल चीन की ओर से हो ही चुका है।
कोरोना की उत्पत्ति ने यह साबित कर दिया है कि बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया के सामने मौजूद समय में सबसे अधिक खतरा जैविक हथियारों से है।
समस्या के निदान के लिए प्रयास करना प्रकृति का नियम है। आज परिस्थिति बड़ी विषम है। निदान के लिए प्रयास करने वाले लोगऔर तंत्र खुद इस मकड़जाल में फंसे हुए हैं। इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए बुद्धिजीवी, मीडिया, समाजसेवक,समाजसुधारक, साहित्यक, कवि और जागरूक लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। आज की तारीख में इनमें से अधिक तर लोग निजी स्वार्थ के चलते या फिर मज़बूरी वश कुछ खास कर नहीं पा रहे हैं। कुछु भी हो प्रकृति और मानवता दोनों खतरे में है और किसी भी हालत में इसे बचाना है। इसके लिए विश्वस्तरीय प्रयास होने ही चाहिए।
CHARAN SINGH RAJPUT
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