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8.1.13

सिंहासन खाली चाहिये ...........


सिंहासन खाली चाहिये ...........

देश के गणतंत्र का  नव निर्माण चाहिये
अंधे-खोड़े तंत्र से, अब छुटकारा चाहिये

न्याय की उम्मीद में, दीप बुझने को चला
हर बार की तरह अब तारीख नहीं चाहिये

अपराधी तो अपराधी है,छोटा हो या बड़ा
विषेले नागों का फण,अब कुचला जाना चाहिये 

गीदड़ों की फौज से भय,भेड़ियों को है कहाँ     
जंगल के जर्रे-जर्रे से,अब दहाड़ शेर की चाहिये 

शिखंडीयों की ओट से,तीर चलाओगे कब तक ?
दुराचार से भिड़ने को,अब चौड़ी छाती चाहिये

कोरी बातों के पुलिंदे, कब तक यूँ बहलाओगे ?
लक्ष्यभेद से चुक गये तो,सिंहासन खाली चाहिये 
     

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