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9.12.25

मानवाधिकार : अमल से दूर काग़ज़ी फ़साना

राजीव तिवारी बाबा (स्वतंत्र पत्रकार)-

(10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर विशेष)

आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है। पूरी दुनिया भर में मनाया जाता है। सुनने में कितना  मनभावन लगता है न। मानवाधिकार : यानि जाति, धर्म, स्थान, भाषा, रंग, रूप, शिक्षा, संस्कृति आदि किसी भी बैरिकेडिंग से परे वो अधिकार जो हमको आपको सिर्फ इसलिए मिले हैं क्योंकि हम इंसान हैं। और वो भी संवैधानिक रूप से। 

इन मानकों के आधार पर हमारे देश में हम इंसानों को क्या हक मिले हैं और धरातल पर उनकी वास्तविकता क्या है? इसकी पड़ताल कर रहा है स्वतंत्र पत्रकार *राजीव तिवारी बाबा* का ये लेख


*कब और कैसे हुई शुरुआत, इस बार क्या है थीम*

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पहली बार आधिकारिक रूप से 1950 में मनाया गया। तब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 4 दिसंबर 1950 को प्रस्ताव संख्या 423(V) पारित कर हर साल 10 दिसंबर को Human Rights Day मनाये जाने की घोषणा की। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights - UDHR) को पेरिस में अपनाया था। ये घोषणापत्र मानव इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक है क्योंकि पहली बार विश्व स्तर पर ये तय किया गया कि हर इंसान, चाहे किसी भी देश, जाति, धर्म, लिंग या रंग का हो, उसे कुछ मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रता जन्म से ही मिली हुई हैं। इसमें 30 अनुच्छेद हैं जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, काम, निष्पक्ष मुकदमे जैसे अधिकारों की गारंटी देते हैं।इसे अब तक 500 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है यानि हम इसे दुनिया का सबसे ज्यादा अनुवादित दस्तावेज भी कह सकते हैं। हर साल UN एक खास थीम रखती है। जैसे 2024 का थीम था : "Our Rights, Our Future, Our Fight."

"हमारे अधिकार, हमारा भविष्य और हमारा संघर्ष।" जबकि 2025 का थीम है, *"Equality, Dignity and Justice for All – Leaving No One Behind" (समानता, गरिमा और न्याय सबके लिए – किसी को पीछे न छोड़ते हुए)*

ये थीम सीधे UDHR के अनुच्छेद 1 से प्रेरित है जिसमें ये लाइनें उल्लिखित है : 

"All human beings are born free and equal in dignity and rights." 

यूनाइटेड नेशंस ने इस बार खास जोर दिया है -

 LGBTQ+ अधिकारों पर, 

प्रवासी मजदूरों और शरणार्थियों पर, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित समुदायों पर और 

डिजिटल युग में प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आजादी पर।


*क्या हैं मूलभूत मानवाधिकार*

संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights - UDHR, 1948) में कुल 30 अनुच्छेद हैं, जिनमें मुख्य मानवाधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है। इन्हें सामान्यतः तीन पीढ़ियों में वर्गीकृत किया जाता है। 

प्रथम पीढ़ी के अधिकार : (नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार - Civil and Political Rights)ये मुख्य रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राज्य से सुरक्षा से संबंधित हैं। इनमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार समानता का अधिकार और कानून के समक्ष समान संरक्षण। गुलामी और दास-व्यापार से मुक्ति। यातना, क्रूर या अपमानजनक व्यवहार से मुक्ति। विचार, विवेक, धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।  शांतिपूर्ण सभा और संगठन बनाने की स्वतंत्रता। निष्पक्ष और सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में भाग लेने का अधिकार और अपनी सरकार चुनने का अधिकार (लोकतांत्रिक अधिकार)।

द्वितीय पीढ़ी के अधिकार हैं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार (Economic, Social & Cultural Rights)। ये राज्य से सकारात्मक सहायता और सुविधाएँ मांगते हैं। मसलन काम करने का अधिकार और उचित मजदूरी। सामाजिक सुरक्षा का अधिकार। शिक्षा का अधिकार (प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क और अनिवार्य)। पर्याप्त जीवन-स्तर का अधिकार (भोजन, कपड़ा, आवास, स्वास्थ्य सेवाएँ)। यूनियन बनाने और सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार।सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार और आराम तथा अवकाश का अधिकार।

तृतीय पीढ़ी के अधिकार हैं सामूहिक/सामुदायिक अधिकार (Solidarity Rights)। ये अपेक्षाकृत नए हैं और विकासशील देशों द्वारा अधिक जोर दिया जाता है। इनमें विकास का अधिकार। 

