अनेहस शाश्वत-
भारत के मध्यकालीन इतिहास में शेरशाह सूरी का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है । अपने समय से बहुत आगे की सोच वाले इस बादशाह ने हालांकि कुल पांच साल शासन किया लेकिन उनकी उपलब्धियां असीम हैं । खेती में खसरा खतौनी हो या फिर रुपए का चलन या फिर उस ज़माने में हाई वे की जरूरत महसूस कर शेरशाह सूरी मार्ग बनवाना ये सब उन्हीं की देन हैं । इन्हीं शेरशाह के ज़माने का किस्सा है प्रसिद्ध सूफी संत मालिक मुहम्मद जायसी के साथ खुद बादशाह की दिलचस्प मुलाकात ।
सूफी संत होने के नाते जायसी खासे प्रसिद्ध थे । बादशाह ने उन्हें देखा नहीं था लेकिन प्रसिद्ध संत होने के नाते जायसी की बाबत एक सौम्य और शालीन व्यक्तित्व की कल्पना शेरशाह के मस्तिष्क में रही होगी लेकिन इस कल्पना के ठीक विपरीत जायसी टेढ़े मेढे काले कलूटे अष्टावक्र थे । बादशाह , जायसी से मिलने को बहुत उत्सुक थे । शेरशाह के बहुत बुलाने पर जायसी बादशाह से मिलने दरबार में पहुंचे । सोची हुई छवि के ठीक विपरीत सामने एक निहायत कुरूप व्यक्ति को पाकर शेरशाह सूरी बेतहाशा हंस पड़े ।
लेकिन संत ने बिल्कुल भी विचलित नहीं होते हुए बादशाह से पूछा मों पे हंसे सि के कोहरहिं यानी मुझ पे हंसे या उस कुम्हार पर जिसने मुझे बनाया । अपने समय से बहुत आगे की सोच वाला कुशाग्र बादशाह , जायसी के इस सवाल के मर्म को समझ गया और सिंहासन से नीचे उतर कर विनम्रता से सूफी संत का इस्तकबाल किया । जब से दुनिया बनी है तब से सामान्य मानव से लेकर ज्ञानीजन सब जानते हैं दुनिया अनिश्चित है । इसका नियंता कोई और है इसीलिए संत तुलसीदास ने कहा भी है हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ ।
जो भी व्यक्ति ऊंचाई पर बैठा है और यह ऊंचाई उसने सदप्रयास और विवेक से अर्जित की है वो इस सच्चाई को जानता है । जीवन के तमाम उतार चढ़ाव झेल कर बादशाह बने शेरशाह सूरी इसीलिए विनम्र थे । और इसी विनम्रता और दूसरे सद्गुणों ने ही शेरशाह सूरी को कालजई बना दिया । वरना उस कालखंड के कितने बादशाह आज भी इस तरह जनचरचा के नायक हैं ? लेकिन तुलसी दास ने ये भी कहा है कि प्रभुता पाय काहि मद नाही यानी प्रभुता अधिकांश को दंभी बना ही देती है ।
सच्चाई यही है कि अनादि काल से अधिकांश प्रभु दंभी ही हुए हैं और आगे भी होंगे । इसको रोकना शायद परमात्मा के बस में भी ना होगा । यही वजह है कि अधिकांश लोग शक्ति मिलते ही खुद को सामान्य लोगों से श्रेष्ठ मान का आचरण करने लगते हैं । वो मान लेते हैं कि वो नियम कानून से परे है । वे इनको बनाने वाले हैं ना कि इनका पालन करने वाले । यही दंभ प्रभु जनो के पतन का कारण बनता है और प्रभुता जाने के बाद कोई इनका नाम लेवा भी नहीं बचता । सदगुणी विनम्र व्यक्ति ही याद किया जाता है लेकिन सत्ता के दंभ में अधिकांश को यह याद नहीं रहता ।
फिलहाल के सत्ताधारियों का नज़रिया भी कुछ अलग नहीं है । उनका आचरण कई बार उनके प्रभुता मद की याद दिलाता है । प्रभुता मद की एक बड़ी खासियत काल की गति को भूलना भी होती है । वरना इसी लखनऊ में निगाह दौड़ाएं तमाम ऐसे मिल जाएंगे जो प्रभुता जाने के बाद दो कौड़ी के हो गए । वर्तमान सत्ताधारियों को भी ये दिखेंगे जरूर लेकिन तब जब वे भी ऐसे ही हो जाएंगे । दुखद ये भी है कि चाह कर भी संसार के इस सनातन सत्य को बदलना संभव नहीं ।
