जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे .
जब देश में दौ मुख्य राजनैतिक दल थे ,तब भी जनता परेशान थी ,क्योंकि एक सत्ता के मद में
रहता था और दूसरा सिर्फ आलोचना का कीचड़ उछलता था या सत्ता को पाने की लालसा में समय
व्यतीत करता था .ऐसे में देश की जनता को लगा उसकी पीड़ तो घटने का नाम ही नहीं ले रही है
बल्कि बढ़ती ही जा रही है तो उसने तीसरा मोर्चा खोला .मगर तीसरा भी सत्ता के मद में बह गया
और जनता की टीस कम नहीं हुयी .
आखिर जनता ने अपने -अपने राज्यों में क्षेत्रीय दलों को अजमाना शुरू किया .जिस तरह छोटे
नाले थोड़ी सी बरसात में उफ़नने लगते हैं वो हाल इन क्षेत्रीय दलों का रहा .अपने राज्य में जीत
कर राष्ट्रिय दलों को आँख दिखाने लगे और राष्ट्रीय दल भी एलायंस के नाम पर इनका उपयोग
सदुपयोग और दुरूपयोग करके अपने अपने दल की गाडी खेचने लगे मगर आम आदमी इनके
चक्कर में पीसता चला गया.
अब पुरे राष्ट्र में इतने दल हो गए हैं कि हर गली में अध्यक्ष ,सचिव और नेता ही नजर आते हैं
आज पांच-सात सांसद रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों को आँखे दिखाती है और
राष्ट्रीय कहलाने वाले दल सत्ता से चिपके रहने की वृति के कारण इनकी जी -हजुरी करते रहते
हैं या फिर उन्हें सत्ता के शहद में भागीदारी दे देते हैं .बहुत बार ऐसे मौके आते हैं जब ये अपने
राज्य में तो अपने ही एलायंस का मुर्दाबाद बोलते हैं और दिल्ली में जाकर जिन्दाबाद .इनके
दोहरे चरित्र और दोहरे मापदंड से आम जनता का फोड़ा नासूर बन के रिसता जा रहा है .
सवाल ये उठता है कि जनता की पीड़ का माकूल ईलाज क्या है ?हम आजादी के बाद से
अब तक अपनी पीड़ को कम क्यों नहीं कर पाए हैं ?हम अपनी बुनियादी जरुरतो को भी पूरा
नहीं कर पाए हैं .हमने जिस दल को भी सत्ता सोंपी उन्होंने सिवा बदहाली के अलावा हमें क्या
दिया ,सिवा आश्वासन के अलावा क्या दिया ?
आज देश का आम आदमी समाचार में सिर्फ इन सभी छोटे -बड़े दलों की आपसी रस्साकसी
देखता है,एक दुसरे पर ठीकरे फोड़ने का खेल देखता है,स्वार्थ वश कभी इनको शत्रु के वेश में तो
कभी मित्र के परिवेश में देखता है .क्या ये दल देश के आम आदमी की आवाज बनकर काम
करते कभी नजर आये हैं ? सभी दल तभी एक सुर में बोले हैं जब इन पर ही सामूहिक रूप से
जनता के विद्रोही तेवर आये हैं .
प्रकृति के नियम अनुसार आम जनता ने जैसा बीज बोया है ठीक वैसा ही फल उसने अब तक
पाया है .सत्ता के मद में चूर नेता को सहन किसने किया और क्यों किया ?भ्रष्टाचारी लोगो को
वोट देकर किसने जीताया ?नाकाम रह चुके जनप्रतिनिधियों को बार-बार किसने चुना और क्यों
चुना?दागदार लोगो को वोट देकर यदि हम उन्हें संसद में भेजेंगे और फिर उनसे भले काम
करने की उम्मीद भी करेंगे तो गलती आम आदमी की ही है।
महामहिम के चुनाव के लिए आज राष्ट्रीय दल बेहाल हैं .छोटे मोटे क्षेत्रीय दल अपनी थोप रहे
हैं .हम इस तमाशे को देख कर कभी ताली पीटते हैं तो कभी शर्मिंदा होते हैं .क्या हम आजादी के
बाद से जिस बदहाली को झेल रहे हैं उसे आगे भी इसी तरह झेलते जायेंगे या फिर 2014 तक
कुछ रास्ता निकाल लेंगे ................प्रकृति का नियम तो वही का वही है जैसा बीज ,वैसी फसल .
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