शांतिपूर्ण विश्व का अधिकार।  

स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार। प्राकृतिक संसाधनों पर संप्रभु अधिकार और स्व-निर्णय का अधिकार (विशेषकर उपनिवेशों और स्वदेशी समुदायों के लिए)।

अपने देश भारत की बात करें तो संविधान में ही मुख्य मूल मानवाधिकारों को शामिल कर लिया गया है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार (भाग-3) और नीति-निर्देशक तत्व मानवाधिकारों का बड़ा हिस्सा कवर करते हैं। इनमें समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18); स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22);  शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24); धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28); सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30) और संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं। इसके अलावा भारत ने अंतरराष्ट्रीय संधियों (ICCPR, ICESCR आदि) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए ये अधिकार भारत में भी लागू होते हैं। संक्षेप में मुख्य मानवाधिकार हैं: जीवन, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम, निष्पक्ष मुकदमा, धर्म की स्वतंत्रता, और स्वच्छ पर्यावरण आदि। ये सभी अधिकार एक-दूसरे पर निर्भर हैं। एक का उल्लंघन अक्सर दूसरों को भी प्रभावित करता है।


*आज क्या है मानवाधिकारों की स्थिति*

भारत का मानवाधिकार सफर सपनों और हकीकतों की दास्तां व्यक्त करता है। एक देश जहां करोड़ों लोग आस्था के नाम पर कुंभ में अपने पाप धोने एकत्र होते हैं। गंगा यमुना सरस्वती के संगम की लहरें आजादी का गान गाती हैं, लेकिन वही गंगा यमुना के किनारे प्रदूषण की काली परतें जीवन को निगलती हुई दिखती हैं। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, 1.4 अरब लोगों का घर, जहां संविधान हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन का वादा करता है। लेकिन 2025 में, जब हम मानवाधिकारों की बात करते हैं, तो जनता से यह संवैधानिक वादा कितना मजबूत खड़ा है? प्रथम, द्वितीय और तृतीय पीढ़ी के अधिकारों को आधार बनाकर भारत के संदर्भ में एक नजर डालते हैं। हम आंकड़ों की रोशनी में चलेंगे और डेटा स्रोत हैं - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), ह्यूमन राइट्स वॉच, एमनेस्टी इंटरनेशनल और सरकारी रिपोर्ट्स से ताजा आंकड़े, जो 2024-25 की हकीकत बयान करते हैं।

पहली पीढ़ी : स्वतंत्रता की जंजीरें – क्या आजादी सिर्फ किताबों में बंधी है?ये अधिकार तो वही हैं जो हमें इंसान बनाते हैं – जीवन, समानता, अभिव्यक्ति की आजादी। संविधान के अनुच्छेद 14-32 इन्हें मजबूती देते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत? सोचिए, एक पत्रकार जो सच्चाई उजागर करना चाहता है, लेकिन डर से चुप रह जाता है। 2025 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 151वें स्थान पर है (180 देशों में), जो पिछले साल के 159 से थोड़ा बेहतर है, लेकिन फिर भी 'समस्या वाली' श्रेणी में।

इसका मतलब? मीडिया पर दबाव, फेक न्यूज के नाम पर सेंसरशिप, और पत्रकारों पर हमले। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक, भारत में 'मीडिया मोनापॉली' बढ़ रही है। जहां बड़े कॉर्पोरेट घराने सरकार के करीब आकर खबरों को रंग देते हैं।

अब बात जीवन के अधिकार की करें तो कस्टोडियल डेथ्स यानि पुलिस हिरासत में मौतें मानवाधिकार के नाम पर एक काला धब्बा हैं। ग्लोबल टॉर्चर इंडेक्स 2025 में भारत को 'हाई रिस्क' कैटेगरी में रखा गया है, जहाँ 2022 में ही 1,995 कैदियों की मौत हुई, जिनमें 159 संदिग्ध हैं। (omct.org).

