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19.3.16

‘जय हिंद और पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा सुनते ही राजनाथ सिंह हैरत में पड़ गए

शैलेन्द्र चौहान 
गृहमंत्री राजनाथ‍ सिंह अकसर कहते हैं कि जो भी देशद्रोही बयान देगा उसे सजा मिलेगी। लेकिन शनिवार को उनके सामने श्री श्री रविशंकर ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ नारा लगाया और राजनाथ देखते रह गए। यह सब अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था ऑर्ट ऑफ लिविंग की 35वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह के दौरान हुआ। आश्चर्य यह कि पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा किेसी और ने नहीं, बल्कि खुद श्री श्री रविशंकर ने लगाया। उन्होंने कहा, ‘जय हिंद और पाकिस्तान जिंदाबाद।’ श्री श्री रविशंकर का यह बयान सुनते ही वहां खड़े राजनाथ सिंह और अन्य लोग हैरत में पड़ गए। श्री श्री ने कहा, ‘जय हिंद और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा एक साथ क्यों नहीं लग सकता। पाकिस्तान खुद आतंकवाद से जूझ रहा है। ऐसे में अगर दोनों देश एक साथ आ जाएं तो काफी तरक्की कर सकते हैं। जय हिंद और पाकिस्तान जिंदाबाद भी एक साथ आ सकते हैं। यह दोनों पक्षों के लिए एक जिताने वाली स्थिति हो सकती है।’


ध्यातव्य है कि ऐतिहासिक और राजनैतिक वजहों से भारत और पाकिस्तान के संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं। इन देशों में इस रिश्ते का मूल वजह भारत के विभाजन को देखा जाता है। अगर इतिहास में जायें तो इस विभाजन में अंग्रेजों की भूमिका संदेह से पर नहीं रही। विभाजन से पहले भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने  कहा था ''एक बड़े क्षेत्र के बहुसंख्यकों को उनकी इच्छा के विपरीत एक ऐसी सरकार के शासन में रहने के लिए बाध्य नहीं किया सकता जिसमें दूसरे समुदाय के लोगों का बहुमत हो और इसका एकमात्र विकल्प है विभाजन।''  इन शब्दों के साथ ही माउंटबेटन ने यह घोषणा कर दी कि ब्रिटेन एक देश को नहीं बल्कि दो देश को स्वतंत्रता देने जा रहा है। माउंटबेटन ने अपना यह बयान 3 जून 1947 को दिया था और उसके 10 सप्ताह बाद ही उन्होंने दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग भी लिया।

14 अगस्त को कराची में वे स्पष्ट मुस्लिम पहचान के साथ गठित राष्ट्र के गवाह बने और इसके अगले दिन दिल्ली में भारत के पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा ले रहे थे। भारत की आबादी पाकिस्तान की तीन गुनी थी और ज़्यादातर लोग हिंदू थे। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1921 में कांग्रेस ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार की नीतियां भारत की नीतियां नहीं हैं और न ही वे किसी तरह भारत की प्रतिनिधि हो सकती। कांग्रेस ने यह भी घोषणा की कि भारत को अपने पड़ोसी देशों से कोई खतरा व असुरक्षा की भावना नहीं है। इसी कारण 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस ने अंग्रेजी हितों के लिए शामिल होने से मना कर दिया था। 1920 में चलाए गए खिलाफत आन्दोलन में भी भारत ने मुसलमानों का साथ दिया जो आज भी भारत की अरब समर्थक विदेश नीति का द्योतक है। भारत ने हमेशा ही अरब-इजराइल संकट में अरबों का ही पक्ष लिया है।

