कोयला खदानों के आवंटन पर कैग की अंतिम रिपोर्ट ने सीधे-सीधे सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि उसने कंपनियों को चुनते समय पारदर्शी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि कोयला मंत्रालय के सेक्रेटरी की 2004 में की गई उस सिफारिश को नजरअंदाज करना गलत था, जिसमें प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिए खदानों के आवंटन की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट की विषयवस्तु की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि कैग ने पाया है कि कोयला खदानों के खनन के लिए कंपनियों को किस तरह चुना गया, इस बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।
यह रिपोर्ट संसद के मॉनसून सेशन में पेश की जाएगी। रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों में से एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि कैग के मुताबिक कोल माइंस के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाई जानी चाहिए थी, लेकिन इसकी जगह सरकार ने एक 'अपारदर्शी' नीति का सहारा लिया, जो फरवरी 2012 तक चलन में थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन कंपनियों को ये खान आवंटित किए गए, उन्हें करीब 1,86,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ।इससे फायदा उठाने वालों में अन्य कंपिनयों के अलावा जिंदल स्टील ऐंड पावर और टाटा एवं दक्षिण अफ्रीका की सासोल के बीच जॉइंट वेंचर से बनी एक कंपनी भी शामिल हैं।
जिस समय के आवंटन को लेकर कैग ने ये तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था और राज्य स्तर के मंत्री दसरी नारायण राव और संतोष बगरोदिया उनके सहयोगी थे। उस समय के कोयला सेक्रेटरी पी. सी. पारेख ने स्वीकार किया कि कुछ खास कंपनियों को खदान आवंटित करने के लिए उन पर 'दबाव' था। उन्होंने कहा, 'हां, उस समय दबाव था और हर तरह के लोग आ रहे थे और किसी खास कंपनी के पक्ष में फैसले की मांग कर रहे थे।' पारेख ने 2004 में कोयला राज्य मंत्री राव को एक नोट पेश किया था, जिसमें पारदर्शिता के नियमों का पालन करते हुए ब्लॉक के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियों की व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव किया गया था।
दोस्तों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ईमानदार हैं या बेईमान, ये हमेशा चर्चा का विषय रहा है।लेकिन अब कैग की रिपोर्ट ने लोगों की इस उलझन को दूर कर दिया है।वैसे अब तक देश के हालात को देखते हुए भी हम अंदाजा लगा सकते थे कि पीएम ईमानदार हैं या नहीं लेकिन कैग की इस रिपोर्ट ने लोगों को पीएम की ईमानदारी पर फैसला करने के लिए एक ठोस आधार दे दिया।अब तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कोई व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं हुए थे लेकिन इस बार कैग ने उनकी 'ईमानदारी' की बखिया ऊधेड़ दी।
अब तक जब टीम अन्ना कैग की कुछ रिपोर्टों का हवाला देकर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाती थी तो सरकार के ठेकेदार उसे तुरंत खारिज कर देते थे।टीम अन्ना के आरोपों पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी. नारायणसामी ने जवाबी खत लिखकर पीएम पर लगे आरोपों को बेबुनियाद और मनगढ़ंत बताया था और जाँच की माँग ठुकरा दिया था।यहाँ तक कि पीएम ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नकार दिया था और दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।वर्तमान कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कहते आ रहे हैं कि कोयला ब्लॉक आवंटन में कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी।कैग की कोयला ब्लॉक आवंटन पर अंतिम रिपोर्ट ने इन सभी को करारा जवाब दिया है।
कैग की रिपोर्ट पेश होने के बावजूद सरकार कह रही है कि उसे रिपोर्ट नहीं मिली है।आपको रिपोर्ट नहीं मिली तो क्या हुआ, जनता के सामने रिपोर्ट आ चुकी है और इस पर आपको जवाब देना होगा।कोयला मंत्री तो अभी तक कह रहे हैं कि कोयला ब्लॉक आवंटन में कोई गड़बड़ी हुई ही नहीं।तो क्या कोयला मंत्री कैग की रिपोर्ट भी नहीं मानेंगे?मुझे नहीं लगता कि वर्तमान कोयला मंत्री इतने योग्य और काबिल हैं कि कैग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकें।सरकार अब भी कह रही है कि 'कोलगेट' जैसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं।सरकार को अब और क्या सबूत चाहिए?कैग ने अपनी रिपोर्ट में साबित कर दिया है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी हुई थी तब भी सरकार नहीं मान रही है, तो क्या अब कैग कोयला ब्लॉक आवंटन के 'मुख्य आरोपी' की पिटाई करेगा, तब मानेगी यह सरकार?
