21.6.17
मनोज शर्मा एडवोकेट की कविता
मेरे भरोसे का दर्पण आज यारों चकनाचूर हो गया
न्याय की जहां से आस थी वह मंदिर बाजार हो गया
जालिमों ने अदा कर दी मजलूमों की आहाें की कीमत
सिसक रहा है सच, झूठ के सिर सेहरा हो गया
इस दौर में हक की आवाज उठाना जुल्म है यारो
हर सिंहासन यहां सौदागरों की जागीर हो गया
किसी के बच्चे भूख से बिलखते हैं तो बिलखा करें
हाकिमों का मकसद सिर्फ दौलत कमाना हो गया
लग रहा है भगवान ने भी अपना पाला बदल लिया
बेईमान और मक्कारों के कदमों में जमाना आ गया
हजारों सीनों में दहकती आग कब शोला बनेगी
जज, अफसर,नेता नीलाम सबका ईमान हो गया
गैरत बेच दी आेहदेदारों ने कानून सिर्फ दिखावा है
धन बल के आगे बाैना देश का संविधान हो गया
मनोज शर्मा एडवोकेट
मजीठिया क्रांतिकारी
(हिंदुस्तान बरेली)
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