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20.11.14

कबीरपंथियों के पाखंड की पराकाष्ठा हैं रामपाल

20 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,साहेब बंदगी!
कबीर कहते हैं कि
कबीरा जब हम पैदा हुए जग हँसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो हम हँसें जग रोये।
मगर कबीर के अनुयायी अब जो कर रहे हैं उसको देखकर दुनिया हँस भी रही है और रो भी रही है। हँस रही है यह देखकर कि कबीर ने क्या कहा था और अनुयायी क्या कर रहे हैं और रो रही है उनके नैतिक पतन को देखकर। यह देखकर कि जो कबीर आजीवन पाखंड और पाखंडवाद से लड़ते रहे उनके ही नाम पर उनके कथित भक्तों ने यह कैसा पाखंड का साम्राज्य खड़ा कर दिया!
मित्रों,मैं वर्षों पहले अपने एक आलेख कबीर के नाम पर पाखंड का साम्राज्य में कबीर के नाम पर फैले पाखंड के साम्राज्य पर काफी विस्तार से लिख चुका हूँ लेकिन मैं जहाँ तक समझता था कबीर के नाम पर धंधा करनेवाले उससे कहीं ज्यादा ठग,चोर,फरेबी,पाखंडी और मानवशत्रु निकले। अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह बाबा रामपाल कैसा कबीरपंथी है और किस तरह से कबीरपंथी है। कबीर ने तो अपने प्रशंसकों को इंसान बनने और इंसानों के साथ इंसानों की तरह पेश आने की शिक्षा दी थी फिर यह रामपाल भगवान कैसे बन गया? पूरे आश्रम में जमीन के भीतर बने सुरंगों के माध्यम से कहीं भी प्रकट हो जाना,विज्ञान के चमत्कारों के माध्यम से हवा में चलना,लेजर की सहायता से अपने चारों ओर आभामंडल बनाना और सिंहासन सहित आसमान से उतरना आदि के माध्यम से रामपाल तो क्या कोई भी भगवान बन सकता है।
मित्रों,हमें इस बात को भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि कबीरपंथ के अधिकतर अनुयायी गरीब और दलित-पिछड़ी जातियों से आते हैं जिनके खाने के भी लाले पड़े होते हैं। स्वाभाविक रूप से उनमें से ज्यादातर अनपढ़ होते हैं और उनमें इतनी बुद्धि नहीं होती कि वे रामपाल के चमत्कारों को तर्क और विज्ञान की कसौटी पर कस सकें। रामपाल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए जो मानव-शील्ड बनाई उनमें से अधिकतर लोग इसी तरह के थे।
मित्रों,विज्ञान और संचार-क्रांति का उपयोग जहाँ इस तरह की ठगविद्या के भंडाभोड़ के लिए होना चाहिए वहीं दुर्भाग्यवश उसका उपयोग ठगने के लिए किया जा रहा है। दिनभर टीवी चैनलों पर ऐसे बाबाओं से संबंधित कार्यक्रम आते रहते हैं जिनमें से कोई जन्तर बेच रहा होता है तो कोई भविष्य बतानेवाली किताब और कोई तो अपनी कृपा भी। और आश्चर्य की बात तो यह है कि 21वीं सदी में भी इन बाबाओं की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं।
मित्रों,रहा बाबा रामपाल का सवाल तो यह आदमी संत या अवतार तो क्या आदमी कहलाने के लायक भी नहीं है। जो व्यक्ति आदमी की जान का इस्तेमाल अपने को जेल से जाने से बचने के लिए करे उसको भला अवतार (भले ही संत कबीर का ही) कहा जा सकता है क्या? संत या अवतार तो वो है जो एक आदमी की प्राण-रक्षा के लिए अपने प्राण को न्योछावर कर दे। कबीर संत थे जिन्होंने अंधविश्वास,भेदभाव,छुआछूत और पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई। भले ही तत्कालीन शासक सिकंदर लोदी ने तीन-तीन बार उनपर जानलेवा हमला क्यों न करवाया कबीर न तो डरे और न ही जान की परवाह ही की। कबीर ने तो भगवान से बस इतना ही मांगा था-
