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6.11.20

महाराष्ट्र में पत्रकारिता के लिए आपातकाल, बाक़ी जगह रामराज्य!

पत्रकारिता क्षेत्र में जब क़दम रखा था तब यह सोंचा नहीं था कि एक दिन ख़बर देने वाले ही ख़ुद ख़बर बन जाएंगे।

आज आम लोगों से ज़्यादा ख़बर देने वाले ख़ुद ख़बरों में छाए हुए हैं। बीते दिन रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ़ अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने उनको उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया। अर्नब की गिरफ़्तारी 2018 के एक आत्महत्या से जुड़े केस में हुई है। इस कदर अचनाक हुई गिरफ्तारी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 2 साल पुराने इस केस में उस समय कोई सुबूत ना होने के कारण केस को बंद कर दिया गया था। लेक़िन आज मुंबई पुलिस को अचानक सुबूत मिल जाते हैं और अर्नब को गिरफ़्तार कर लिया जाता है। हो सकता है सुबूत मिल भी गए हों, लेक़िन क्या किसी समन के किसी को गिरफ़्तार करना सही है ?. गिरफ्तारी के भी तरीक़े होते हैं किसी के साथ मारपीट कर उसे जबरदस्ती रूप से गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाना ठीक है ?।


अर्नब की गिरफ्तारी से लोग दो भागों में बंट गए हैं भाजपा इसकी कड़ी निदा कर रही है तो वहीं कांग्रेस उसको विधिक कार्रवाही बता रही है। देश के कई हिस्सों में अर्नब गोस्वामी के समर्थन में लोग महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ बैनर तले विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें भी कोई दो रॉय नहीं हैं कि अर्नब की अचानक हुई इस गिरफ्तारी से यह प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है।

हो सकता है अर्नब की पत्रकारिता से आप सहमत ना हो, हो सकता है उनके विचारों से आप सहमत ना हों, लेक़िन इस क़दर एक पुराने केस की फ़ाइल को अचानक खोलना अपने आप में बहुत कुछ वयां करता है। अगर ऐसे ही देश के हर राज्य में सभी पुराने केसों की फ़ाइलों को खोला जाए तो यक़ीन मानिये पत्रकारिता जगत का शायद ही कोई पत्रकार या नेता बचे जिसे थानों या कोर्ट के चक्कर ना लगाने पड़े।

कुछ लोग इसको आपातकाल से जोड़ रहे हैं...उनका कहना है कि देश में आपातकाल पार्ट-2 चल रहा है। लेक़िन शायद वह यह भूल जाते हैं कि पत्रकारिता पर हमला आज कोई नई बात नहीं है। यह हमेशा से होता आया है। आज जब देश के एक बड़े पत्रकार पर इस क़दर कार्यवाही हुई तो उनको आपातकाल की याद आ गई। पिछले वर्ष यूपी के मिर्जापुर में एक पत्रकार पर कई धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर उसको जेल भेज दिया गया...उसका क़सूर इतना था कि उसने सिस्टम की पोल खोलकर रख दी थी। उसने मिड-डे मील योजना के अंतर्गत स्कूलों में जो खाना दिया जाता है उसमें सिर्फ़ नमक-रोटी ही दी जा रही थी उस ख़बर को क़ायदे से प्रकाशित कर दिया था।
बल्कि यही नहीं अभी ऐसी ही ख़बर बलिया से सामने आई थी। तब आपातकाल की याद क्यों नहीं आई ?.

आज जो यह भाजपा और उनके समर्थक अर्नब की इस गिरफ्तारी को आपातकाल से जोड़ रहे हैं..उसी भाजपा सरकार ने 1995 में बंद पड़े एक केस को साल 2011 में खोलकर संजीव भट्ट नाम के एक इमानदार आईपीएस अधिकारी को 2 साल से जेल में सड़ाया हुआ है.

इसी भाजपा सरकार ने डॉक्टर कफील खान को पहले 9 महीने और फिर दुबारा 6 महीने तक जेल में सड़ाए रखा था। इसी मोदी सरकार ने सुधा भारद्वाज को झूठे केस बनाकर पिछले 3 साल से जेल में रखा हुआ है. तब आपातकाल नहीं था ?...तब लोकतंत्र ख़तरे में नहीं था ?.!!

बाक़ी अर्नब की इस क़दर हुई गिरफ्तारी की मैं कड़ी निंदा करता हूं।

रानू मिश्रा
पत्रकारिता छात्र
ranumishra.jimmc@gmail.com

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