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12.5.16

शोध : 90 प्रतिशत पुरुष और 82 प्रतिशत महिलाएं धार्मिक स्थलों पर बजने वाले लाउडस्पीकरों से अपने को असहज महसूस करते हैं

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha में डॉ. कठेरिया के नेतृत्व में विषय- ‘ध्‍वनि प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण’ पर नागपुर में हुआ शोध, रात्रि में सोते समय सड़क पर दौड़ते वाहनों का शोर नींद में खलल डालता है, 90 प्रतिशत पुरुष और 82 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि धार्मिक स्थलों पर बार-बार बजने वाले लाउडस्पीकरों से वो अपने को असहज महसूस करतीं हैं, 87 प्रतिशत लोगों ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण श्रवण शक्ति हो रही है क्षीण, 95 प्रतिशत लोगों ने माना गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है ध्वनि प्रदूषण, धार्मिक स्थल बन रहे ध्वनि प्रदूषण का कारण... ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की क्षमता हो..


बढ़ती जनसंख्‍या, विकसित राष्‍ट्रों में शुमार होने की होड़ और बढ़ते वाहनों की संख्‍या ने ध्‍वनि प्रदूषण को बढावा दिया है। इससे मानव ही नहीं बल्कि पृथ्‍वी की संपूर्ण जाति का अस्तित्‍व खतरे में है। ध्‍वनि प्रदूषण के कारण मानव में आक्रामकता, रक्‍तचाप बढ़ना, श्रवण शक्ति में कमी, याददाश्‍त कम होना और नींद न आना जैसी बीमारी उत्‍पन्‍न होती है। जिससे रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो रही है। नागपुर में ध्‍वनि प्रदूषण जैसी समस्‍या की स्थिति, वर्तमान जनजीवन और आम लोगों पर ध्‍वनि प्रदूषण के प्रभाव को समझने के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के जनसंचार विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. धरवेश कठेरिया के नेतृत्व में नागपुर शहर में विषय- ‘ध्‍वनि प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण’ पर शोध हुआ।

शोध में प्राप्‍त आंकडों के अनुसार 90 प्रतिशत पुरुष और 82 प्रतिशत महिलाओं ने धार्मिक स्‍थलों पर 70 डेसिबल से ऊपर की आवाज से बार-बार बजने वाले लाउडस्‍पीकरों को असहजता का प्रमुख कारण बताया। प्रतिभागियों के अनुसार धार्मिक स्‍थलों पर विशेष कार्यक्रम एवं उत्‍सवों से ध्‍वनि प्रदूषण का स्‍तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है जिसका प्रभाव आस-पास के इलाकों में कई दिनों तक रहता है।
87 प्रतिशत पुरुष और 78 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि अचानक प्रेशर हॉर्न बजने से आस-पास के लोग असहज महसूस करते हैं। कई बार प्रेशर हॉर्न बजने से लोग डर के कारण दुर्घटनाग्रस्‍त भी हो जाते हैं। यह जानकर आश्चर्य होगा कि तीखी आवाज (अजीबो-गरीब आवाज) वाले प्रेशर हॉर्न को रोकने के लिए ध्वनि नियंत्रण एक्ट 2000 और सड़क परिवहन अधिनियम 1988 में कोई भी कानून नहीं है। विशेष अवसरों पर होने वाली आतिशबाजी से कुछ समय ध्‍वनि प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ ही साथ वायु प्रदूषण का स्‍तर भी बढ़ जाता है जिससे लोगों को सांस लेने में परेशानी भी होती है। 93 प्रतिशत पुरुष और 87 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि आतिशबाजी परेशानी का कारण है।

शोध का हवाला देते हुए डॉ. कठेरिया ने कहा कि ध्‍वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव से आम जन-जीवन त्रस्‍त हो गया है। कहीं प्रेशर हॉर्न की आवाज, कहीं धार्मिक स्थलों पर बजते लाउडस्पीकर तो कहीं विशेष अवसरों पर होती आतिशबाजी ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी इस पर लगाम नहीं लगाया जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण गंभीर समस्या बनती जा रही है। समय से सरकार के द्वारा सख्त कदम नहीं उठाया गया तो इसका प्रभाव आनेवाली पीढ़ियों पर भी देखने को मिलेगा। ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए आमलोगों में जागरुकता की आवश्‍यकता है। बिना जागरुकता फैलाए ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना बहुत मुशिकल है।