सरकार के कुछ सही को गलत और गलत को सही कहने वाले ठेकेदार अब भी कह रहे हैं कि पीएम ईमानदार हैं।अगर कैग की रिपोर्ट आने के बावजूद कुछ लोग पीएम को ईमानदार बता रहे हैं, तो क्या वो कैग को बेईमान बताना चाहते हैं?कैग की रिपोर्ट के बाद तो पीएम ईमानदार हो ही नहीं सकते।पीएम देश को बताएँ कि कैग की रिपोर्ट आने के बावजूद हम आपको ईमानदार क्यों माने?और अगर नहीं बता सकते तो इस्तीफा दे दें।
जिस कैग की रिपोर्ट के कारण ही 2 जी मामले पर राजा को आरोपी बनाया गया (भले ही न्यायिक प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण होने के कारण आज वो सलाखों से बाहर हैं) उसी कैग की रिपोर्ट के आधार पर हम प्रधानमंत्री को आरोपी क्यों नहीं मान सकते?
पीएम ने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि उन पर आरोप साबित हो गए तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे।संन्यास लेने की तो वैसे भी उम्र हो ही गई है उनकी, ये सब बातें बोलकर वे किसे बेवकूफ़ बना रहे हैं?पहले पीएम देश को ये बताएँ कि देश में ऐसी कौन सी एजेंसी बची है जो निष्पक्ष रूप से जाँच कर अगर सचमुच पीएम दोषी हैं तो उन्हें आरोपी साबित कर सके।कहने को तो कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में सीबीआई जाँच कर रही है लेकिन सभी जानते हैं कि सीबीआई के जाँच का स्तर क्या है।आरोपी साबित होने के बाद क्या करना है, यह भी पीएम ने बता दिया।जेल नहीं जाएँगे बल्कि राजनीति से संन्यास लेंगे।शायद पीएम को पता नहीं है कि राष्ट्रपति बनना भी राजनीति से संन्यास लेना ही होता है।अगर आरोपी साबित होने पर पीएम को संन्यास लेने का मन है तो वो किस बात का इंतजार कर रहे हैं।कैग की रिपोर्ट उनके संन्यास लेने के लिए काफी है, कम से कम देश के सर से बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा।कैग की रिपोर्ट आने के बाद इतना तो तय है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में भारी अनियमितता हुई है और चुकी उस वक्त कोयला मंत्रालय पीएम के पास था इसलिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रिपोर्ट के आधार पर पीएम ही दोषी हुए।और अगर अब भी पीएम खुद को ईमानदार बताते हैं तो वो बताएँ कि तत्कालीन कोयला मंत्री होने के बावजूद अगर आप निर्दोष हैं, तो दोषी कौन है?भले ही कोयला ब्लॉक आवंटन से पीएम को कोई व्यक्तिगत फायदा न हुआ हो(शायद) लेकिन उनके पद पर रहते हुए कई कंपनियों को बेहिसाब फायदा हुआ है जिससे सरकारी खजाने को अब तक की सबसे बड़ी चपत लगी है।इतने गंभीर मुद्दे पर संसद में खड़े होकर सिर्फ इतना कहकर कि आरोप साबित होने पर आप संन्यास ले लेंगे, आप पल्ला नहीं झाड़ सकते।कल को ए. राजा भी कह सकते हैं कि उन पर आरोप साबित हो गए तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे, तो क्या हम उन्हें निर्दोष मान लेंगे?
