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9.12.17

इंसानों के बीच एक दिन


गलियों में घूमते हुए 
बरबस ही खींचती है गरम - गरम भात की महक,
दरवाजा खुला ही रहता है हमेशा 
यहाँ बंद नहीं होते कपाट 
चोर आकर क्या ले जायेंगे.
जिस घर  चाहूं घुस जाऊं 
तुरत परोसी जायेगी थाली 
माड़ - भात, प्याज, मिर्च के साथ 
हो सकता है रख दे हाँथ पर गुड़ कोइ 
और झट से भाग जाए झोपडी के उस पार.
यंहा भूखे को प्यार परोसा जाता है
भर- भर मुट्ठी उड़ेला जाता है आशीर्वाद.
फसल काटने के बाद 
नाचते है लोग 
घूमते हैं मेला 
प्रेमी युगल आज़ादी  से चुनते हैं अपना हमसफ़र 
दीवारें नहीं होती यंहा 
मज़हब और जाति की 
जब तक घर में धान है 
हर घर है अमीर 
धान ख़तम, अमीरी ख़तम 
फिर वही फ़ाकामस्ती
वही दर्द , वही दवा 
इनकी ज़िंदगी खदबदाती है खौलते पानी में,
पानी ठंढा हुआ जीवन आसान 
पानी के तापमान के साथ 
घटता- बढ़ता है सुख-दुःख 
पानी जैसे ही बहता है जीवन 
पानी जैसा मन 
जिस बर्तन डालो 
उस जैसा तन.



(Image credit google)

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