शीशे के पिंजरे में गुलामी करते मेहनतकश पर
बेवजह शब्दों का हंटर चलता बॉसनुमा जोकर
अक्सर पिंजरे को अपनी सल्तनत समझ लेता है
भ्रम का शिकार जोकर उछलता है, चीखता है
मेहनतकशों पर अनायास , भौकने लगता है
खौफ और कुंठा से भरी शीशे की दिवार को देखर
टकला,तोंदवाला,कुंठित , बॉसनुमा गीदड़ खुश होता है
शायद उसकी कोशिश नंबर बढ़ाने की है
शायद उसकी कोशिश अपनी औकात जताने की है
संभव है वो कोई साजिश रच रहा हो
वो मेहनतकशों को नाकारा साबित करना चाहता हो
मकसद जो भी हो, मामला दया का है .
दुआ करिये पिंजरे में रहनेवालों का भ्रम बना रहे
ताकि बाहर की दुनिया सलामत रहे ..
ताकि बाहर की दुनिया सलामत रहे ..
अनहद
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