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12.6.12


भीमगढ़ जलावर्धन योजना का श्रेय लेकर नेता तो बने भागीरथ लेकिन गंगा को कर्जदार होते मूक दर्शक बन देखते रहे
इन दिनों लखनादौन नगर पंचायत चुनावों की राजनैतिक सरगर्मी तेज हो गयी हैें। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह, सांसद फग्गनसिंह कुलस्त,विधायक शशि ठाकुर सहित नपं के पूर्व अध्यक्ष मुनमुन राय के लिये यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया हैं। पहले भाजपा और फिर कांग्रेस ने अपेक्षाकृत युवा नेताओं के हाथों में जिले में नेतृत्व सौंपा हैं। जिला भाजपा के अध्यक्ष सुजीत जैन हैं और कांग्रेस की कमान हीरा आसवानी के हाथों में हैं। दोनों ही पार्टियों के प्रदेश नेतृत्व को जिले के दोनों युवा अध्यक्षो से यही अपेक्षा है कि वे लखनादौन चुनाव की कसौटी पर खरे उतरें। शहर की सबसे घटिया और बहुचर्चित रोड़ के पाप का भार भी तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर के ही कंधों पर था। बेचारे सांसद देशमुख तो पैसे भर देकर पिक्चर से दूर हो गये। धटिया सड़क बनने के पाप का भार अपवने कंधों से उतारने के लिये भी यदि आभार व्यक्त किया जाता हैं तो धन्य हैं आभार देने वाले और उससे भी ज्यादा धन्य हैं आभार ग्रहण करने वाले। बनने के पहले वरदान मानी जाने वाली भीमगढ़ जलावर्धन योजना शहर के लिये अब अभिशाप बन गयी हैं। हाल ही में हुयी परिषद की अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और उपाध्यक्ष राजिक अकील की उपस्थिति में हुयी बैठक में इस बात का खुलासा हुआ हैं कि परिषद पर इस योजना का बिजली का बिल 16 करोड़ रुपये देना हैं जिसके लिये सरकार से अनुदान मांगने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से लिया गया हैं। 
प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लखनादौन नपं का  चुनाव-इन दिनों लखनादौन नगर पंचायत चुनावों की राजनैतिक सरगर्मी तेज हो गयी हैें। इस चुनाव में नपं के पूर्व अध्यक्ष दिनेश मुनमुन राय ने अपनी माता जी को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाने की घोषणा कर चुकें हैं। कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों के नामांे की घोषणा होना अभी शेष हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि 2008 में सिवनी विस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर तीस हजार से अधिक वोट लेने वाले मुनमुन राय एक बार फिर से विस चुनाव लड़ने की योजना बनाये हुये हैं। इसलिये नपं का चुनाव जीतना उनके लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ हैं। बताया जाता है कि जिला मुख्यालय सहित कई स्थानों के इंका और भाजपा नेताओं के नाम मुनमुन की उस डायरी में नोट हैं जिसमें चुनावी रसद दिये जाने का विवरण दर्ज हैं। इसके अलावा यह चुनाव लखनादौन की भाजपा विधायक शशि ठाकुर के लिये भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र से भाजपा को लंबी हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा मंड़ला संसदीय क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के लिये भी प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं। राज्यसभा सांसद बनने के बाद उनके निर्वाचन क्षेत्र में यह पहला चुनाव हैं। वैसे तो मंड़ला और डिंडोरी में भी कई जगह चुनाव हैं लेकिन लखनादौन जीतने का अपना एक अलग महत्व हैं। रहा सावल कांग्रेस का तो इसमें प्रतिष्ठा दांव में लगेगी जिले के इकलौते इंका विधायक एवं विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की क्योंकि अपने विस क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में हारने के बाद भी लखनादौन क्षेत्र से मिली लंबी बढ़त को अपनी उपलब्धि बताने वाले हरवंश सिंह को यह चुनाव भी जीतना होगा वरना उन पर मुनमुन से सांठ गांठ के आरोपों की एक बार फिर पुष्टि हो जायेगी।यह भी सही है कि प्रतिष्ठा तो केवल एक की ही बचेगी लेकिन इस जिले में सालों से चल अंर्तदलीय नूरा कुश्ती में कौन कौन से पहलवान शामिल होते हैं? इसे लेकर राजनैतिक क्षेत्रों में उत्सुकता बनी हुयी हैं। 
