चार बार हरियाणा के
मुख्यमंत्री रह चुके इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला ने सत्ता में रहते हुए शायद ही
कभी सोचा होगा कि उनका आखिरी वक्त जेल की सलाखों के पीछे गुजरेगा। 1999-2000 में सत्ता
में रहते हुए ये सत्ता का नशा ही था कि चौटाला ने करीब तीन हजार शिक्षकों की फर्जी
भर्ती करा दी लेकिन कहते हैं कि पाप का घड़ा एक न एक दिन जरूर फूटता है और इस केस
में भी ऐसा ही हुआ और आखिरकार 13 साल के बाद अदालत ने ओम प्रकाश चौटाला और उनके
बेटे अजय चौटाला समेत 55 लोगों को इस घोटाले में दोषी माना है।
इस केस को 13 साल
का लंबा वक्त जरूर लगा लेकिन इस केस ने लोगों में न्यायपालिका के प्रति एक नया विश्वास
पैदा किया है। आज जबकि छोटे से छोटे सरकारी कर्मचारी(सभी नहीं) से लेकर बड़े से
बड़ा राजनेता(सभी नहीं) भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रहा हैं और कई बार हमने
न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार के मामले देखे हैं जिसने न्यायपालिका पर भी लोगों का
विश्वास कम होने लगा था...ऐसे वक्त में एक ऐसे प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियत को
दोषी ठहराया जाना जो चार बार किसी राज्य का मुख्यमंत्री रहा हो वाकई में अदालत का
बड़ा फैसला है और ये फैसला निश्चित ही भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में मील का
पत्थर साबित होगा।
अदालत का फैसला ये
भी साबित करता है कि गलत काम करने वाला भले ही कितना प्रभावशाली क्यों न हो...उसका
वर्तमान और इतिहास कुछ भी रहा हो लेकिन उसके गलत काम उसका भविष्य बिगाड़ने के लिए
काफी हैं। चौटाला ने भी ताउम्र सत्ता के नशे में चूर होकर अपनी जिंदगी गुजारी
लेकिन अदालत का ये फैसला चौटाला के गलत कामों का ही नतीजा है। इस फैसले से न्यायपालिका
में लोगों को भरोसा जरूर मजबूत हुआ है लेकिन इसके बाद भी एक कसक मन में रह जाती
है कि चौटाला ने जो काम 1999-2000 में किया था उसका दोष सिद्ध होने में 13 साल का
वक्त क्यों लग गया..?
शायद वर्तमान में
यही हमारी न्याय व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी है कि अदालत में केस सालों तक लंबित रहता
है और फैसला आने में सालों लग जाते हैं। कई बार तो ट्रायल के दौरान लोगों की मौत
तक हो जाती है लेकिन ट्रायल खत्म नहीं होता। इस केस को ही देख लें तो इस केस में
भी ट्रायल के दौरान 6 लोगों की मौत हो गई।
देश की सर्वोच्च
अदालत की ही अगर बात करें तो एक आंकड़े के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों
की संख्या करीब 60 हजार के करीब है तो देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में वर्ष
2011 तक लंबित मामलों की संख्या करीब 43 लाख 22 हजार है। इससे देशभर की विभिन्न
अदालतों में लंबित मामलों की संख्या का अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है। सुप्रीम
कोर्ट में न्यायाधीश के 31 पदों में से 6 रिक्त हैं तो देशभर के उच्च न्यायालयों
में न्यायाधीशों के 895 में से 281 पद खाली पड़े हैं जो कि न्यायालयों में लंबित
मामलों की एक वजह है।
लंबित मामलों में
अदालतें अगर तेजी दिखाएं और अदालतों में रिक्त पदों को भर दिया जाए तो निश्चित ही न
सिर्फ लंबित मामलों में गिरावट आएगी बल्कि लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था के
प्रति और गहरा होगा क्योंकि आज भी हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग अदालतों में
जाने से घबराते हैं। वे ये मानकर बैठे हैं कि कोर्ट में केस जाने पर उसका निपटारा
होने में सालों लग जाएंगे और उन्हें कोर्ट के ही चक्कर काटने पड़ेंगे और इसमें
उनका समय और पैसा दोनों खर्च होगा जिसका फायदा शातिर किस्म के लोग उठाते हैं। चौटाल
के केस से हमारी न्याय व्यवस्था रोशन हुई है और ये उन नेताओं के साथ ही उन
प्रभावशाली लोगों के लिए भी सबक है जो ये सोचते हैं कि कानून और व्यवस्था उनकी जेब
में है और गलत काम करने पर भी कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसी उम्मीद के साथ
कि अदालतें लंबित मामलों को लेकर गंभीर होंगी और सभी भ्रष्टाचारी एक दिन सलाखों के
पीछे होंगे भारतीय न्याय व्यवस्था को सलाम।
deepaktiwari555@gmail.com
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