मुझे आज अपने और अपने एम.ए. पास मित्रों के माता-पिताओं के ऊपर भारी क्रोध आ रहा है.मुझे और मेरी पूरी पीढ़ी को उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ रही है जो उसने की ही नहीं.गलतियाँ तो माता-पिता की थी जो उन्होंने हमें उच्च शिक्षा दी.हमें खेती-मजदूरी करने लायक नहीं रहने दिया.माना कि उन्हें पता नहीं था कि भविष्य में राज्य में सुशासन बाबू की सरकार आएगी और पढ़े-लिखे और अनपढ़ सब धन बाईस पसेरी हो जाएँगे.फ़िर भी हमें पढ़ाने का अपराध तो उनका ही था चाहे अनजाने में ही क्यों न किया गया हो?आखिर आईपीसी में गैर ईरादतन हत्या के लिए सजा देने का प्रावधान है कि नहीं?फ़िर बिहार सरकार उनके किए अपराध की हमें सजा देने पर क्यों आमादा है?आपने अपने बच्चे के बारे में क्या सोंच रखा है?पाठक महोदय यह प्रश्न आपसे है.अगर आप बिहार से हैं तो अगर आपका बच्चा एम.ए. करना चाहे तो हरगिज नहीं करने दीजिएगा.मियां मैं तो कहता हूँ कि मैट्रिक ही बहुत है.मिलिटरी-पुलिस में चला जाएगा,वेतन भी पूरा मिलेगा और पेंशन भी.जब तक राज्य में सुशासन है इससे ज्यादा की पढाई-लिखाई बेकार ही नहीं संज्ञेय अपराध भी है.समझे कि नहीं?नहीं समझे तो हम समझा देते हैं.हम कम्प्यूटर लेकर बैठे हैं इसी काम के लिए न.अगर आपका बचवा (या बुचिया) एम.ए. कर गया तो क्या करेगा?लेक्चरर बनेगा और मिलेगा क्या?१२००० रूपये मासिक.मतलब इस महंगाई रूपी ऊँट के मुंह में जीरा का फोरन.वह बेचारा कुल मिलाकर टूटे-फूटे व्यक्तित्ववाला दर-दर का भिखारी बनकर रह जाएगा.खुद भी तरसेगा और पूरे परिवार को तरसाएगा.इस महंगाई में प्याज,दाल,दूध,चीनी और सब्जियां तो उसकी पहुँच में नहीं ही होंगी,रोटी का भी जुगाड़ हो पाएगा या नहीं जिस तरह महंगाई बढ़ रही है,गारंटी के साथ कह नहीं सकते.हीनभावना से ग्रस्त होकर या तो जज्बाती शायर बन जाएगा या किंकर्तव्यविमूढ़ मानसिकतावाला विक्षिप्त.उसे न तो समय-समय पर आनेवाले यू.जी.सी. वेतनमान का लाभ मिलेगा और न ही उसकी कभी प्रोन्नति होती.परिणाम यह होगा कि जितना अभिभावक ने यानी आपने उस पर खर्च किया होगा जिंदगीभर कमाने के बावजूद वह उतना भी नहीं कमा पाएगा.अगरचे तो उसकी शादी ही नहीं होगी और अगर किसी लड़कीवाले को उस पर तरस आ भी गया तो उसका वैवाहिक जीवन गारंटी के साथ कलहपूर्ण होगा.पत्नी और बच्चों को अच्छे कपड़े,अच्छे भोजन और अच्छे मकान की चाह होगी जो वह चाहकर भी नहीं दे पाएगा.अनगिनत अभिलाषाएं तिल-तिल कर दम तोड़ेंगी और वह मूकदर्शक बना रहेगा.उसके बच्चे अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पायेंगे.सरकार की गलत नीतियों के चलते पहले ही बर्बाद हो चुके सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना उसकी अनचाही मजबूरी बन जाएगी.पत्नी और बच्चों को गाँव में रखना पड़ेगा और खुद अकेले शहर में कॉलेज के आस-पास डेरा लेकर बैचलर जिंदगी बितानी पड़ेगी.क्या बिडम्बना है कि बूढ़े-लाचार यथास्थितिवादी रीडरों को तो एक लाख से ऊपर की तनख्वाह बेवजह मिलेगी जबकि ऊर्जावान परिवर्तनकारी भावनाओं से ओतप्रोत नौजवानों को अधिकतम १२००० रूपये.सरासर नाइंसाफी नहीं है तो क्या है यह?क्या यही समानता का अधिकार है सुशासन बाबू?क्या समान कार्य के लिए सामान वेतन का अधिकार यही है?जो व्यक्ति दिन-रात घर-परिवार की चिरस्थाई चिंता में डूबा रहेगा वह क्या पढ़ेगा और कैसे पढ़ेगा?वह कहाँ से लेगा उत्साह शिक्षण कार्य के लिए?एम.ए. पास लोगों के लिए संस्थागत भुखमरी की व्यवस्था करनेवाली सरकार क्या बताएगी कि उसके एक मंत्री पर प्रतिमास कितना सरकारी खर्च आता है और उसका एक मंत्री कितनी ऊपरी कमाई कर लेता है?जब मंत्री को परिवार चलाने के लिए प्रतिमाह हजारों रूपये की सरकारी सुविधा और लाखों रूपये की ऊपरी आमदनी चाहिए तो फ़िर समाज का सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति कैसे १२००० रूपये में काम चला लेगा?सुशासन बाबू अगर बहाली नहीं करनी है तो बिलकुल ही नहीं करिए.आपको यह अधिकार नहीं बनता है आप किसी की ज़िन्दगी बर्बाद कर दें.ज्यादा-से-ज्यादा यही होगा कि हमें रिक्शा-ठेला खींचना पड़ेगा.खीचेंगे लेकिन उसमें भी तो आपके राज्य का नाम होगा और आपको ट्रॉफी मिलेगी.दुनिया कहेगी कि वाह क्या राज्य है जहाँ वास्तव में कलियुग है!वाह क्या राज्य है जहाँ हंस वास्तव में दाना चुग रहा है और कौआ (मंत्री) मजे में मोटी खा रहा है.इतना तो निश्चित है कि हम ठेला-रिक्शा खींचकर १२००० रूपये से ज्यादा कमा लेंगे और हमारा आपसे वादा है और यह चुनावी वादा नहीं है कि हम अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज भेजने की गलती नहीं करेंगे जिससे वे आपके दिमाग में रोज जन्म लेने वाले नायाब आइडियाज की चपेट में नहीं आ सकें.उन्हें बिलकुल नहीं पढाएंगे क्योंकि हम जानते हैं कि कहीं गलती से उन्होंने इन्टर कर लिया तो पंचायत या प्रखंड शिक्षक बनकर और अगर महागलती करके एम.ए. कर लिया तो विश्वविद्यालय शिक्षक बनकर आजीवन भयंकर अभाव में जीने की सजा भुगतते रहेंगे.पढाई करने की सजा,साईकिल और स्कूल ड्रेस के लालच में आ जाने की सजा.
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