साईँ इतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय।।
अर्थात् हे ईश्वर,हमको बस इतना बड़ा घर दे दो जिसमें मेरा पूरा परिवार समा जाए और इतना धन दे दो कि न तो मेरा परिवार ही भूखा रहे और न हीं अतिथि को मेरे द्वार से भूखा लौटना पड़े। फिर कबीर के रामपाल जैसे अनुयायियों को क्यों राजाओं जैसे ऐश्वर्यपूर्ण ठाठ-बाट की आवश्यकता पड़ गई? वे क्यों उस महाठगनी माया के चक्कर में पड़ गए जिसे बारे में कबीर ने कहा था कि-
माया महा ठगनी हम जानी।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरी बानी।।
केसव के कमला भय बैठी शिव के भवन भवानी।
पंडा के मूरत भय बैठीं तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन भय बैठी राजा के घर रानी।
काहू के हीरा भय बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
माया महा ठगनी हम जानी।।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि अगर कहीं पर संत कबीर की आत्मा होगी तो आज जरूर रो रही होगी। कबीर ने अपने जीते-जी ऐसा कभी नहीं कहा कि उनको उनकी मृत्यु के बाद कथित भूदेव ब्राह्मणों की तरह देवता या भगवान का दर्जा दे दिया जाए बल्कि वे तो लोगों की ज्ञान-चक्षु खोलना चाहते थे जिससे कोई बाबा या ढोंगी उनको बरगला न सके। वे तो चाहते थे कि लोग किताबों में लिखी बातों से ज्यादा अपनी तर्कशक्ति,बुद्धि और विवेक पर विश्वास करें। वे तो चाहते थे कि लोग जब उनकी बातों पर अमल करें और उनकी शिक्षाओं का पालन करें तब भी आँख मूंदकर न करें बल्कि भले-बुरे पर विचार करके करें फिर कबीर को किसने और क्यों साधारण इंसान से साक्षात् परब्रह्म बना दिया? क्या ऐसा रामपाल जैसे ढोंगियों ने इसलिए नहीं किया क्योंकि उनको खुद को भगवान घोषित करना था और लोगों के विश्वास का नाजायज फायदा उठाना था?
मित्रों,अंत में दुनिया के तमाम कबीरपंथियों और सारे अन्य पंथियों से मेरा यह विनम्र निवेदन है कि वे सारे महामानवों को इंसान ही रहने दें भगवान न बनाएँ क्योंकि जैसे ही हम उनको भगवान मान लेंगे उसी क्षण हम यह भी मान लेंगे कि इनके जैसा हो पाना किसी भी मानव के लिए संभव ही नहीं है। चाहे वे राम हों,कृष्ण हों,बुद्ध,ईसा,महावीर या कबीर हों ये सभी इंसान थे और इस धरती पर विचरण करते थे। इन्होंने भी उसी प्रक्रिया से जन्म लिया था जिस प्रक्रिया से हम सभी ने लिया है। इनके भीतर जरूर ऐसे गुण थे जिसके चलते इन लोगों को महामानव की श्रेणी में रखा जा सकता है और ऐसे गुण हमारे भीतर भी हो सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने भीतर इन महामानवों के महान गुणों का विकास करें,उनके आदर्शों पर चलें और पूरी दुनिया को महामानवों की दुनिया बनाएँ न कि दिन-रात इनका नाम रटें। जिस दिन ऐसा हो जाएगा उसी दिन धरती पर सतयुग आ जाएगा न कि किसी मकान या महल का नाम सतलोक आश्रम रख देने से आएगा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

1 comment:

Nitin Sabrangi said...

-धर्म व आस्था का तमाशा बनाने वालों की कमी नहीं है। बाबाओं की दुकानदारी अंधभक्तों से चलती है। अंधभक्तों की भी श्रेणी है। यह बड़ी संख्या में पाये जाते हैं। पैसा व इज्जत दोनों लुटते हैं, तो होश आता हैं। वैसे बाबा मस्ती में रहते हैं। बेवकूफ बाबा हुए या अंधभक्त? बाबा बाजार में तरह-तरह के ब्रांड मौजूद हैं। कोई तीसरी आँख वाला बाबा बना है, कोई बिजनेसमेन, कोई व्याभिचारी, कोई सलाखों के पीछे है, तो कोई बाहर गुल खिला रहा है।