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31.1.13

आधी आबादी का दर्द  

आजकल महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप का आयोजन हो रहा है । आज ही एक मैच देखा ।  भारत और  वेस्ट इंडीज के  बीच । मैंने देखा । 43 ओवर बीत चुके थे । सच कहूं तो मुझे पता ही नहीं था कि  क्रिकेट विश्व कप चल रहा है या शुरू हो चुका  है । किसी बीते दिन कहीं पढ़ा जरूर था । रोज अखबार पढता हूँ । लेकिन सिर्फ मतलब की ख़बरें । मैच का रोमांच इतना कि  भारत की आकर्षक बैटिंग देखकर मन मुग्ध हो गया । भारत के 50 ओवर में बनाए गए 284 रन में कामिनी के 100 रन का अपना महत्व है हालांकि मैं उनकी पारी देखने से वंचित रह गया हूँ । हाँ , अंतिम ओवेर्स में जो कुछ हुआ वह बेहद रोमांचक रहा है ।
जब मैच होता है तो मैं सक्रिय  विज्ञापनों के दौरान यदा कदा  अपने काम निकाल लेता हूँ । हर ओवर के बाद थोड़े समय के लिए विज्ञापन आते हैं । खिलाड़ी के आउट होने के बाद भी विज्ञापन आते हैं और इस बीच मैदान पर क्या क्या चल रहा होता है  , पता  ही नहीं चल पाता  । इधर जब से मैं मैच देख रहा हूँ तो मुझे इन कार्यों से निवृत्त होने का अवसर ही नहीं मिल पा रहा है । मैं मैच पूरा देखना चाहता हूँ । और बीच बीच में दिखाए गए डिटेल से प्रथम विकेट के लिए कामिनी और राउत के बीच 224 गेंदों में चली 175 रन की साझेदारी से याद आता है कि  विगत कितने ही दिनों से पुरुष क्रिकेट टीम ऑफ़ इंडिया की तरफ से ऐसी कोई पारी देखने में नहीं आ पायी है ।
इसी बीच आई एच एल का एक विज्ञापन आया है । भारतीय हॉकी लीग का विज्ञापन । लेकिन मैं इतनी देर मैं कोई काम नहीं निपटा सकता हूँ । बीच बीच में एल जी और रिलायंस का भी एक छोटा सा चित्र एक कोने में आ रहा है । मुझे लग रहा है ये इनके प्रायोजक होंगे । शायद आधी आबादी के प्रायोजक । एक कोने में आ रहे हैं । हालांकि मैदान में कुछ बोर्ड मैदान के boundry पर लगे हैं जो शायद स्थायी होंगे । देश के और दुनिया के उद्योगपतियों में कुछ तो महिलायें भी होंगी । रिलायंस के इस प्रकार इस चित्रात्मक विज्ञापन के पीछे शायद नीता अम्बानी की कृपा हो । लेकिन मुझे इससे लगता है कि  जब ओवर बदलता है या कोई खिलाड़ी आउट होता है तो टी वी पर या मैदान पर क्या चल रहा होता है ।
मैदान पर दर्शक हैं । बस उस क्षण से काफी कम हैं जितने भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम द्वारा मैच जीते जाने पर बाद में सबके घर चले जाने पर मैन  ऑफ़ द  मैच के प्राइज के समय स्टेडियम  में बचे रहते हैं । यदि आप वीडिओ क़ो न देखकर सिर्फ आवाज पर ध्यान देंगे तो शायद आपको लगे - कोई खेतों में कौवे उड़ा  रहा है । 40 मिनट्स बीत चुके हैं । कोई विज्ञापन नहीं आया है । सोचता हूँ , कौन कहता है बिना विज्ञापन के कोई कार्यक्रम नहीं चल सकता । यदि महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप चल सकता है तो कुछ और क्यों नहीं ।
यह मेरे देश की नहीं बल्कि दुनिया की आधी आबादी का वर्ल्ड कप है । यदि लिंग भेद पर कहूं तो पुरुष वर्ल्ड कप भी आधी आबादी का ही वर्ल्ड कप होता है । महिला वर्ल्ड कप बिना विज्ञापन के चल रहा है । कहीं कहीं विज्ञापन आ भी रहे होंगे । मैंने तो पिछले 45 मिनट से नहीं ही देखे हैं । मेरी दिक्कत यह नहीं कि  विज्ञापन क्यों नहीं आ रहे । दिक्कत यह है कि  विज्ञापन के बगैर यह कब तक चल पायेगा । कब तक सुरक्षित रहेगा । क्या देश और दुनिया की आधी आबादी सोयी है ? शायद नहीं । लेकिन  वह नियंत्रित है अपनी उस सोच से जिसमे उसने स्वयं अपने अस्तित्व के बारे में वर्षों से सोचा ही नहीं । या क्या वह पुरुषों के द्वारा सोचे विषयों और सीमा तक ही सोच पाती है । मैदान पर सूनापन  क्यों है ? आधी आबादी के इस दर्द को क्या कहूं ?

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