जिस पीएम के कार्यकाल में देश के सबसे बड़े-बड़े घोटाले हुए हो, जिस पीएम के कार्यकाल में घोटाले थमने का नाम नहीं ले रहे हो, जिस पीएम पर कैग जैसे संवैधानिक संस्था भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगा रही है, वह पीएम किसी भी सूरत में ईमानदार नहीं हो सकते।अब भी पीएम को ईमानदार कहना तो कैग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना होगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री की परिभाषा बदल दी है।पहले हम माना करते थे कि सरकार में पीएम सबसे 'मजबूत' व्यक्ति होते हैं लेकिन अब हम मानते हैं कि सरकार में पीएम सबसे 'मजबूर' व्यक्ति होते हैं।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को जो जख्म दिए हैं वो कभी नहीं भर सकते।प्रधानमंत्री के नाम पर देश में शून्यता छा चुकी है।हम आमतौर पर किसी सरकार के मुखिया का नाम सरकार से पहले कहा करते हैं।लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब तो इस सरकार को 'मनमोहन सरकार' कहने में भी शर्म आती है।जितने गैरजिम्मेदाराना तरीके से पीएम देश चला रहे हैं, वैसे तो कोई गरीब, निर्धन भी अपना घर नहीं चलाता।मौजूदा पीएम देश चलाते हुए जितना टालू रवैया अपना रहे हैं, बच्चे जब गूड्डे-गूड्डी का खेल खेलते हैं तब भी वे मौजूदा पीएम से ज्यादा गंभीर रहते हैं।बच्चों को आप चाहे किसी काम में भी लगा दें वो अपना बेस्ट देने की कोशिश करते हैं, कम से कम पीएम बच्चोँ से तो सीख लें।
धन्यवाद और साधुवाद के पात्र हैं कैग विनोद राय, जिन्होंने सरकार के कई घोटालों से पर्दा उठाया और लगातार पूरी ईमानदारी से देश को अपनी सेवा दे रहे हैं।उनकी कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता है कि उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई महामहिम का पद मिल जाए, वो बस ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।आज देश को उनके जैसे ही अफसरों की जरूरत है।आज तक कैग कभी इतना सक्रिय नहीं रहा जितना अभी है।इससे पहले भी देश में कई कैग हुए लेकिन विनोद राय जी ने अपनी कार्यशैली से ऐसी पहचान बनाई है कि आने वाले पीढ़ी कैग के रूप में इनके कार्यों को जरूर याद करेगी।सचमुच कैग के रूप में विनोद राय जी का कार्य अब तक सराहनीय रहा है।पहली बार देश ने जाना कि कैग भी सरकार के गलत कामों के लिए उसकी धज्जियाँ उड़ा सकती है।
सरकार चाहे कुछ भी कहे लेकिन मुझे नहीं लगता कि देश की बुद्धिमान जनता अब भी पीएम को ईमानदार मानेगी।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भ्रष्टाचारियों के रक्षक हैं।सभी भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार करने के बाद प्रधानमंत्री की ईमानदारी का उलाहना देने लगते हैं।मौजूदा प्रधानमंत्री ने देश में अपनी कोई छवि ही नहीं बनाई है, उन्होंने देश को धोखा दिया है, जनता की आँखों में धूल झोंका है।मैं तो अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिल्कुल भी ईमानदार नहीं मानता क्योंकि मुझे मनमोहन सिंह, वी. नारायणसामी और श्रीप्रकाश जायसवाल से ज्यादा भरोसा कैग पर है।क्या अब भी आप पीएम को ईमानदार मानते हैं?
जय हिन्द! जय भारत!
यह रिपोर्ट संसद के मॉनसून सेशन में पेश की जाएगी। रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों में से एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि कैग के मुताबिक कोल माइंस के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाई जानी चाहिए थी, लेकिन इसकी जगह सरकार ने एक 'अपारदर्शी' नीति का सहारा लिया, जो फरवरी 2012 तक चलन में थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन कंपनियों को ये खान आवंटित किए गए, उन्हें करीब 1,86,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ।इससे फायदा उठाने वालों में अन्य कंपिनयों के अलावा जिंदल स्टील ऐंड पावर और टाटा एवं दक्षिण अफ्रीका की सासोल के बीच जॉइंट वेंचर से बनी एक कंपनी भी शामिल हैं।
जिस समय के आवंटन को लेकर कैग ने ये तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था और राज्य स्तर के मंत्री दसरी नारायण राव और संतोष बगरोदिया उनके सहयोगी थे। उस समय के कोयला सेक्रेटरी पी. सी. पारेख ने स्वीकार किया कि कुछ खास कंपनियों को खदान आवंटित करने के लिए उन पर 'दबाव' था। उन्होंने कहा, 'हां, उस समय दबाव था और हर तरह के लोग आ रहे थे और किसी खास कंपनी के पक्ष में फैसले की मांग कर रहे थे।' पारेख ने 2004 में कोयला राज्य मंत्री राव को एक नोट पेश किया था, जिसमें पारदर्शिता के नियमों का पालन करते हुए ब्लॉक के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियों की व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव किया गया था।
