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16.1.13

‘भारतीय मीडिया पर हावी हो रहा है बाजार’


वर्तमान परिपेक्ष्य में जिस तरह से हम देश में बढ़ते मीडिया के प्रभाव को देख रहे हैं, उसका समाज पर अच्छा असर पड़ने के साथ-साथ बुरा प्रभाव भी पड़ रहा है। मीडिया को हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ की कहा जाता है। ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि मीडिया द्वारा देश में क्या परोसा जा रहा है। देश में लगातार मीडिया हाऊस खुलते जा रहे हैं। इनको अच्छे ढंग से चलने के लिए पूंजी की जरूरत होती है। यह पूंजी किस माध्यम से आ रही है। इसका भी ध्यान रखना बेहद जरूरी हो गया है। क्योंकि जिनके हाथों में मीडिया की कमान होगी, वे इसे अपनी तरह से ही हांकेंगे। जिसका असर समाज और देश पर पड़ेगा।
राजधानी के मालवीय स्मृति भवन में बुधवार को ‘भारत-जापान सांस्कृतिक संबन्धों के बदलते आयाम और मीडिया की भूमिका’ पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा एक तीन सत्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी रहे। इसी दौरान उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए पत्रकारिता के छात्रों और वहां मौजूद सभी लोगों को बताया कि अगर मीडिया का नियंत्रण विदेशी हाथों में चला गया, तो मीडिया भारतीय संस्कृति और चेतना समेत सभी पहलुओं को प्रभावित कर देगी। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी के कुठियाला को निर्देश दिया कि वे पत्रकारिता की पढ़ाई में ऐसा पाठ्यक्रम तैयार कराए जाने की जरूरत है, जिससे छात्र भारतीय संस्कृति के मूल्यों को पहचान कर उन्हें सकारात्मक तरीके से समाज में परोसे और भविष्य में ऐसा कभी न हो पाए कि विदेशी हाथों में मीडिया चला जाए। क्योंकि किसी भी देश को प्रभावित करने के लिए, वहां का मीडिया सबसे कारगर हथियार होता है। उन्होंने यह भी बताया कि मौजूदा दौर में भारतीय मीडिया पर बाजार हावी होता जा रहा है। डॉ. जोशी ने इस अवसर पर यह भी बताया कि सांस्कृतिक दृष्टि से नजदीक होने के कारण जापान को पूरब का भारत कहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारत-जापान संबंध विश्व को एक नई दिशा दे सकते है। कार्यक्रम में मुख्य वक्ताओं के रूप में योसियोता काकुरा, काताओकाहिजमे, श्रीमती लोचनी अस्थाना, डॉ. हरजेन्द्र चौधरी, अंकुर मेहरा, अखिल मित्तल आदि उपस्थित रहे। अंत में जगदीश उपासने ने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया तथा तीनों सत्र में मंच संचालन क्रमश: प्रो. रामजी त्रिपाठी, जगदीश उपासने और डॉ. अरुण कुमार भगत ने किया। सूरज सिंह सोलंकी।

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