पेंशन का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है कि एक कर्मचारी चाहे वह महिला हो अथवा पुरुष अपने कार्यकाल के दौरान जो वेतन पाता है उसका कुछ हिस्सा उसकी भविष्य निधि के रूप में सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थाएं प्रतिमाह संचित करती रहती हैं ताकि कर्मचारी की आयु वृद्धि होने पर भौतिक शरीर में शिथिलता आने के बावजूद वह आर्थिक क्षमतावान बना रहे। इसके लिए उस संचित कोष से एक निश्चित धनराशि प्रतिमाह उस कर्मचारी को पेंशन के रूप में प्रदान की जाती है।
भारतीय सनातन संस्कृति की विशेषता रही है कि पति-पत्नी का जीवन संयुक्त आपसी निर्भरता का संबंध स्थापित करता है। इसलिए कर्मचारी की मृत्यु पर उसकी पत्नी को और कई बार यदि पत्नी कर्मचारी रही हैं तो पति को भी पेंशन दी जाती है। किसी दुर्घटना वश सेवानिवृत्ति से पूर्व ही दोनों का करुणान्त होने पर उनके पाल्यो को पेंशन देने का प्रावधान भी कई मामलों में होता है।तो कुल मिलाकर पेंशन एक कर्मचारी की सेवा काल की स्वयं की बचत का हिस्सा ही है। यहां एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगा कि भारत सरकार चूंकि राष्ट्र के नागरिकों का हित सर्वोपरि रखती है तो सरकारों ने देश में और प्रदेशों में भी अपने सरकारी कोष से वृद्धावस्था और विधवा पेंशन जैसी योजनाएं चला रखी हैं। यहां तक पेंशन की बात हम करते हैं तो सब कुछ सही है और उस दौरान आर्थिक विवशता को दूर करती पेंशन व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक है।
परंतु इसमें एक बड़ा खेल और झोल है। वह सांसदों- विधायकों और राज्यसभा सदस्यों को मिलने वाली प्रतिमाह पेंशन राशि को लेकर है। बड़े कष्ट के साथ लिखना पड़ता है कि भारतीय संसद 1 दिन के सांसदों तक की पेंशन का प्रस्ताव पास कर चुकी है। लोकसभा के सदस्य जब वेतन लेते हैं तो उन्हें संसद की कार्यवाही में भाग लेने का भत्ता क्यों दिया जाता है।
इस खेल के झोल में निम्न संशोधन अवश्य होने चाहिए।
(1) पेंशन के लिए आयु सीमा का निर्धारण
(2) पेंशन के लिए कम से कम 5 वर्ष की कार्य अवधि में सदस्य होना आवश्यक
(3) अगर पहले किसी सार्वजनिक अथवा सरकारी पद पर रह चुके हैं तो पेंशन का प्रावधान केवल एक पद से ही होना आवश्यक है दोहरी या तिहरी पेंशन व्यवस्था प्रावधान बंद हो।
(4) सरकारी कर्मचारी यदि चुनाव लड़ते हैं तो उनके उम्मीदवार फॉर्म में पेंशन का कॉलम स्पष्ट होना चाहिए, कि वह जीतकर देश सेवा करने के बाद कहां से पेंशन लेना पसंद करेंगे, सरकारी विभाग से अथवा लोकतंत्र के मंदिरों (लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा) से दोनों में से एक विकल्प चुनकर भरें।
(5) पेंशन राशि बढ़ाते समय देश में वृद्धावस्था और विधवा पेंशन राशि को ध्यान में रखकर ही लोकतंत्र के मंदिरों के रख वालों की पेंशन राशि तय की जानी चाहिए ।क्योंकि वृद्ध और विधवाओं की राशि का अनुपात आज सभी जानते हैं।
क्योंकि भारतीय संविधान लागू होने से अब तक 100 से अधिक संविधन संशोधन हो चुके हैं जिसमें पेंशन बढ़ाने का संशोधन भी शामिल है। परंतु एक व्यक्ति एक पेंशन का प्रावधान संशोधन तत्काल लागू किया जाना देश हित में होगा।
अगर किसी भारतीय नागरिक को वर्तमान पेंशन व्यवस्था उचित लगती है तो फिर मेरा सुझाव है कि नगर पंचायत और नगर निगम तथा नगर पालिकाओं के पूर्व सदस्यों को भी पेंशन प्रणाली में शामिल करना चाहिए क्योंकि वह भी समाज सेवा में अपना समय व्यतीत करते हैं, तो उन्हें इस बहती गंगा के लाभ से क्यों वंचित रखा जाए?
अजय कुमार अग्रवाल
समाज चिंतक, स्वतंत्र पत्रकार
4884ajay@gmail.com
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