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22.1.13

छग कांग्रेस और गुटबाजी का दीमक

राजकुमार साहू
जांजगीर, छत्तीसगढ़

इसमें कोई शक नहीं कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता से बाहर है तो उसकी वजह वह खुद है, क्योंकि गुटबाजी का दीमक, छग कांग्रेस को इस कदर चट कर रहा है कि उसके हाथ से सत्ता साल-दर-साल खिसकती जा रही है। कांग्रेस नेताओं के मुंह से यह बात अधिकतर सुनने को मिलती है कि कांग्रेस एक परिवार है और सभी नेता एक धड़े से जुड़े हैं और उनके नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी हैं। छग में कांग्रेसी नेताओं के कहे में कितना दम है, यह तो इसी से जाना जा सकता है कि प्रदेश में जितने बड़े नेताओं के कुनबे हैं, उतने फाड़ हैं। कहीं ‘त्रिफला’ खुद को ताकतवार बताती है तो कहीं ‘चमनप्राश’ को खुद दमदार बताने से नहीं चूकता। कुछ अनुभवी नेता भी जरूरत पड़ने पर सत्ता संभालने के लिए खुद के कांधे को मजबूत बताने से भी नहीं हिचकते।
अहम मसला है, कैसे छग में सत्ता हासिल की जाए, लेकिन इसे कांग्रेस के लिए विडंबना ही कही जा सकती है कि सत्ता मिलने के पहले ही नेताओं को सत्ता सुख के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी नजर आती है ? कांग्रेस के नेताओं के पहले सत्ता हासिल करने ‘गुटबाजी’ भुलाकर जोर लगानी चाहिए, बाद में फिर कुर्सी की लड़ाई में ताकत झोंकनी चाहिए, परंतु इसके उलट ही सोच नजर आती है।
छग कांग्रेस में बीते 10 साल से यही कुछ चल रहा है। जब से कांग्रेस के हाथ से सत्ता खिसकी है, उसके बाद हालात बन गए हैं कि कांग्रेस के नेताओं में ही जुबानी लड़ाई चलती रहती है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि जो खुद ही लड़ते रहें, उनमें दूसरे को हराने का माद्दा कहां से आएगा ? दूसरे को हराने के लिए पहले गुटबाजी को वास्तविक तौर पर भुलानी होगी। केवल बयानों में ही गुटबाजी की बात नकारने से बात नहीं बनने वाली। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जिस बेबाकी के साथ बात कहते हैं और अपनी कमियां गिनाकर उसे दूर करने पर विचार करते हैं। कुछ ऐसा कर दिखाना होगा, छग कांग्रेस के नेताओं को। ‘मतभेद’ को पूरी तरह से खत्म करना होगा। ‘मनभेद’ होने की बात कहकर खुद को तसल्ली देने से काम नहीं चलेगा। यही ढर्रा चलता रहा तो तीसरी बार सत्ता ‘हाथ’ से फिर फिसल जाएगी।
देखिए, छग कांग्रेस के नेताओं में जो आपसी द्वंद चल रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस हाईकमान भी जानती है कि छग में कांग्रेस को मजबूती की जरूरत है। वह यह भी जानती है कि कांग्रेस की कमजोरी के लिए सबसे जिम्मेदार कारण है तो, वह गुटबाजी है। पिछले साल रायपुर आकर राहुल गांधी ने भी कांग्रेस नेताओं को गुटबाजी भूलने का पाठ पढ़ाया था और हिदायत भी दी थी कि ऐसा नहीं हुआ तो सत्ता कभी नहीं मिलेगी और आगे भी ‘वनवास काल’ ही झेलना पड़ेगा। आज जिन राहुल गांधी के उपाध्यक्ष की ताजपोशी के बाद इन नेताओं में उत्साह है या एक तरह से नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं में नई उर्जा का संचार हो गया है, लेकिन चिंता यह भी है कि जिन नेता की कही बातांे को ये नेता नहीं मानते या उनकी रायशुमारी को दरकिनार कर ‘एकला-चलो’ की नीति को अपनाते हैं ? फिर ऐसे नेताओं से राहुल गांधी को क्या उम्मीद हो सकती है ?
अभी खबर आई है कि जयपुर के चिंतन शिविर में छग कांग्रेस के कामकाज को सराहा गया है। निश्चित ही बीते कुछ साल की अपेक्षा छग कांग्रेस काफी मजबूत हुई है, कुछ मुद्दों में भाजपा सरकार को घेरने में कामयाब भी रही, किन्तु कांग्रेस के नेताओं में ‘जितने नेता, उतने फाड़’ की बात नहीं होती तो फिर कांग्रेस और भी अधिक शक्ति के साथ काम कर पाती। छग कांग्रेस की दुर्दशा इसी बात से समझी जा सकती है कि यहां जितने नेता हैं, उनके अपने ‘गुट’ हैं। हर बड़े नेता के साथ, छोटे नेताओं को उनके अपने गुट के नाम से जाना जाता है। हालांकि, जब भी गुटबाजी का सवाल आता है तो इन्हीं नेताओं की जुबान गुटबाजी को नकार जाती है और कहा जाता है, हम तो ‘सोनिया-राहुल’ तथा गांधी परिवार के सिपाही हैं। यहां प्रश्न यही है कि जब ऐसी बात है तो बयानों में कांग्रेस के नेताओं के जुबानी तीर से अपनों की टीस बढ़ाने वाली बात क्यों निकलती है ? या कहें सभी नेताओं ने अपने तरकश में एक-दूसरे को ढेर करने तीर जोड़ रखे हैं। एक-दूसरे से कोई खुद को कमतर के समझने के मूड में नहीं दिखता।
हमारा यही कहना है कि कांग्रेस के नेताओं की आपसी नोंक-झोंक तथा रस्सकस्सी के कारण ही कांग्रेस, सत्ता से बाहर गई है और यही स्थिति बनी रही तो आगे भी यही हाल होने वाला है ? यह भी किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस खुद से हारती है। जितनी उर्जा खुद के घर जलाने में कथित कांग्रेसी लगाते हैं, यदि उतना ही जोर कांग्रेस की मजबूती के लिए लगाएं तो कांग्रेस व कांग्रेसियों का भला हो जाए। मन में किसी ‘नेता’ के बजाय, कांग्रेस का हित होने की मंशा हो, उसके बाद कांग्रेस को सत्ता में वापसी से कोई नहीं रोक सकता।
अभी भी समय है, चुनावी नाव में बैठने के पहले छग के कांग्रेसी नेताओं के साथ बड़े नेताओं को समझने की जरूरत है। जो सोच राहुल गांधी रखते हैं, उस दिशा में कांग्रेस कदम बढ़ाती है तो निश्चित ही कांग्रेस को लाभ ही होगा। इससे पहले, कांग्रेस को गुटबाजी का जो दीमक चट कर रहा है और चेहरों की राजनीति हो रही है, उससे बचना होगा, तब कहीं जाकर ‘खोई सत्ता’ हासिल हो पाएगी।

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