श्री पी.सी.रामपुरियाजी,अमित द्विवेदी,रजनीश के.झा और मनीषा दीदी का हार्दिक आभार,.जिन्होंने मेरी हास्य गजल को पसंद किया। इनकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया की अपेक्षा में एक गजल और प्रस्तुत कर रहा हूं...
इश्क में हम हैं गिरफ्तार खुदा खैर करे
डैडी उनके हैं हवलदार खुदा खैर करे
इतनी गरमी पड़ी इस बार खुदा खैर करे
मेढ़की तक पड़ी बीमार खुदा खैर करे
काम होता नहीं आजकल दफ्तर में कहीं
हो गये दिन सभी रविवार खुदा खैर करे
ढ़ूंढने आदमी निकला था जमाने में वफा
वक्त खुद हो गया गद्दार खुदा खैर करे
मेंहरबा मीडिया कुबड़ों पे हुआ है ऐसा
बौनी लगने लगी मीनार खुदा खैर करे
देखते-देखते इस दौर के मेकअप का कमाल
हुस्न लगने लगा खूंखार खुदा खैर करे
शेखचिल्ली न मिला एक भी नीरव-सा यहां
इश्क में खो दिया घर-बार खुदा खैर करे।
पं.सुरेश नीरव
10.7.07
खुदा खैर करे
Labels: हास्य गजल
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