NHRC की 2023-24 रिपोर्ट बताती है कि कुल 1.2 लाख से ज्यादा शिकायतें आईं, जिनमें पुलिस अत्याचार और यातना के मामले प्रमुख हैं। (nhrc.nic.in). ह्यूमन राइट्स वॉच की 2025 रिपोर्ट बताती है कि अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव बढ़ा है। अवैध बुलडोजर एक्शन से सैकड़ों घर तोड़े गए और फर्ज़ी एनकाउंटर किए गये। (hrw.org). एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2024/25 रिपोर्ट तो साफ कहती है कि सिविल सोसाइटी पर हमले बढ़े हैं। एक्टिविस्ट्स को UAPA जैसे कानूनों से जेल में डाल दिया जा रहा है। (amnesty.org)


*उम्मीद पर दुनिया कायम है*

आंकड़ों की सच्चाई के बावजूद भारत में अभी भी दुनिया के कई अन्य देशों के मुकाबले मानवाधिकारों की स्थिति बेहतर है। तमाम उत्पीड़न के बावजूद अभी भी कुछ पत्रकार, मीडिया संस्थान, एनजीओ एक्टीविस्ट और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीनों अंगों में भ्रष्टाचार से अछूते रह गये कुछ राजनेता, अधिकारी और न्यायधीश आदि समय समय समय पर मानवाधिकारों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।‌

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2025 में 'प्रिजन इनमेट्स के अधिकारों' पर एक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस भी की, जो जेल सुधार की दिशा में बड़ा कदम है।(pib.gov.in).

हमारे देश में मानवाधिकार कागजों में बहुत मजबूत हैं लेकिन जमीनी स्तर पर 60% शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं। सवाल यह हैक इ क्या हमारी आजादी सिर्फ वोट डालने तक सीमित रह गई है? शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य के समान अवसर इस देश के हर नागरिक का मूल अधिकार जो कि एक इंसान होने के नाते मूल मानवाधिकारों का प्रमुख हिस्सा है। संविधान के नीति-निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 39-51) इन्हें सपोर्ट करते हैं, और NFHS-6 (2023-24) जैसे सर्वे अच्छी खबर लाते हैं। लिटरेसी रेट 80.9% (7+ उम्र), जो 2011 के 74% से ऊपर है, जो एक उम्मीद जगाती है। (r2rssb.graphy.com)

हालांकि आज ग्रामीण भारत में ये रेट सिर्फ 77.5%, जबकि शहरों में 88.9% है। जो पहले से काफी बेहतर है। मिजोरम जैसे राज्य 98% पर चमकते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की लिटरेसी पुरुषों से 20% कम है जो चिंताजनक है। NFHS-6 डेटा रिलीज नहीं हुआ, लेकिन प्रोजेक्शन कहते हैं कि ये 2025 तक 81% हो सकता है। (unesco.org).


स्वास्थ्य की बात करें  तोइन्फैंट मॉर्टेलिटी रेट (IMR) 2023 में 25 प्रति 1,000 लाइव बर्थ्स पर आ गया, जो 1971 के 129 से 80% की गिरावट पर है।(ndtv.com). यूनिसेफ के अनुसार, 2025 में यह 24 तक पहुंच सकता है। (data.unicef.org).


 लेकिन निओनेटल डेथ्स (पहले महीने की मौतें) 73% हैं, जो परेशान करता है। यानी अभी भी नवजात शिशुओं की शुरुआती देखभाल की बहुत कमी है। इसी तरह महिलाओं की बात करें तो मेटरनल मॉर्टेलिटी रेट (MMR) 2021 में 97 प्रति 1 लाख लाइव बर्थ्स था, जो 2014 के 130 से बेहतर है लेकिन अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं में यह दोगुना है।(mohfw.gov.in).

काम का हक एक मूलभूत मानवाधिकार है। इस मामले में देश की बेरोजगारी दर 8% के आसपास काफी दिक्कत तलब है। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक इंटरनेट शटडाउन 'मनरेगा' जैसी योजनाओं को बाधित करते हैं, गरीबों का हक छीनते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि प्रगति तो हो रही है लेकिन असमानता की दीवारें ऊंची हैं। तीसरी पीढ़ी के मानवाधिकारों की बात करें तो साझा धरती का दर्द कचोटता है। पर्यावरण, विकास और शांति ये नए अधिकार हैं। स्वच्छ हवा और शांतिपूर्ण माहौल भारत में चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि विकास की रफ्तार पर्यावरण को निगल रही। 2025 के 'स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट' रिपोर्ट में कोई राज्य भी 70/100 से ऊपर नहीं स्कोर कर पाया। सीवेज और कारखानों के अपशिष्ट के चलते नदियों का प्रदूषण चरम पर है। नमामि गंगे जैसी हजारों करोड़ की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। (downtoearth.org.in). 

