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26.10.25

शेरशाह सूरी की विनम्रता

अनेहस शाश्वत-

भारत के मध्यकालीन इतिहास में शेरशाह सूरी का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है । अपने समय से बहुत आगे की सोच वाले इस बादशाह ने हालांकि कुल पांच साल शासन किया लेकिन उनकी उपलब्धियां असीम हैं । खेती में खसरा खतौनी हो या फिर रुपए का चलन या फिर उस ज़माने में हाई वे की जरूरत महसूस कर शेरशाह सूरी मार्ग बनवाना ये सब उन्हीं की देन हैं । इन्हीं शेरशाह के ज़माने का किस्सा है प्रसिद्ध सूफी संत मालिक मुहम्मद जायसी के साथ खुद बादशाह की दिलचस्प मुलाकात ।

सूफी संत होने के नाते जायसी खासे प्रसिद्ध थे । बादशाह ने उन्हें देखा नहीं था लेकिन प्रसिद्ध संत होने के नाते जायसी की बाबत एक सौम्य और शालीन व्यक्तित्व की कल्पना शेरशाह के मस्तिष्क में रही होगी लेकिन इस कल्पना के ठीक विपरीत जायसी टेढ़े मेढे काले कलूटे अष्टावक्र थे । बादशाह , जायसी से मिलने को बहुत उत्सुक थे । शेरशाह के बहुत बुलाने पर जायसी बादशाह से मिलने दरबार में पहुंचे । सोची हुई छवि के ठीक विपरीत सामने एक निहायत कुरूप व्यक्ति को पाकर शेरशाह सूरी बेतहाशा हंस पड़े ।

लेकिन संत ने बिल्कुल भी विचलित नहीं होते हुए बादशाह से पूछा मों पे हंसे सि के कोहरहिं यानी मुझ पे हंसे या उस कुम्हार पर जिसने मुझे बनाया । अपने समय से बहुत आगे की सोच वाला कुशाग्र बादशाह , जायसी के इस सवाल के मर्म को समझ गया और सिंहासन से नीचे उतर कर विनम्रता से सूफी संत का इस्तकबाल किया । जब से दुनिया बनी है तब से सामान्य मानव से लेकर ज्ञानीजन सब जानते हैं दुनिया अनिश्चित है । इसका नियंता कोई और है इसीलिए संत तुलसीदास ने कहा भी है हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ ।

जो भी व्यक्ति ऊंचाई पर बैठा है और यह ऊंचाई उसने सदप्रयास और विवेक से अर्जित की है वो इस सच्चाई को जानता है । जीवन के तमाम उतार चढ़ाव झेल कर बादशाह बने शेरशाह सूरी इसीलिए विनम्र थे । और इसी विनम्रता और दूसरे सद्गुणों ने ही शेरशाह सूरी को कालजई बना दिया । वरना उस कालखंड के कितने बादशाह आज भी इस तरह जनचरचा के नायक हैं ? लेकिन तुलसी दास ने ये भी कहा है कि प्रभुता पाय काहि मद नाही यानी प्रभुता अधिकांश को दंभी बना ही देती है ।

सच्चाई यही है कि अनादि काल से अधिकांश प्रभु दंभी ही हुए हैं और आगे भी होंगे । इसको रोकना शायद परमात्मा के बस में भी ना होगा । यही वजह है कि अधिकांश लोग शक्ति मिलते ही खुद को सामान्य लोगों से श्रेष्ठ मान का आचरण करने लगते हैं । वो मान लेते हैं कि वो नियम कानून से परे है । वे इनको बनाने वाले हैं ना कि इनका पालन करने वाले । यही दंभ प्रभु जनो के पतन का कारण बनता है और प्रभुता जाने के बाद कोई इनका नाम लेवा भी नहीं बचता । सदगुणी विनम्र व्यक्ति ही याद किया जाता है लेकिन सत्ता के दंभ में अधिकांश को यह याद नहीं रहता ।

फिलहाल के सत्ताधारियों का नज़रिया भी कुछ अलग नहीं है । उनका आचरण कई बार उनके प्रभुता मद की याद दिलाता है । प्रभुता मद की एक बड़ी खासियत काल की गति को भूलना भी होती है । वरना इसी लखनऊ में निगाह दौड़ाएं तमाम ऐसे मिल जाएंगे जो प्रभुता जाने के बाद दो कौड़ी के हो गए । वर्तमान सत्ताधारियों को भी ये दिखेंगे जरूर लेकिन तब जब वे भी ऐसे ही हो जाएंगे । दुखद ये भी है कि चाह कर भी संसार के इस सनातन सत्य को बदलना संभव नहीं ।

19.10.25

NCW ने सनबीम वीमेंस कॉलेज वरुणा को शिकायतकर्ता संगीता प्रजापति को सात दिनों के अंदर मातृत्व लाभ मुहैया कराने का दिया आदेश

कहा- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार मातृत्व लाभ प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान पर लागू होता है, क्योंकि यह प्रत्येक महिला का मूलाधिकार है।

नई दिल्ली/वाराणसी। कानून के तहत कामकाजी महिलाओं को वेतनयुक्त छह महीने का मातृत्व अवकाश मुहैया नहीं कराने के मामले में सनबीम समूह को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) से झटका लगा है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने सनबीम समूह के वाराणसी स्थित सनबीम वीमेंस कॉलेज वरुणा को सात दिनों के अंदर शिकायतकर्ता को मातृत्व लाभ देने का आदेश दिया है।

आयोग की सदस्य एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना मजूमदार ने बुधवार को जारी अपने आदेश में लिखा है, “मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार मातृत्व लाभ प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान में लागू होता है, क्योंकि यह प्रत्येक महिला का एक मौलिक अधिकार है।”

