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14.12.10

आज की एक अन्यमनस्क कविता

मटमैली पक्की छत पर एक काली टंकी सिन्टाक्स की ,
इतना सा ही दिखा रही है मेरी यह छोटी खिड़की ।
मटमैली पक्की छत पर एक काली ....................
कहीं दूर से उड़ता कौवा बैठ वहां सुस्ताता है
ओवेर्फ्लो करती जब टंकी
ताजाजल उसने गटकी ।
मटमैली ...........................
काली टंकी काला कौवा सच्चे दिल से साथी हैं
गिरगिट जैसा रंग बदलना रही नहीं फितरत उनकी ।
मटमैली ............................

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