अंत में स्वच्छ हवा की बात। तो  अक्टूबर 2025 में 255 शहरों ने WHO के PM2.5 स्टैंडर्ड्स को पार किया। एक स्टडी कहती है, PM2.5 से 2025 में 0.95 मिलियन प्रीमेच्योर डेथ्स हुईं।(nature.com). दिल्ली का AQI नवंबर में 344 तक पहुंचा, जो 'सीवियर' है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार भी हैरान परेशान हैं। मगर उपाय के नाम थोथी बयानबाजी। बच्चे-बूढ़े घरों में कैद होने को मजबूर हैं। 

भारत में अमीर शहरों की हवा गरीब गांवों की सांस चुरा रही है।


कल्पना कीजिए एक भारत जहां सबके लिए हवा पानी साफ हो। क्वालिटी एजुकेशन और हेल्थ हो। हर आवाज सुनी जाए। सबको न्याय मिले बिना किसी भेदभाव के। लोकतांत्रिक तरीके से सरकारें बनें और शासन चले। प्रेस को पूरी स्वतंत्रता हो तो क्या हमारा देश हैप्पीनेस इंडेक्स में सबसे ऊपर नहीं होगा। सपना साकार करने का वक्त आ गया है। क्या आप तैयार हैं?


*राजीव तिवारी बाबा (स्वतंत्र पत्रकार)*

बाबा की जय हो 🙏

5.12.25

दुनिया में चीन का प्रदूषण घटा, भारत का चिंताजनक

डॉ. चेतन आनंद-

दुनिया भर में वायु प्रदूषण अब केवल पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह सीधे लोगों की सेहत, अर्थव्यवस्था और जीवन प्रत्याशा को प्रभावित करने वाला बड़ा वैश्विक संकट बन चुका है। अनेक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें बताती हैं कि एशिया, विशेषकर दक्षिण एशिया, इस समय प्रदूषण के सबसे गंभीर प्रभाव झेल रहा है। इसी पृष्ठभूमि में जब हम “दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों” की सूची पर नज़र डालते हैं, तो भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक दिखाई देती है। हाल के वर्षों में भारत के कई शहर लगातार दुनिया की शीर्ष 10 या शीर्ष 20 प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल होते रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ पर्यावरणीय चुनौती का संकेत है, बल्कि यह जन स्वास्थ्य के लिए आज की सबसे बड़ी चेतावनी भी है।

वैश्विक रिपोर्टें और भारत-अंतरराष्ट्रीय संगठनों, जैसे आईक्यू एयर की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट, डब्ल्यूएचओ की वायु गुणवत्ता सूचियाँ और कई देश-आधारित शोध, लगातार इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि दुनिया के अत्यधिक प्रदूषित शहर एशिया में केंद्रित हैं। इनमें सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन बताए जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के आँकड़े यह भी स्पष्ट करते हैं कि भारत के शहरों ने इस सूची में सबसे ज्यादा स्थानों पर कब्ज़ा किया है। ताज़ा उपलब्ध रिपोर्ट (2024) में यह एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत के हैं। यह आँकड़ा अपने आपमें यह दर्शाता है कि वायु प्रदूषण का संकट अब भारत के लिए एक व्यापक भौगोलिक समस्या है, न कि केवल कुछ महानगरों तक सीमित। वैश्विक सूची में शामिल भारतीय शहरों में बड़े महानगरों के साथ-साथ कई मध्यम और छोटे शहर भी शामिल हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रदूषण का दायरा तेजी से फैल रहा है और यह देश के कई हिस्सों को प्रभावित कर रहा है। कई रिपोर्टों में गाजियाबाद, नोएडा, दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, मुजफ्फरनगर, बेगूसराय और अन्य उत्तर भारतीय शहरों को उच्चतम प्रदूषण स्तर वाले शहरों में रखा गया है।

शीर्ष 10 शहरों में भारत की छवि-जब केवल शीर्ष 10 की बात की जाती है, तो स्थिति और गंभीर दिखाई देती है। 2024 की रिपोर्टों ने एक बार फिर दिखाया कि इनमें से कई शहर भारत के थे। दिल्ली, जो भारत की राजधानी है, दुनिया की “सबसे प्रदूषित राजधानी” के रूप में कई बार रैंक की गई है। कई वर्षों में पीएम 2.5 का औसत स्तर दिल्ली को दुनिया के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों की श्रेणी में बनाए रखने के लिए पर्याप्त रहा है। हालांकि कुछ वर्षों में रीयल-टाइम एक्यूआई या कुछ विशिष्ट मौसमीय परिस्थितियों के कारण अन्य शहर इसमें ऊपर या नीचे आते हैं, लेकिन समग्र स्थिति यही बताती है कि भारत के कई शहर अक्सर इस शीर्ष वर्ग में बने रहते हैं। ये केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं, बल्कि मध्य और पूर्वी भारत के हिस्सों में भी व्यापक स्तर पर देखे जाने लगे हैं।

