१ जनवरी २००० पूरी दुनिया के लिए तीन-तीन दृष्टियों से खुशियाँ मनाने का अवसर लेकर आया था.यह अद्भुत संयोग ही था कि इस दिन एक साथ नई सहस्राब्दी,नई शताब्दी और नववर्ष की शुरुआत हो रही थी.वाईटूके की आशंकाओं के बीच पूरी दुनिया जश्न में डूबी हुई थी लेकिन भारत में लोग नई सहस्राब्दी,नई शताब्दी और नए साल का स्वागत करने के बदले साँस रोके इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आईसी-८१४ के चालक दल समेत १९० अपहृतों की रिहाई का इंतजार कर रहे थे.खैर किसी तरह ३१ दिसंबर,१९९९ को यात्री तब जाकर रिहा हो पाए जब भारत सरकार ने विपक्ष से परामर्श के बाद उनके बदले भारत की विभिन्न जेलों में बंद तीन खूंखार आतंकवादियों को विमान-अपहरणकर्ताओं के हवाले कर दिया.एक बार फ़िर हमने आतंकवाद के आगे घुटने टेक दिए थे और कायरता का परिचय दिया था.इस ऐतिहासिक दिन भारतीयों ने खुशियाँ मनाई जरूर लेकिन बुझे मन से,हीन भावना से ग्रस्त व्यक्ति की तरह.हमने आतंकवाद के खिलाफ बिना लड़े ही हार मान की थी.बाद में वाईटूके की आशंका भी निर्मूल साबित हुई.आज दुनिया और भारत नई सहस्राब्दी और शताब्दी में १० साल आगे आ चुके हैं.अरबों साल पुरानी धरती और हजारों साल पुरानी मानव-सभ्यता के इतिहास में भले ही यह कालखंड काफी छोटा हो लेकिन तेजी से परिवर्तित हो रही आज की दुनिया में इसका महत्त्व किसी शताब्दी से कम नहीं.दुनिया ने इन दस सालों में जो कुछ और जितना कुछ देखा है शायद सौ साल पहले वही और उतना ही घटित होने में कम-से-कम एक शताब्दी का समय लगता.यही वह दशक है जिसने पश्चिम को बताया कि आतंकवाद का कोई निर्धारित क्षेत्रफल नहीं होता.इसी एक दशक में भारत सहित पूरी दुनिया में संचार क्रांति हुई और मोबाईल फोन और सेवाएँ इतने सस्ते हो गए कि कम-से-कम इस एक क्षेत्र में तो साम्यवाद आ ही गया.याद कीजिए दस साल पहले सभी विकासशील देश पश्चिम की दैत्याकार अर्थव्यवस्थाओं और कंपनियों से किस तरह आतंकित-आशंकित थे.हर भारतवासी के मन में भी भय था कि कहीं इनमें से कोई कंपनी फ़िर से ईस्ट इंडिया कंपनी न साबित हो जाए.लेकिन आज स्थितियां बिलकुल उलट हैं.आज हमारी गिनती दुनिया की सबसे तेज रफ़्तारवाली अर्थव्यवस्थाओं में होती है.आज महाशक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति भारत जो दस साल पहले अंतर्राष्ट्रीय भिखारी कहलाता था,के दरवाजे पर मदद की गुहार लेकर आता है और उम्मीद से ज्यादा लेकर वापस जाता है.जाहिर है कि अमेरिका और पश्चिम की वैश्विक श्थिति पिछले १० सालों में कमजोर हुई है.उसकी और अन्य पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाएं बीमार हो गई हैं और उनकी सबसे बड़ी परेशानी तो यह है कि ईलाज भी नहीं मिल रहा.तिस पर ज्यों-ज्यों दवा की जा रही है मर्ज बढ़ता ही जा रहा है.अब बदले वातावरण में चीन और भारत दुनिया के विकास के नए ईंजन बन गए हैं.चीन की अर्थव्यवस्था का इन दस सालों में अभूतपूर्व विकास हुआ है और वह अपने पड़ोसी जापान को पछाड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.जबकि भारत भ्रष्टाचार के साथ विकास करता हुआ तेज रफ़्तार के बावजूद चीन से काफी नहीं तो खासा पीछे जरूर छूट गया है.लेकिन एक बात भारत के पक्ष में है और वह यह है कि भारत वर्तमान विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या को धारण करनेवाला देश है जबकि दुनिया के अन्य देश जिसमें चीन भी शामिल है अब बुढ़ाने लगे हैं.भारत की यह युवा पीढ़ी साइबर युग की है और इसे न तो नहीं सुनने की आदत है और न ही काम में विलम्ब को बर्दाश्त करने की.इसे तो प्रत्येक काम कम्प्यूटर के माऊस के क्लिक होते ही संपन्न हो जाते देखने अभ्यास है.सिर्फ आज का युवा भारत ही नहीं अपितु पूरा भारत नई उम्मीदोंवाला भारत है.भारतीयों को अब जाति और धर्म के नाम पर बरगलाने का समय बीत चुका है.बिहार के चुनाव परिणामों ने पूरे देश के सियासतदानों को विकास के गीत के साथ सुर और ताल साधने की चेतावनी दे दी है.जनता ने उन्हें सन्देश दे दिया है कि वक़्त रहते बदल जाओ नहीं तो हम राजनीति की दशा और दिशा को ही बदल देंगे.बीता हुआ कल चाहे जिसका भी रहा हो इंग्लैण्ड,अमेरिका,रूस या चीन का;आनेवाला कल भारत का है,भारतीयों का है.हम दुनिया को आश्वस्त करते हैं कि आनेवाले कल में न तो आतंकवाद होगा और न ही प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे के लिए द्रोण हमले ही होंगे क्योंकि भारत पश्चिमी देशों और चीन की तरह दूसरों की कीमत पर विकास का हिमायती नहीं है वह तो तु वसुधैव कुटुम्बकम का प्रवर्तक है.तो आईये हम जय भारत और जय जगत के गगनभेदी उद्घोष के साथ सहस्राब्दी और शताब्दी के पहले दशक को अलविदा कहें और नई उम्मीदों,नए सपनों से लबरेज दूसरे दशक की भावभीनी अगवानी करें.जय हिंद!
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