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18.12.10

मैं गुबारों में तुम्हें ही खोजता हूँ

सनसनाती ये हवाएं सर्द बर्फानी
कि जैसे रात की चादर चुराती भागती हों ;
भीगती हों ओस से
आकुल
तुम्हारी याद की मारी
बनीं बेचैन तूफानी
हमारे साथ
धुंधली चांदनी में जागती हों ।

ओस की हों , धूल की या धुंद की हों
पर गुबारों सी खड़ी हर ओर मेरे
नाचती है
सनसनाती ये हवाएं
चिट्ठियों सी बांचती हैं
और मैं ..........................................???

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