दोस्तों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ईमानदार हैं या बेईमान, ये हमेशा चर्चा का विषय रहा है।लेकिन अब कैग की रिपोर्ट ने लोगों की इस उलझन को दूर कर दिया है।वैसे अब तक देश के हालात को देखते हुए भी हम अंदाजा लगा सकते थे कि पीएम ईमानदार हैं या नहीं लेकिन कैग की इस रिपोर्ट ने लोगों को पीएम की ईमानदारी पर फैसला करने के लिए एक ठोस आधार दे दिया।अब तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कोई व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं हुए थे लेकिन इस बार कैग ने उनकी 'ईमानदारी' की बखिया ऊधेड़ दी।
अब तक जब टीम अन्ना कैग की कुछ रिपोर्टों का हवाला देकर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाती थी तो सरकार के ठेकेदार उसे तुरंत खारिज कर देते थे।टीम अन्ना के आरोपों पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी. नारायणसामी ने जवाबी खत लिखकर पीएम पर लगे आरोपों को बेबुनियाद और मनगढ़ंत बताया था और जाँच की माँग ठुकरा दिया था।यहाँ तक कि पीएम ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नकार दिया था और दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।वर्तमान कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कहते आ रहे हैं कि कोयला ब्लॉक आवंटन में कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी।कैग की कोयला ब्लॉक आवंटन पर अंतिम रिपोर्ट ने इन सभी को करारा जवाब दिया है।
कैग की रिपोर्ट पेश होने के बावजूद सरकार कह रही है कि उसे रिपोर्ट नहीं मिली है।आपको रिपोर्ट नहीं मिली तो क्या हुआ, जनता के सामने रिपोर्ट आ चुकी है और इस पर आपको जवाब देना होगा।कोयला मंत्री तो अभी तक कह रहे हैं कि कोयला ब्लॉक आवंटन में कोई गड़बड़ी हुई ही नहीं।तो क्या कोयला मंत्री कैग की रिपोर्ट भी नहीं मानेंगे?मुझे नहीं लगता कि वर्तमान कोयला मंत्री इतने योग्य और काबिल हैं कि कैग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकें।सरकार अब भी कह रही है कि 'कोलगेट' जैसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं।सरकार को अब और क्या सबूत चाहिए?कैग ने अपनी रिपोर्ट में साबित कर दिया है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी हुई थी तब भी सरकार नहीं मान रही है, तो क्या अब कैग कोयला ब्लॉक आवंटन के 'मुख्य आरोपी' की पिटाई करेगा, तब मानेगी यह सरकार?
सरकार के कुछ सही को गलत और गलत को सही कहने वाले ठेकेदार अब भी कह रहे हैं कि पीएम ईमानदार हैं।अगर कैग की रिपोर्ट आने के बावजूद कुछ लोग पीएम को ईमानदार बता रहे हैं, तो क्या वो कैग को बेईमान बताना चाहते हैं?कैग की रिपोर्ट के बाद तो पीएम ईमानदार हो ही नहीं सकते।पीएम देश को बताएँ कि कैग की रिपोर्ट आने के बावजूद हम आपको ईमानदार क्यों माने?और अगर नहीं बता सकते तो इस्तीफा दे दें।
जिस कैग की रिपोर्ट के कारण ही 2 जी मामले पर राजा को आरोपी बनाया गया (भले ही न्यायिक प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण होने के कारण आज वो सलाखों से बाहर हैं) उसी कैग की रिपोर्ट के आधार पर हम प्रधानमंत्री को आरोपी क्यों नहीं मान सकते?
पीएम ने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि उन पर आरोप साबित हो गए तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे।संन्यास लेने की तो वैसे भी उम्र हो ही गई है उनकी, ये सब बातें बोलकर वे किसे बेवकूफ़ बना रहे हैं?पहले पीएम देश को ये बताएँ कि देश में ऐसी कौन सी एजेंसी बची है जो निष्पक्ष रूप से जाँच कर अगर सचमुच पीएम दोषी हैं तो उन्हें आरोपी साबित कर सके।कहने को तो कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में सीबीआई जाँच कर रही है लेकिन सभी जानते हैं कि सीबीआई के जाँच का स्तर क्या है।आरोपी साबित होने के बाद क्या करना है, यह भी पीएम ने बता दिया।जेल नहीं जाएँगे बल्कि राजनीति से संन्यास लेंगे।शायद पीएम को पता नहीं है कि राष्ट्रपति बनना भी राजनीति से संन्यास लेना ही होता है।अगर आरोपी साबित होने पर पीएम को संन्यास लेने का मन है तो वो किस बात का इंतजार कर रहे हैं।कैग की रिपोर्ट उनके संन्यास लेने के लिए काफी है, कम से कम देश के सर से बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा।कैग की रिपोर्ट आने के बाद इतना तो तय है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में भारी अनियमितता हुई है और चुकी उस वक्त कोयला मंत्रालय पीएम के पास था इसलिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रिपोर्ट के आधार पर पीएम ही दोषी हुए।और अगर अब भी पीएम खुद को ईमानदार बताते हैं तो वो बताएँ कि तत्कालीन कोयला मंत्री होने के बावजूद अगर आप निर्दोष हैं, तो दोषी कौन है?भले ही कोयला ब्लॉक आवंटन से पीएम को कोई व्यक्तिगत फायदा न हुआ हो(शायद) लेकिन उनके पद पर रहते हुए कई कंपनियों को बेहिसाब फायदा हुआ है जिससे सरकारी खजाने को अब तक की सबसे बड़ी चपत लगी है।इतने गंभीर मुद्दे पर संसद में खड़े होकर सिर्फ इतना कहकर कि आरोप साबित होने पर आप संन्यास ले लेंगे, आप पल्ला नहीं झाड़ सकते।कल को ए. राजा भी कह सकते हैं कि उन पर आरोप साबित हो गए तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे, तो क्या हम उन्हें निर्दोष मान लेंगे?
