बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
--बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल कसियां नहीं, कुसी
भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित कांटी थाने का कुशी ग्राम है, न कि उतर प्रदेश का कुशीनगर. अब ये मामला पूरी प्रकाश में आ गया है. इस बात का पुख्ता सबूत है. ज्ञात हो कि 53 वर्षो से इतिहासकारों पुरातत्ववेत्ताओं के अथक प्रयास के बावजूद सरकारी उदासीनता के कारण कुशीग्राम को बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल के रू प में मान्यता नहीं मिल सकी है.
जानकारों का कहना है कि उतर प्रदेश के देविरया जिले में जो किसया नामक स्थान है, वहां बुद्ध ने कसाय वस्त्र (संन्यासियों का वस्त्र) धारण किया था. इस किसया के वर्चस्व के तहत कुशीनगर बताते हुए बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल के रू प में मान्यता दे दी गयी. बताते चलें कि उस समय भी किसया को कुशीनगर मानने का मामला विद्वानों ने उठाया था, किंतु उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे. उत्तर प्रदेश के सांसदों का वर्चस्व था. दूसरी तरफ, बिहार के सांसदों को जानकारी की कमी थी. विदेह विशला ऐतिहासिक शोध प्रतिष्ठान का चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन, जो 1983 में कुशी (मुजफ्फरपुर) में सम्पन्न हुआ था के प्रस्तावना के अंश में किसया कुशी नहीं का प्रश्न उठाया गया था. यह प्रश्न स्व. परमानंद शास्त्री जो कि आर्यावर्त हिन्दी दैनिक पत्र में ‘चुटकुलानंद की चिट्ठी’ के नाम से स्थायी स्तंभ लिखते थे ने वर्ष 1ृ962 के मई महीने में उठाया था. इस तथ्य को संपुष्ट करते हुए इतिहासकार श्रीमती विद्या चौधरी ने बताया कि बौद्ध साहित्य के अनुसार कुशीनारा कुशी कांटी ही है. उतर प्रदेश के देवरिया जिले में जो किसया नहीं वर्तमान में किसया भी जिला बन चुका है. पुरातत्ववेत्ता सह इतिहासकार विंदेश्वर शर्मा हिमांशु ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि यदि वैशाली अपनी जगह ठीक है. बुद्ध परिनिर्वाण विवरणी ठीक है और वैशाली से पावा कुशीनारा जाने का वृतांत भी सही है, तो वैशाली से कुशीनारा की यात्र एक दिन में गम्य है. यह वही कुशी (कांटी) है. अगर कुशी किसया (देवरिया जिला) उतर प्रदेश में है, तो यह वैशाली नहीं कोई दूसरी वैशाली होगी. इतिहासकार सच्चिदानंद चौधरी बताते हैं कि परिनिर्वाण यात्र पथ में बुद्ध के ठहराव उनकी अवस्था वैशाली से कुशी की दूरी समय भौगोलिक स्थिति चुंद लुहार का घर (जहां बुद्ध ने अंतिम भोजन किया था) आदि से पता चलता है कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी रेलवे स्टेशन से सटा गांव कुशी ही है बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल है. श्री चौधरी का कहना है कि ऐतिहासिक साक्ष्य बदल सकते हैं, लेकिन भौगोलिक नहीं बदलते हैं.
जानकार बताते हैं कि महापरिनिर्वाण के समय बुद्ध की अवस्था 80 वर्ष की थी. वे अतिसार रोग से पीड़ित थे. वैशाली से कुशी (कांटी) की दूरी 22 किलोमीटर है तथा वैशाली से कुशीनगर उतर प्रदेश की दूरी 139 किलोमीटर है. अब प्रश्न उठता है कि क्या एक 80 वर्ष का व्यक्ति जो अतिसार रोग से पीड़ित है एक दिन में 139 किमी की यात्र पैदल तय कर सकता है ? संभवत: नहीं. लेकिन 22 किमी की यात्र पैदल तय की जा सकती है.
खुदाई में मिले थे 148 पुरातात्विक अवशेष
वर्ष 1987 में ’ह्वेयर बुद्धा डायड’ के लेखक सूर्यदेव ठाकुर और मुजफफरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी देवाशीष गुप्त के अथक प्रयास से खुदाई में 148 पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई थी, जिसके महत्व को सार्वजनिक नहीं किया गया. सूर्यदेव ठाकुर का असामयिक निधन हो जाने के कारण बुद्व महापरिनिर्वाण स्थल के अभियान की गतिविधि मंद पड़ गयीं. साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था नूतन साहित्यकार परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र कुशीहरपुर रमणी गांव स्थित मध्य विद्यालय में वर्ष 2005 में प्रधानाघ्यापक के पद नियुक्त हुए. वर्ष 2007 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए जब मजदूर नींव की खुदाई कर रहे थे, तो उसमें से नौ मृद्घट और अनेक पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई थी. इसकी सूचना प्रधानाध्यापक चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने आयुक्त, डीएम व इतिहासकारों को दी. स्थानीय नूतन साहित्यकार परिषद् का मानना है कि इससे न केवल मुजफ्फरपुर, बल्कि बिहार एक बड़े पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित होगा. आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक रूप में कुशी(कांटी) पूरे विश्व में जाना जायेगा. इस पुनीत कार्य में नूतन साहित्यकार परिषद् के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र तन मन और धन से लगे हैं. इनके सहयोगियों में पूर्व मुखिया उमेश्वर ठाकुर, पिनाकी झा, शिक्षाविद् स्वराजलाल ठाकुर, समाजशास्त्री मनोज कुमार वत्स, परमानंद ठाकुर आदि के नाम शामिल हैं. इतने साक्ष्यों के बावजूद कुशी (थाना-कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर) को बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल के रू प में मान्यता न मिलना महात्मा बुद्ध का अपमान है.