क्यों चिंता का विषय है शीर्ष सूची में भारत का होना-विश्व स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, वायु प्रदूषण दुनिया में मृत्यु और बीमारियों का एक प्रमुख कारक बन चुका है। जब कोई शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल होता है, तो इसका अर्थ होता है कि वहाँ पीएम 2.5 जैसे प्रदूषक सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक हैं। लंबे समय में इसका सीधा असर लोगों की सेहत, उत्पादकता, मानसिक स्वास्थ्य और बच्चों के विकास पर पड़ता है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यहाँ सिर्फ एक या दो शहर नहीं, बल्कि दर्जनों शहर इस सूची में शामिल हैं। यह स्थिति बताती है कि समस्या स्थानीय नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्तर की है। उदाहरण के लिए एनसीआर में स्थित दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाज़ियाबाद और फरीदाबाद, ये सभी शहर अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयाँ हैं, लेकिन सभी में हवा की गुणवत्ता लगभग एक जैसे खराब स्तर पर दर्ज होती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि हवा का बहाव और वातावरणीय परिस्थितियाँ प्रदूषण को व्यापक क्षेत्र में फैलाती हैं।

भारत की जनसंख्या और भौगोलिक विस्तार का प्रभाव-भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। इतने बड़े जनसमूह का बड़े शहरों में एकत्र होना किसी भी प्रदूषण संबंधित समस्या को और गंभीर बना देता है। जब करोड़ों लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ हवा सुरक्षित सीमा से कई गुना खराब हो, तो यह स्वास्थ्य प्रणाली, आर्थिक उत्पादकता और जीवन प्रत्याशा पर गहरा प्रभाव डालता है। दुनिया के शीर्ष प्रदूषित शहरों में बड़ी संख्या में भारत के शहरों का शामिल होना यह दर्शाता है कि देश को व्यापक स्तर पर वायु प्रदूषण के जोखिमों से जूझना पड़ रहा है। कई अध्ययन कहते हैं कि भारत के बड़े शहरों में रहने वाले लोगों की आयु 5 से 10 वर्ष तक कम हो सकती है, यदि वायु गुणवत्ता में सुधार न किया जाए।

भारत की स्थिति वैश्विक तुलना में कितनी गंभीर-दुनिया में कई विकासशील देशों को प्रदूषण की समस्या है, लेकिन भारत की स्थिति विशिष्ट इसलिए है क्योंकि-

1. भारत सूची में बार-बार और बहुत बड़े पैमाने पर आता है।
2. यहाँ केवल 1-2 नहीं, बल्कि 10, 12, 15 या कभी-कभी उससे भी अधिक शहर शीर्ष सूची में दर्ज होते हैं।
3. प्रदूषण केवल शहरी नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्तर का संकट बन चुका है।
4. दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में भारत के शहरों में पीएम 2.5 स्तर कई महीनों तक अत्यधिक ऊँचा रहता है।

सबसे प्रदूषित देशों की की सूची
1.चाड
2.बांग्लादेश
3.पाकिस्तान
4.डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो
5.भारत
6.ताजिकिस्तान
7.नेपाल
8.बहरीन, कुवैत

साउथ एशिया के भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश पिछले 25 सालों से लगातार विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित देश बने हुए हैं। चीन ने वर्ष 2015-25 में अपने प्रदूषण को आधा कर दिया है। जबकि अफ्रीका के देशों का प्रदूषण आंकड़ों में अब अधिक दिखने लगा है। क्योंकि इनकी मॉनीटरिंग बढ़ी है। 

यह स्थिति साफ़ संकेत देती है कि भारत “वैश्विक वायु प्रदूषण संकट” का केंद्र बन चुका है। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में भारत की स्थिति चिंताजनक और विचारणीय है। शीर्ष 10 और शीर्ष 20 की सूची में भारत के इतने शहरों का होना सूचित करता है कि देश की हवा से जुड़ा संकट केवल स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि जन स्वास्थ्य के लिए व्यापक खतरा बन चुका है। दुनिया के अत्यधिक प्रदूषित शहरों में शामिल होना सिर्फ एक रैंकिंग नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की सांसों पर मंडराता हुआ वास्तविक खतरा है। भारत के लिए यह समय गंभीर आत्मचिंतन और दीर्घकालिक रणनीति की मांग करता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ हवा मिल सके और दुनिया की प्रदूषण सूची में भारत का स्थान किसी अन्य दिशा में बदल सके।

लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)