25.6.22
9.6.22
सतीश पेडणेकरः स्मृति शेष - एक राष्ट्रवादी पत्रकार का यूं चले जाना!
-निरंजन परिहार
आईएसआईएस की कुत्सित कामवृत्ति, दुर्दांत दानवी दीवानगी और बर्बर बंदिशों की बखिया उधेड़ता इस्लामिक स्टेट की असलियत से अंतर्मन को उद्वेलित कर देने वाला लेखा-जोखा दुनिया के सामने रखनेवाले पत्रकार सतीश पेडणेकर संसार को सदा के लिए छोडकर निकल गए। तीन दशक तक जनसत्ता में रहे सतीशजी का अचानक चले जाना यूं तो कोई बहुत बड़ी खबर नहीं, लेकिन स्मृतियों की मीमांसा और मंजुषा कहे जाने वाले मनुष्य की मौत जब स्मृति के ही खो जाने से हो जाए, तो वह किसी खबर से भी बहुत ज्यादा बड़ी बात होती है। याददाश्त उनकी बहुत गजब थी, सदियों पुरानी विवेचना से लेकर दशकों पुराने विश्लेषण को वे पल भर में तथ्यों के साथ सामने रख देते थे। वही स्मृति आखिरी दिनों में दगा दे गई थी और 6 जून 2022 को ले गई सतीशजी को अपने साथ। लगभग तीन दशक तक वे जनसत्ता में रहे, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली उन्हें इस्लामिक आतंकवाद पर लिखी पुस्तक से। सन 2017 में आई सतीश पेडणेकर की बहुचर्चित पुस्तक ‘आइएसआइएस और इस्लाम में सिविल वार’ ने इस्लामिक कट्टरता की जिस तर्ज पर बखिया उधेड़ी, वह हिम्मत उनसे पहले और कोई नहीं कर सका। इसी पुस्तक ने सतीशजी को अपने साथ काम कर चुके कई स्वयंभू दिग्गजों व संपादकों से भी अचानक बहुत बड़ा बना दिया। राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रखर पत्रकार के रूप में सतीश पेडणेकर की छाप सबके दिलों पर अमिट है। ग्वालियर में जन्मे और दिल्ली में इस लोक से विदा हुए सतीश पेडणेकर को शुरुआत में नाम संघ परिवार के अखबार पांचजन्य से मिला और बाकी जिंदगी जनसत्ता में गुजारकर खुद भी गुजर गए।
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काफी दिलचस्प हो गया है आजगढ-रामपुर लोकसभा उप-चुनाव
अजय कुमार, लखनऊ
योगी, अखिलेश, माया और आजम की प्रतिष्ठा पर बड़ा दांव
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से चुनावी बयार बहने लगी है। राज्यसभा से लेकर विधान परिषद की रिक्त सीटों के लिए तो चुनाव हो ही रहा है,इसके अलावा आजम और अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा पर भी चुनाव होना है। यह दोनों सीटें आजम और अखिलेश के हाल ही में सम्पन्न विधान सभा चुनाव में विधायक चुने के बाद खाली हुई हैं,विधान सभा का चुनाव जीतने के बाद दोनों नेताओं ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। दोनों सीटों पर होने वाले उप-चुनाव के नतीजों से केन्द्र की सियासत पर तो कोई बदलाव नजर नहीं आएगा,लेकिन जो भी दल यह चुनाव जीतेगा,उसके लिए यह जीत 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बूस्टर डोज का काम करेगी। इसी लिए भाजपा और सपा ने दोनों ही सीटों पर पूरा दमखम लगा रखा है,वहीं बात बसपा और कांग्रेस की कि जाए तो बसपा ने आजम खान करीबी प्रत्याशी के समर्थन में रामपुर से अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है,जबकि कांग्रेस चुनाव लड़ ही नहीं रही है,जो चुनावी तस्वीर उभरती नजर आ रही है उसके अनुसार आजमगढ़ में बसपा, भाजपा-सपा प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती देते नजर आ सकते हैं। वहीं रामपुर में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर होगी। कहने को तो यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर ही चुनाव हो रहे हैं,लेकिन इन चुनावों ने भी एक बार फिर तमाम सियासी दलों के नेताओं और राजनैतिक पंडितों के दिलों की धड़कने तेज कर दी हैं।खास बात यह है कि आजमगढ़ और रामपुर दोनों ही मुस्लिम बाहुल्य सीटे हैं,जिसका अक्सर फायदा समाजवादी पार्टी को ही मिलता है,लेकिन मायावती ने आजमगढ़ में मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करके चुनावी बिसात पर अपनी चाल चल दी है।
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