23 मई को पेट्रोल की
कीमत में साढ़े सात रूपये का ईजाफा होता है...तो खूब हो हल्ला मचता है...मानव
स्वभाव भी है कि किसी भी चीज का असर हमारे दिमाग में 24 से 48 घंटे तक रहता है।
यहां भी ऐसा ही हुआ था...अगले ही दिन राजनीतिक दलों के साथ आम लोग भी सड़कों में
उतर आए और पेट्रोल की कीमतों में हुई साढ़े सात रूपये की बेतहाशा बढ़ोतरी को वापस
लेने की मांग उठी...लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया...ये गुस्सा कम होता गया। 31 मई
को एनडीए के भारत बंद ने एक बार फिर से लोगों को इसकी याद दिला दी। इसकी याद भी उसके
अगले ही दिन धुंधली पड़ गयी...ऐसे में पेट्रोल की कीमतों पर भारी दबाव झेल रही
केन्द्र सरकार के दबाव का असर कहें या फिर कच्चे तेल की कीमतों में कमी होना...तेल
कंपनियों ने पेट्रोल 2 रूपये सस्ता करने का ऐलान कर दिया। साढ़े सात रूपये की बढ़ोतरी
के बाद दो रूपये की कमी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है...लेकिन लोग ये सोच कर
खुश हैं कि पेट्रोल सस्ता हो गया है। ये तेल कंपनियों का सोचा समझा एजेंडा था कि
पहले पेट्रेल की कीमत में जरूरत से ज्यादा ईजाफा कर दो और फिर उसमें मामूली कटौती
कर दो या फिर वाकई में कच्चे तेल की कीमत का असर है...ये तो बहस का मुद्दा है।
लेकिन अगर वाकई में दो रूपये की कटौती कच्चे तेल की कीमतों में कमी का असर है तो इससे
पहले जब कच्चे तेल की कीमत में आयी थी...तो तब तेल कंपनियों ने क्यों नहीं पेट्रोल
की कीमतें कम की थी। इसका सीधा मतलब ये निकलता है कि पहले कीमतों में मोटा ईजाफा
कर दो...औऱ जब इस पर लोग हो हल्ला मचाने लगे तो मलहम के नाम पर अपने ऐजेंडे के तहत
कीमतों में मामूली कटौती कर दो...ताकि लोग बढ़ी हुई कीमत को आसानी स्वीकार कर
लें...औऱ इस पर हो हल्ला न मचे...जो कि इस बार तेल कंपनियों ने किया है। बहरहाल
सरकार भले ही इस सब का दोष तेल कंपनियों के सिर मढ़ रही हो...लेकिन पर्दे की पीछे
की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। ऐसा नहीं है कि पेट्रोल की कीमत में बढ़ोतरी के
कुछ दिन उसमें कमी करने का ये खेल पहली बार खेला गया है...जब – जब पेट्रोल की
कीमतें बढ़ी हैं...तब - तब ये सब होता आया
है...पहले और इस बार में फर्क सिर्फ इतना है कि इससे पहले पेट्रोल के दामों में
ईजाफा इस हद तक कभी नहीं हुआ था। दो रूपये की कटौती होने के बाद पेट्रोल साढ़े
पांच रूपये अभी भी महंगा है...जो भी बीते कई सालों के हिसाब से अच्छी खासी बढ़ोतरी
है। लोग हर बार मान जाते हैं...और चीजों को भूल जाते हैं...शायद यही चीज तेल
कंपनियों और हमारी सरकार की ताकत बन जाती है...और महंगाई बढ़ने का सिलसिला कभी
नहीं रूकता। हालांकि समय – समय पर हुए चुनाव में जनता ने ऐसे लोगों को अपनी ताकत
का एहसास कर उन्हें सत्ता से बेदखल कर आईना भी दिखाया है...लेकिन सवाल ये उठता है
कि क्या सरकार में बैठे लोगों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि आमजन से जुड़े
मुद्दों पर राजनीति से ऊपर उठकर काम किया जाए।
दीपक
तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com
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