जिस पीएम के कार्यकाल में देश के सबसे बड़े-बड़े घोटाले हुए हो, जिस पीएम के कार्यकाल में घोटाले थमने का नाम नहीं ले रहे हो, जिस पीएम पर कैग जैसे संवैधानिक संस्था भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगा रही है, वह पीएम किसी भी सूरत में ईमानदार नहीं हो सकते।अब भी पीएम को ईमानदार कहना तो कैग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना होगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री की परिभाषा बदल दी है।पहले हम माना करते थे कि सरकार में पीएम सबसे 'मजबूत' व्यक्ति होते हैं लेकिन अब हम मानते हैं कि सरकार में पीएम सबसे 'मजबूर' व्यक्ति होते हैं।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को जो जख्म दिए हैं वो कभी नहीं भर सकते।प्रधानमंत्री के नाम पर देश में शून्यता छा चुकी है।हम आमतौर पर किसी सरकार के मुखिया का नाम सरकार से पहले कहा करते हैं।लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब तो इस सरकार को 'मनमोहन सरकार' कहने में भी शर्म आती है।जितने गैरजिम्मेदाराना तरीके से पीएम देश चला रहे हैं, वैसे तो कोई गरीब, निर्धन भी अपना घर नहीं चलाता।मौजूदा पीएम देश चलाते हुए जितना टालू रवैया अपना रहे हैं, बच्चे जब गूड्डे-गूड्डी का खेल खेलते हैं तब भी वे मौजूदा पीएम से ज्यादा गंभीर रहते हैं।बच्चों को आप चाहे किसी काम में भी लगा दें वो अपना बेस्ट देने की कोशिश करते हैं, कम से कम पीएम बच्चोँ से तो सीख लें।
धन्यवाद और साधुवाद के पात्र हैं कैग विनोद राय, जिन्होंने सरकार के कई घोटालों से पर्दा उठाया और लगातार पूरी ईमानदारी से देश को अपनी सेवा दे रहे हैं।उनकी कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता है कि उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई महामहिम का पद मिल जाए, वो बस ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।आज देश को उनके जैसे ही अफसरों की जरूरत है।आज तक कैग कभी इतना सक्रिय नहीं रहा जितना अभी है।इससे पहले भी देश में कई कैग हुए लेकिन विनोद राय जी ने अपनी कार्यशैली से ऐसी पहचान बनाई है कि आने वाले पीढ़ी कैग के रूप में इनके कार्यों को जरूर याद करेगी।सचमुच कैग के रूप में विनोद राय जी का कार्य अब तक सराहनीय रहा है।पहली बार देश ने जाना कि कैग भी सरकार के गलत कामों के लिए उसकी धज्जियाँ उड़ा सकती है।
सरकार चाहे कुछ भी कहे लेकिन मुझे नहीं लगता कि देश की बुद्धिमान जनता अब भी पीएम को ईमानदार मानेगी।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भ्रष्टाचारियों के रक्षक हैं।सभी भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार करने के बाद प्रधानमंत्री की ईमानदारी का उलाहना देने लगते हैं।मौजूदा प्रधानमंत्री ने देश में अपनी कोई छवि ही नहीं बनाई है, उन्होंने देश को धोखा दिया है, जनता की आँखों में धूल झोंका है।मैं तो अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिल्कुल भी ईमानदार नहीं मानता क्योंकि मुझे मनमोहन सिंह, वी. नारायणसामी और श्रीप्रकाश जायसवाल से ज्यादा भरोसा कैग पर है।क्या अब भी आप पीएम को ईमानदार मानते हैं?
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