इंका और भाजपा अध्यक्षों के लिये चुनौती- पहले भाजपा और फिर कांग्रेस ने अपेक्षाकृत युवा नेताओं के हाथों में जिले में नेतृत्व सौंपा हैं। जिला भाजपा के अध्यक्ष सुजीत जैन हैं और कांग्रेस की कमान हीरा आसवानी के हाथों में हैं। इन दोनों ही नेताओं के कार्यकाल का लखनादौन नपं का चुनाव पहला चुनाव हैं जहां दोनों ही दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हैं। जिले में दो लालबत्ती भाजपा के पास हैं तो एक लालबत्ती कांग्रेस के पास भी हैं। दोनों ही पार्टियों के लिये यह चुनाव चुनौतीपूर्ण इसकिलये हैं कि दोनों को एक दूसरे से नहीं वरन एक निर्दलीय उम्मीदवार की तगड़ी चुनौती का सामना करना हैं। वैसे तो मिशन 2013 में लगे ये दोनों ही राजनैतिक दल प्रदेश स्तर पर इसें मिनी आम चुनाव मानकर लड़ रहें हैं। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि प्रदेश भर में आदिवासी अंचल में हो रहे नगरीय निकायों के चुनाव परिणाम इस बात का भी फैसला करेंगें कि आदिवासी मतदाताओं में किसकी कितनी पैठ बची हैं। इसीलिये दोनों ही पार्टियों के प्रदेश नेतृत्व को जिले के दोनों युवा अध्यक्षो से यही अपेक्षा है कि वे इस कसौटी पर खरे उतरें। इन चुनावों को लेकर प्रतिपक्ष के नेता राहुल सिंह और प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया लखनादौन का दौरा भी कर चुके हैं। 
ना जाने कितने बार लोग देगें और नरेश ग्रहण करेंगें आभार- शहर की सबसे घटिया और बहुचर्चित रोड़ के पाप का भार भी तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर के ही कंधों पर था। उनके चहेते भाजपायी ठेकेदारों ने ही इसे बनाया था। शिकायत होने पर नपा की तत्कालीन भाजपा की अध्यक्ष श्रीमती पार्वती जंघेला से तीन लाख रूपये की रिकवरी भी प्रदेश सरकार ने निकाली थी जो आज तक वसूल भी नहीं हो पायी हैं। इसके अलावा तीन तीन लाख रुपये की रिकवरी दो सी.एम.ओ. पर भी निकाली गयी थी। महाकौशल विकास प्राधिकरण के कबीना मंत्री के दर्जे के साथ बनते ही नरेश दिवाकर ने इस सड़क के लिये प्राधिकरण से राशि स्वीकृत की थी। राशि कम पड़ने पर सांसद के.डी.देशमुख से दस लाख रुपये की राशि सांसद निधि से इस सड़क के लिये ली गयी। इन दोनों उपलब्धियों के लियें नरेश दिवाकर के आभार की विज्ञप्तियां प्रकाशित हुयीं। अभी रोड़ बन कर पूरी भी नहीं हुयी थी कि एक बार फिर नरेश दिवाकर का आभार व्यक्त किया गया। बेचारे सांसद देशमुख तो पैसे भर देकर पिक्चर से दूर हो गये। धटिया सड़क बनने के पाप का भार अपवने कंधों से उतारने के लिये भी यदि आभार व्यक्त किया जाता हैं तो धन्य हैं आभार देने वाले और उससे भी ज्यादा धन्य हैं आभार ग्रहण करने वाले।
नेता बन गये भागीरथ और गंगा हो गयी कर्जदार- बनने के पहले वरदान मानी जाने वाली भीमगढ़ जलावर्धन योजना शहर के लिये अब अभिशाप बन गयी हैं। शहर का लगभग हर आदमी जानता है कि घटिया पाइप लगनें के कारण आधी क्षमता से पानी छोड़ा जाता हैं जिससे मोटरें को दुगने समय तक चलना पड़ता है और इस कारण बिजली का बिल ज्यादा आता हैं। लेकिन एक गजब की बात यह भी है कि कांग्रेा राज में कांग्रेसी और भाजपा के राज में भाजपा नेेताओं द्वारा जांच की मांग करने पर भी इस योजना की जांच नहीं हो पायी और शहर का आम आदमी चंद लोगों के पाप को ढ़ो रहा हैं। हाल ही में हुयी परिषद की अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और उपाध्यक्ष राजिक अकील की उपस्थिति में हुयी बैठक में इस बात का खुलासा हुआ हैं कि परिषद पर इस योजना का बिजली का बिल 16 करोड़ रुपये देना हैं जिसके लिये सरकार से अनुदान मांगने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से लिया गया हैं। यह भी एक अजीब बात हैं कि इस योजना का श्रेय लेकर समय समय पर नेता तो भगीरथ बन गये लेकिन गंगा हर दिन कर्जदार होती गयी। यह भी विदित हुआ हैं कि राज्य सरकार ने शहर के विकास के लिये मिलने वाली राशि में से पिछले तीन साल से एक करोड़ रु. काट कर बिजली के बिल में समायोजित करा लिये हैं। वैसे ही जर्जर सड़के,नालियों का आभाव आदि देखते हुये जहां एक तरफ मुख्यमंत्रीर जी को अतिरिक्त राशि देना चाहिये थी वहीं ऐसा ना करके प्रदेश सरकार ने तीन करोड़ रु. काट कर शहर का मुह पोंछ लिया हैं। यहां विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि शिवराज सिंह ने पालिका चुनाव के दौरान शहर में रोड़ शो किया था और लोगों को बड़े बड़े सब्जबाग दिखाये थे। लेकिन आज लोग अपने आप को ढ़गा सा महसूस कर रहें हैं। ऐसी एक भी सौगात प्रदेश सरकार ने शहर को नहीं दी है जिसे शिव की नगरी शिवराज का प्रसाद समझ सके।“मुसाफिर“    



पेंच के बाम्हनवाड़ा गांव में अब तक शुरू नहीं हो पा रहा है बांध का काम 
दो बार पुलिस प्रोटेक्शन में भी शुरू नहीं हो पाया कामः आधे पक्के बांध का काम है चालू
सिवनी ।विस चुनाव के पहले पेंच परियोजना पूर्ण हो जाने की शिवराज की गर्जना पूरी होती नहीं दिखायी दे रही हैं। विभाग के तेज तर्रार माने जाने वाले प्रमुख सचिव जुलानिया भी पूरे पक्के   बांध का काम चालू नहीं करा पा रहें हैं। 
उल्लेखनीय है कि छिंदवाड़ा और सिवनी जिले के 242 गांवो की 89 हजार 3 सौ 78 हेक्टेयर भूमि की सिचायी करने वाली यह महत्वाकांक्षी परियोजना लंबे समय से राजनीति का शिकार होते चली आ रही हैं। भाजपा के राष्ट्रीय नेता लालकृष्ण आडवानी की रथ यात्रा के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने आम सभा में यह गर्जना की थी कि कोई भी माई का लाल इस योजना को रोक नहीं सकता और सन 2013 के पहले यह योजना पूरी हो जायेंगी। इसके बाद विभाग के प्रमुख सचिव जुलानिया ने छिंदवाड़ा और सिवनी जिले का दौरा कर प्रशासनिक अधिकारियों के साथ भी बैठक की थी। 
प्राप्त जानकारी के अनुसार पेंच परियोजना में पक्के बांध का पूरा काम अभी भी प्रारंभ नहीं हो पाया हैं। माचागोरा गांव की तरफ से तो पक्के बांध का काम शुरू हो गया है लेकिन विवादास्पद बाम्हनवाड़ा गांव की ओर से पक्के        बांध का काम अभी भी चालू नहीं हो पाया हैं। बताया जाता है कि लगभग 160 से ज्यादा कृषि खातों की भूमि बाम्हनवाड़ा में अधिगृहीत की गयी हैं। स्पिल वे निर्माण में 12 किसानों की भूमि आना बताया गया हैं जिन्हें मुआवजा भी दे दिया गया हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार छिंदवाड़ा जिले में आने वाले ग्राम बाम्हनवाड़ा में पुलिस प्रोटेक्शन में दो बार काम चालू करने की कोशिश की गयी लेकिन प्रशासन काम चालू नहीं करा पाया। यदि इस हिस्से में काम नहीं चालू हो पाया तो आधे हिस्से में बनने वाला पक्का बांध किसी काम का नहीं रहेगा क्योंकि जब तक पूरा नाला क्लोजर नहीं तब तक नदी का पानी रुकेगा ही नहीं तो खेतों की सिंचायी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता हैं। 
जिला और पुलिस प्रशासन क्या सही में अपनी निगरानी में भी काम चालू नहीं करा पा रहा है,या आंदोलनकारी इतने उग्र हैं कि उन पर काबू नहीं किया जा सक रहा हैं या इसमें कोई और पेंच है? फिलहाल तो यह एक शोध का विषय बना हुआ हैं।         




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