जानकारों का कहना है कि उतर प्रदेश के देविरया जिले में जो किसया नामक स्थान है, वहां बुद्ध ने कसाय वस्त्र (संन्यासियों का वस्त्र) धारण किया था. इस किसया के वर्चस्व के तहत कुशीनगर बताते हुए बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल के रू प में मान्यता दे दी गयी. बताते चलें कि उस समय भी किसया को कुशीनगर मानने का मामला विद्वानों ने उठाया था, किंतु उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे. उत्तर प्रदेश के सांसदों का वर्चस्व था. दूसरी तरफ, बिहार के सांसदों को जानकारी की कमी थी. विदेह विशला ऐतिहासिक शोध प्रतिष्ठान का चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन, जो 1983 में कुशी (मुजफ्फरपुर) में सम्पन्न हुआ था के प्रस्तावना के अंश में किसया कुशी नहीं का प्रश्न उठाया गया था. यह प्रश्न स्व. परमानंद शास्त्री जो कि आर्यावर्त हिन्दी दैनिक पत्र में ‘चुटकुलानंद की चिट्ठी’ के नाम से स्थायी स्तंभ लिखते थे ने वर्ष 1ृ962 के मई महीने में उठाया था. इस तथ्य को संपुष्ट करते हुए इतिहासकार श्रीमती विद्या चौधरी ने बताया कि बौद्ध साहित्य के अनुसार कुशीनारा कुशी कांटी ही है. उतर प्रदेश के देवरिया जिले में जो किसया नहीं वर्तमान में किसया भी जिला बन चुका है. पुरातत्ववेत्ता सह इतिहासकार विंदेश्वर शर्मा हिमांशु ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि यदि वैशाली अपनी जगह ठीक है. बुद्ध परिनिर्वाण विवरणी ठीक है और वैशाली से पावा कुशीनारा जाने का वृतांत भी सही है, तो वैशाली से कुशीनारा की यात्र एक दिन में गम्य है. यह वही कुशी (कांटी) है. अगर कुशी किसया (देवरिया जिला) उतर प्रदेश में है, तो यह वैशाली नहीं कोई दूसरी वैशाली होगी. इतिहासकार सच्चिदानंद चौधरी बताते हैं कि परिनिर्वाण यात्र पथ में बुद्ध के ठहराव उनकी अवस्था वैशाली से कुशी की दूरी समय भौगोलिक स्थिति चुंद लुहार का घर (जहां बुद्ध ने अंतिम भोजन किया था) आदि से पता चलता है कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी रेलवे स्टेशन से सटा गांव कुशी ही है बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल है. श्री चौधरी का कहना है कि ऐतिहासिक साक्ष्य बदल सकते हैं, लेकिन भौगोलिक नहीं बदलते हैं.
जानकार बताते हैं कि महापरिनिर्वाण के समय बुद्ध की अवस्था 80 वर्ष की थी. वे अतिसार रोग से पीड़ित थे. वैशाली से कुशी (कांटी) की दूरी 22 किलोमीटर है तथा वैशाली से कुशीनगर उतर प्रदेश की दूरी 139 किलोमीटर है. अब प्रश्न उठता है कि क्या एक 80 वर्ष का व्यक्ति जो अतिसार रोग से पीड़ित है एक दिन में 139 किमी की यात्र पैदल तय कर सकता है ? संभवत: नहीं. लेकिन 22 किमी की यात्र पैदल तय की जा सकती है.
खुदाई में मिले थे 148 पुरातात्विक अवशेष
वर्ष 1987 में ’ह्वेयर बुद्धा डायड’ के लेखक सूर्यदेव ठाकुर और मुजफफरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी देवाशीष गुप्त के अथक प्रयास से खुदाई में 148 पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई थी, जिसके महत्व को सार्वजनिक नहीं किया गया. सूर्यदेव ठाकुर का असामयिक निधन हो जाने के कारण बुद्व महापरिनिर्वाण स्थल के अभियान की गतिविधि मंद पड़ गयीं. साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था नूतन साहित्यकार परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र कुशीहरपुर रमणी गांव स्थित मध्य विद्यालय में वर्ष 2005 में प्रधानाघ्यापक के पद नियुक्त हुए. वर्ष 2007 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए जब मजदूर नींव की खुदाई कर रहे थे, तो उसमें से नौ मृद्घट और अनेक पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई थी. इसकी सूचना प्रधानाध्यापक चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने आयुक्त, डीएम व इतिहासकारों को दी. स्थानीय नूतन साहित्यकार परिषद् का मानना है कि इससे न केवल मुजफ्फरपुर, बल्कि बिहार एक बड़े पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित होगा. आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक रूप में कुशी(कांटी) पूरे विश्व में जाना जायेगा. इस पुनीत कार्य में नूतन साहित्यकार परिषद् के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र तन मन और धन से लगे हैं. इनके सहयोगियों में पूर्व मुखिया उमेश्वर ठाकुर, पिनाकी झा, शिक्षाविद् स्वराजलाल ठाकुर, समाजशास्त्री मनोज कुमार वत्स, परमानंद ठाकुर आदि के नाम शामिल हैं. इतने साक्ष्यों के बावजूद कुशी (थाना-कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर) को बुद्ध महापरिनिर्वाण स्थल के रू प में मान्यता न मिलना महात्मा बुद्ध का अपमान है.
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