शोध संबंधी तथ्यों और आंकड़ों के संकलन के लिए 400 प्रश्नावली/अनुसूची को आधार बनाया गया है। प्रस्तुत शोध नागपुर के शहरी क्षेत्र में रहने वाले प्रतिभागियों के विचारों और सुझावों पर विशेष रुप से केंद्रित है। शोध में 18 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष और महिला प्रतिभागियों से क्रमश: 200-200 प्रश्नावली को शोध का आधार बनाया गया है। जिनसे ध्‍वनि प्रदूषण संबंधी समस्‍याओं को जानने का प्रयास किया गया है।

शोध के दौरान यह पाया गया कि रात्रि में सोते समय सडक पर दौड़ते वाहनों का शोर नींद में खलल डालता है। जिससे लोगों में चिड़चिड़ापन के साथ-साथ लेट तक साने की आदत हो जाती है। लगभग 87 प्रतिशत पुरुष और महिलाओं का मत है कि ध्‍वनि प्रदूषण के कारण श्रवण शक्ति प्रभावित हो रही है। 96 प्रतिशत पुरुष और 95 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि ध्‍वनि प्रदूषण गंभीर समस्‍या का रूप लेता जा रहा है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। कुल जनसंख्‍या का लगभग आधे से ज्यादा लोग ध्‍वनि प्रदूषण कानून से परिचित नहीं हैं। यह साबित करता है कि ध्‍वनि प्रदूषण के प्रति लोग जागरुक नहीं हैं।

शोध अध्ययन में डॉ. कठेरिया के अलावा स्‍वतंत्र पत्रकार शिवांजलि कठेरिया, पीएच.डी. शोधार्थी निरंजन कुमार, आईसीएसएसआर परियोजना के शोध सहायक नीरज कुमार सिंह, एम. फिल. जनसंचार शोधार्थी हिमानी सिंह, एम.ए. प्रदर्शनकारी कला की छात्रा भाग्यश्री राउत, एम.ए. जनसंचार  के छात्र अविनाश त्रिपाठी एवं एम.ए. जनसंचार  के पूर्व छात्र शैलेंद्र कुमार पाण्डेय की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
शोध में शामिल प्रतिभागियों के अनुसार ध्‍वनि प्रदूषण को कम करने के लिए व्‍यक्ति को खुद की आदतों में परिवर्तन लाने की आवश्‍यकता है। ध्‍वनि प्रदूषण जैसी समस्‍या प्राकृतिक नहीं है बल्कि यह मानव निर्मित है इसे कम करने के लिए स्वनियमन और जागरुकता की जरूरत है। ध्वनि प्रदूषण को भविष्य की भयावह समस्या बताते हुए प्रतिभागियों ने कहा कि सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जिससे ध्वनि प्रदूषण से होने वाली बीमारियों में कमी आये और सभी का जनजीवन सामान्य हो पाये।

सुझाव
शोध अध्ययन में प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर निम्नलिखित सुझाव दिए जा रहे हैं-
सरकार को विशेष जागरुकता अभियान चलाकर ध्वनि प्रदूषण स्वनियमन की जानकारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
ध्वनि प्रदूषण के संबंध में जागरुकता हेतु इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण संबंधी नियमों का कठोरता से पालन करते हुए ऐसे वाहनों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए जो प्रेशर हॉर्नया मानकों से अधिक आवाज वाले यंत्र प्रयोग किए जा रहे हैं।
धार्मिक स्थलों पर लगाए गए लाउडस्पीकरों को तत्काल प्रतिबंधित करते हुए निश्चित मानकों के अनुरूप धार्मिक स्थलों के दायरे में ही ध्वनि को सीमित करने की आवश्यकता है।
विशेष स्थलों पर ध्वनि प्रदूषण प्रतिबंधित क्षेत्र की सूचना का प्रचार-प्रसार करते हुए पूरे शहर में इस तरह के नियमों का पालन सख्ती से होना चाहिए।

डॉ. धरवेश कठेरिया                                                                                                                    
सहायक प्रोफेसर, जनसंचार विभाग,                                                    
महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा, महाराष्‍ट्र।
E-mail:- dkskatheriya@yahoo.com


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