इसी दौरान कांग्रेस ने उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद विरोधी सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उपनिवेशवाद के शिकार देशों के साथ मिलकर अंग्रेजों की नीतियों की निन्दा की थी। जाहिर है अंग्रेज इससे क्षुब्ध थे। ब्रिटिश जज रैडक्लिफ़ को दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करने का दायित्व सौंपा गया था। रैडक्लिफ़ न तो इससे पहले भारत आए थे और न ही इसके बाद कभी आए। इसके बावजूद उन्होंने दोनों देशों के बीच जो सीमारेखा खींची उससे करोड़ों लोगों अंसतुष्ट हो गए। जल्दबाज़ी में किए गए इस विभाजन ने 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया। करोड़ों की संख्या में  सीमा के एक तरफ़ मुस्लिम और हिंदू-सिख दूसरी तरफ पहुँच गए। भारी संख्या में दोनों तरफ़ के लोगों को सीमा के पार जाना पड़ा। तनाव बढ़ा और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू हो गए। इसमे कितने लोग मारे गए इसका सही आँकड़ा कोई नहीं बता सका। इतिहासकार मानते हैं कि पाँच लाख से अधिक लोग मारे गए, 10 हज़ार महिलाओं के साथ या तो बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया।

एक करोड़ से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिसका असर आज भी दक्षिण एशिया की राजनीति और कूटनीति पर दिखता है। दक्षिण एशिया के इतिहासकार मानते हैं कि अगर ब्रिटेन ने विभाजन के लिए इतनी जल्दबाज़ी नहीं दिखाई होती और इसे थोड़ी तैयारी के साथ अंजाम दिया जाता तो काफ़ी हद तक कत्लेआम को टाला जा सकता था। जम्मू-कश्मीर मसले की वजह से दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ा। यह राज्य भारत और पाकिस्तान की सीमा पर मुस्लिम बहुल राज्य था लेकिन यह किस देश के साथ जुड़े ये फ़ैसला जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक को करना था। आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध शुरू हो गया लेकिन इस विवाद का आज तक कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है। कश्मीर विवाद आज तक दोनों देशों को उलझाए हुए है। दोनों देश इस विवाद को लेकर कई बार सैनिक कार्रवाई कर चुके हैं। यद्दपि दोनों ही देश एक दूसरे से इतिहास, सभ्यता, भूगोल और अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं फिर भी दोनों देशों में तनाव है।

भारत और पाकिस्तान में लगातार प्रतिद्वंद्विता बनी रही और इसकी वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग कभी पनप नहीं पाया। भारत में आज भी बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, कुल आबादी का लगभग सातवां हिस्सा। पाकिस्तान से तनाव के कारण भारत की धर्मनिरपेक्ष जीवन पद्धति और धार्मिक सहिष्णुता में गंभीर उतार चढाव देखने को मिलते हैं। सीमा पर गोलीबारी से लेकर क्रिकेट तक इन स्थितियों से प्रभावित होते रहे हैं। 1980 के दशक के अंत में कश्मीर में अलगाववादी गतिविधि शुरू होने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते और भी ख़राब हुए हैं। पाकिस्तान लगातार कहता रहा है कि वह कश्मीर के अलगाववादियों को सिर्फ़ नैतिक समर्थन दे रहा है जबकि भारत मानता है कि पड़ोसी देश मुस्लिम चरमपंथियों को संगठित करने के साथ ही हथियार मुहैया करा रहा और प्रशिक्षण भी दे रहा है। भारत और पाकिस्तान, उस हिंसा के साए से निकलने के लिए कोशिश करते रहे हैं जिसके बीच दोनों देशों का जन्म हुआ था। कश्मीर अधूरे विभाजन का एक पहलू भर है।

इन सबके बावजूद भारत और पाकिस्तान थोड़ी झिझक और कभी-कभी दर्द के साथ ही रिश्तों में मिठास घोलने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह सब सांकेतिक मात्र होता है। धार्मिक आधार पर दोनों देशों में नफरत फैलाने का काम भी अंदर ही अंदर चलता रहता है। पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी पर पिछले दिनों जे एन यू के छात्रों पर देशद्रोह का मामला बना है। तब श्री श्री रविशंकर का यह उदघोष यहां किस नजरिये से देखा जायेगा पता नहीं। हो सकता है उन्हें आध्यात्मिक गुरू होने का लाभ मिल जाये। मगर भारतीय बहुसंख्य जनमानस की मानसिकता बदलने की एक बड़ी चुनौती हमारे सामने है।
शैलेन्द्र चौहान 
34 /242, सेक्टर -3, प्रतापनगर, जयपुर -302033, मो.न. 07838897877

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