हम जिस व्यवहार की अपेक्षा नही करते किसी दिन वैसा हमारे साथ हो जाए तो? कई दिनो तक ना तो हम ठीक से सो पाते है और ना ही उस व्यक्ति को भूल पाते हैं. हम भी तो पूरे साल जाने-अंजाने में कितने लोगों से अप्रत्याशित तरीके से पेश आते हैं. क्या वो सारे लोग हमें भी भूल पाते हाेंगे? साल के पहले दिन हम सब के साथ अच्छे से पेश आते भी हैं तो अपने स्वार्थ के कारण कि हमारा पूरा साल सुख-शांति से बीत जाए. हमारा हर दिन अच्छा बीत सकता है बशर्ते हम हर दिन को साल के पहले दिन की तरह जीना सीख लें और इतना याद रख लेकिन ईश्वर ने दिल और जुबान बनाते वक्त ह्ड्डी का इस्तेमाल इसीलिए नहीं किया क्योंकि उसे इनके इस्तेमाल में कठोरता पसन्द नहीं है।
अरे, अब नए साल में बस एक सप्ताह बचा है! जैसे-जैसे दिसम्बर अंतिम सांसे गिन रहा है, नए साल के आगमन की आहट भी तेज होती जा रही है. समाप्त होता यह साल हमे यह कहने को तो मजबूर करता ही है कि पता ही नहीं चला कितनी जल्दी बीत गया यह साल. हम में से ज्यादातर लोगो को साल के पहले दिन या दीवाली वाले दिन अपने बचपन के साथ ही परिवार के बुजुर्गों की वह सीख भी याद आ जाती है जब भाई-बहन या पड़ौस के दोस्त से झगडे की शुरुआत ही होती थी कि दादी-नानी प्यार से समझाने आ जाती थीं. आज के दिन तो मत झगड़ो नहीं तो पूरे साल लड़ते-झगड़ते रहोगे। बचपन मे मिले इन संस्कारों की छाप हमारे मन पर इतनी गहरी पड़ी हुई है कि अब हम तो साल के पहले दिन इस बात का ध्यान रखते ही है, साथ ही बच्चों को भी उसी अन्दाज में समझाते हैं।
साल के उस पहले दिन के 24 घंटाें ंका हिसाब तो हम सब के दिलो-दिमाग मे दर्ज रहता है लेकिन बाकी 364 दिनाें का हिसाब उन लोगों के पास सुरक्षित रहता है जो काम और बिना काम के हम से मिलते-बिछुड़ते रहते हैं। जरूरी नहीं कि कोई बार-बार ही मिले, किसी से बार-बार मिलने के बाद भी वह शख्स हमें पसन्द नही आता इसी तरह हमे भी कहा याद रहता है कि जो हमसे मात्र एक बार कुछ पल के लिए ही मिला था हम उसे खुश कर पाए या नहीं।
दुकानदार के लिए ग्राहकों की कमी नहीं है और हर ग्राहक खरीदारी कर के ही जाए यह भी जरूरी नहीं, लेकिन सफल दुकानदार वही है जो हर ग्राहक का मुस्कुराते हुए स्वागत करता है और जो ग्राहक के आगमन पर अपनी कुर्सी से उठना, पेट का पानी हिलाना भी पसन्द नहीं करता वह यह भी नहीं समझ पाता कि पड़ौसी दुकानदार को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिल रही और वह मक्खी मारने वाली मुद्रा में सुबह से शाम तक क्यों बैठा रहता है जबकि दोनों दुकाना पर एक ही कम्पनी का माल समान भाव में ही मिलता है।
जब हम साल के पहले दिन सबसे बेहतर तरीके से पेश आ सकते है तो पूरे साल क्यों नहीं? यह असम्भव भी नहीं है क्योकि पहले दिन तो हम बेहतर एक्टर साबित हो ही गए है। उस एक दिन भी हमारा स्वार्थ यही रहता है कि यह पहला दिन अच्छा बीत जाए। हमें अपने भले की तो चिंता रहती है लेकिन हमारे कारण किसी का मन ना दुखे, किसी का दिन, किसी का मूड खराब ना हो इसकी चिंता क्यों नहीं रहती। हम एक दिन में कितने लोगों की हंसी-खुशी का कारण बने यह हम बार-बार गिनाते हैं, लेकिन बाकी पूरे साल क्या हम वैसा व्यवहार कर पाते हैं? तो क्या माना जाए साल के पहले दिन की शुरुआत हम मुखौटा लगा कर करते हैं या बाकी दिनों में अपने असली चेहरे के साथ जीते हैं।
यह भी तो हो सकता है कि किसी और की सलाह मान कर अच्छे की शुरुआत करने की अपेक्षा साल के पहले दिन ही यह संकल्प लें कि बनते कोशिश हर दिन यह प्रयास करेंगे कि अपने कार्य-व्यवहार से किसी का दिल नहीं दुखाएंगे, यह संकल्प लेना हमारे इसलिए भी आसान है कि हम भी किसी से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं करते, कोई और रखे ना रखे हम तो हर दिन का हिसाब हाथोहाथ आसानी से पता कर सकते हैं - या तो हम किसी की खुशी का कारण बन जाएं या किसी को अपनी खुशी में बिना किसी स्वार्थ के शामिल कर लें। कहते है भगवान कभी भी हमारे दिल और जुबान में कठोरता पसन्द नहीं करता इसलिए ही इन दोनों को बिना हड्डी के बनाया है। दिल और जुबान के कारण ही तो संसार में प्यार और नफरत का कारोबार फलफूल रहा है. तो नए साल में अच्छा करने के लिए पहला दिन ही क्यों? हर दिन साल के पहले दिन जैसा भी तो हो सकता हैं।
23.12.10
हर दिन हो जाए साल के पहले दिन जैसा
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