आयोग के इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश के निजी शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत महिलाओं के लिए वेतनयुक्त छह महीने के मातृत्व अवकाश का रास्ता खुल गया है। संभवतः यह राज्य का पहला मामला है जिसमें किसी आयोग या न्यायालय ने किसी निजी शैक्षणिक संस्था में कार्यरत महिला कर्मचारी को छह महीने का मातृत्व लाभ प्रदान करने का आदेश दिया है। प्रदेश में संचालित निजी शैक्षणिक संस्थान अपने यहां कार्यरत शिक्षकाओं एवं शिक्षणेत्तर महिला कर्मचारियों को वेतनयुक्त छह महीने का मातृत्व अवकाश नहीं देते हैं। सनबीम समूह अपने यहां कार्यरत और कर्मचारी राज्य बीमा निगम के प्रावधानों से आच्छादित महिला कर्मचारियों को भी वेतनयुक्त छह महीने का मातृत्व लाभ मुहैया नहीं कराता है।

बता दें कि सनबीम वीमेन्स कॉलेज वरुणा में 15 दिसम्बर 2021 से पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में कार्यरत संगीता प्रजापति ने पिछले साल 2 अगस्त को एक बच्चे को जन्म दिया था। उन्होंने उत्तर प्रदेश शासन के शासनादेशों और यूजीसी रेगुलेशन-2018 समेत मातृत्व लाभ कानून में उल्लिखित प्रावधानों के तहत महाविद्यालय प्रशासन से वेतनयुक्त छह महीने का मातृत्व अवकाश मांगा था लेकिन उसने उनके अनुरोध को यह कहकर खारिज कर दिया कि वह एक स्ववित्तपोषित निजी संस्थान है और उस पर मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। साथ ही उसने संगीता प्रजापति को कानूनी प्रावधानों में उल्लिखित छह महीने के मातृत्व अवकाश के बाद नौकरी पर वापस लेने से भी मना कर दिया था।

संगीता प्रजापति ने महाविद्यालय प्रबंधन के आदेश को पहले क्षेत्रीय श्रम प्रवर्तन अधिकारी सुनील कुमार द्विवेदी और अपर श्रमायुक्त/उप श्रमायुक्त डॉ. धर्मेंद्र कुमार सिंह के समक्ष चुनौती दी। उन्होंने माना कि सनबीम वीमेन्स कॉलेज वरुणा पर मातृत्व लाभ कानून के प्रावधान लागू होते हैं। क्षेत्रीय श्रम प्रवर्तन अधिकारी सुनील कुमार द्विवेदी ने गत 7 फरवरी को लिखित रूप से सनबीम वीमेन्स कॉलेज वरुणा को संगीता प्रजापति के मातृत्व हित लाभ की देयता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजीव सिंह और प्रशासक डॉ. शालिनी सिंह समेत उसके प्रबंधन तंत्र ने पीड़िता को मातृत्व लाभ मुहैया नहीं कराया और ना ही उसे नौकरी पर वापस लिया।

पीड़िता ने इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश शासन के श्रमायुक्त मार्कण्डेय शाही, श्रम मंत्री डॉ. अनिल राजभर, जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की कुल-सचिव डॉ. सुनीता पाण्डेय, कुलपति ए.के. त्यागी, क्षेत्रीय उच्च शिक्षाधिकारी डॉ. ज्ञान प्रकाश वर्मा से भी लिखित रूप में की लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी इनमें से किसी ने भी कोई कार्रवाई नहीं की और ना ही पीड़िता की शिकायत के संदर्भ में उसे कोई सूचना देना मुनासिब समझा।

उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था से निराश संगीता प्रजापति ने गत 6 अगस्त को राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार से न्याय की गुहार लगाई। उनकी पहल पर आयोग ने 8 अगस्त को उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव महेंद्र प्रसाद अग्रवाल को नोटिस जारी कर पूरे प्रकरण पर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) तलब की लेकिन दो महीना बीत जाने के बाद भी उन्होंने आयोग या शिकायतकर्ता को किसी कार्रवाई की कोई सूचना दी। आयोग की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार ने गत 7 अगस्त को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मामले पर सुनवाई की। सुनवाई में शिकायतकर्ता संगीता प्रजापति शामिल हुईं। वहीं, सनबीम वीमेन्स कॉलेज वरुणा की ओर से प्राचार्य डॉ. राजीव सिंह, प्रशासक डॉ. शालिनी सिंह और महाविद्यालय के लीगल हेड एवं अधिवक्ता देवेश त्रिपाठी शामिल हुए।

आयोग की सुनवाई के बारे में पूछे जाने पर पीड़िता संगीता प्रजापति ने कहा, “मैं राष्ट्रीय महिला आयोग की सुनवाई से बहुत खुश हूं लेकिन नौकरी पर वापसी से संबंधित कोई सूचना नहीं होने से थोड़ी निराशा भी है। हालांकि अभी आयोग का अंतिम फैसला आना बाकी है, इसलिए इस पर विचार होने की पूरी संभावना है। मैं माननीय डॉ. अर्चना मजूमदार मैम की आभारी हूं कि उन्होंने मेरे अनुरोध का संज्ञान लेकर इस पर सुनवाई की और न्याय के पक्ष में खड़ी हुईं। मुझे पूरा विश्वास है कि राष्ट्रीय महिला आयोग से मुझे न्याय मिलेगा। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहती हूं जो न्याय की इस लड़ाई में मेरा सहयोग कर रहे हैं। यह केवल मेरी लड़ाई नहीं है। यह उन सभी कामकाजी महिलाओं की लड़ाई है जिन्हें मातृत्व लाभ के उनके मूलाधिकार से वंचित किया जा रहा है।”