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5.2.17

यूपी वाले कैसे बचायेंगे देश!

एच.एल.दुसाध 

हाल ही में मशहूर पत्रकार पलास बिश्वास का एक खास लेख छपा था जिसमें उन्होंने यूपी के लोगों से संघी शासन के विरुद्ध लामबंद होने की कातर अपील करते हुए लिखा था -‘यूपी में सामाजिक बदलाव की दिशा बनी है.यूपी ने ही बदलाव के लिए बाकी देश का नेतृत्व किया है.तो अब यूपी के हवाले देश है.देश का दस दिगंत सर्वनाश करने के लिए सिर्फ यूपी जीतने की गरज से अर्थव्यवस्था के साथ –साथ करोड़ों लोगों को बेमौत मारने का जो चाक चौबंद इंतजाम किया है संघ परिवार ने ,उसके हिंदुत्व एजेंडे का प्रतिरोध यूपी से ही होना चाहिए.यूपी वालों के पास ऐतिहासिक मौका है प्रतिरोध का.देश आपके हवाले है.’बहरहाल सिर्फ पलास विश्वास ही नहीं सोशल और प्रिंट मीडिया पर सक्रिय ढेरों जागरूक लोग ही यूपी वालों से विशेष प्रत्याशा करने लगे हैं.ऐसे में यूपी वालों के सर पर एक ऐतिहासिक जिम्मेवारी आन पड़ी है और अगर वे इसके निर्वहन में आगे बढ़ना चाहते तो उन्हें जिस आरएसएस का भाजपा राजनीतिक संगठन है उसके निर्माण की पृष्ठभूमि,रणनीति और उद्देश्यों को ठीक से समझ लेना होगा.


यह सभी जानते हैं कि संघ की स्थापना 1925 में पूना के चित्तपावन ब्राह्मण डॉ.केशवराम बलिराम हेडगेवार,जो बंगाल की उस अनुशीलन समिति का सदस्य रहे,जिसमे शुद्रातिशूद्रों का प्रवेश पूरी तरह निषिद्ध था, ने ही की थी .किन्तु सामान्यतया लोग उन परिस्थितियों जिक्र नहीं करते ,जिससे प्रेरित होकर डॉ.हेडगेवार संघ के निर्माण की दिशा में आगे बढ़े.अंग्रेज भारत का इतिहास यह बताता है कि 1925 के पूर्व वर्षों में हिन्दू समाज के भूदेवता ब्राहमणों के विरुद्ध हालात बड़ी तेजी से बदलने लगे थे.अंग्रेजों द्वारा आर्य-तत्व के आविष्कार के बाद पुणे के सर्वाधिक मशहूर चित्तपावन ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में तत्कालीन ब्राह्मण विद्वानों द्वारा उन्हें अंटार्कटिक से आये ‘आर्य’ प्रमाणित करने का जो अभियान शुरू किया गया था ,वह तुंग पर पहुँच चुका था.इस बीच 1922 में सिन्धु सभ्यता के उत्खनन से हुए सत्यान्वेषण ने भारत में विदेशी मूल के ब्राह्मणों के आगमन की पुष्टि कर दिया था.उधर सिन्धु सभ्यता के सत्यान्वेषण और फुले के आर्य-अनार्य सिद्धांत से प्रेरित पेरियार,दक्षिण भारत में मूलनिवासिवाद का मन्त्र फूंककर कर ब्राह्मण वर्चस्व की जमीन खिसकाना शुरू कर चुके थे.इसके पूर्व 1918 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में पुरुषों के साथ 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए मताधिकार का कानून पास हो चुका था.इन सारे हालातों पर किसी की सजग दृष्टि थी,तो वह डॉ हेडगेवार थे .ब्रिटेन में महिला फ्रेंचाइज पारित होते ही उन्होंने अपनी तीक्ष्ण मनीषा से सार्विक मताधिकार और भारत के भविष्य का चित्र देख लिया था.

1925 के पूर्व वर्षों में डॉ.हेडगेवार को यह अनुमान लगाने में दिक्कत नहीं हुई कि जो भारत अंग्रेजों के लिए बोझ बन चुका है,उसे वे निकट भविष्य में छोड़कर चले जायेंगे.उनके जाने के बाद भारत में भी चलेगी संसदीय प्रणाली जिसमें सदियों से शक्ति के तमाम स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक-सांस्कृतिक )से वंचित किये गए दलित,आदिवासी और पिछड़ों को भी समान रूप से वोट देने का अवसर मिलेगा.वैसे में जिन ब्राह्मणों को आर्य प्रमाणित करने की होड़ मची है उन्हें विदेशी चिन्हित किये जाने के कारण स्वाधीन भारत के जागरूक शुद्रातिशूद्र वोट देने के पहले दो बार सोचेंगे.उन दिनों एक बात यह भी थी कि जिस तरह आर्य समाजी खुद को आर्य कहते थे,उसी तरह ब्राह्मण खुद को हिन्दू न कहकर सिर्फ ‘ब्राह्मण’ के रूप में परिचय देते थे.हिन्दू कहने में उन्हें शर्म आती थी.ऐसी परिस्थिति में डॉ.हेडगेवार को स्वाधीन भारत ब्राह्मणों की असुरक्षा ने काफी चिंतित कर दिया.चिंता के इसी दौर में उन्हें सावरकर का सूत्र मिला जिसने उन्हें विशाल हिन्दू समाज बनाने की दिशा में अग्रसर किया.लेकिन सावरकर से विशाल हिन्दू समाज बनाने का बुनियादी फार्मूला पाकर भी उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ के बैनर तले  काम करने की बजाय अपना स्वतंत्र संगठन खड़ा करने का निर्णय लिया.
21 जून ,1940 की सुबह 9 बजकर 27 मिनट पर इस धरा को त्यागने पूर्व आधुनिक भारत के सर्वाधिक दूरदर्शी ब्राह्मण डॉ.हेडगेवार ने हिन्दू-धर्म-संस्कृति के उज्जवल पक्ष और अल्पसंख्यक,विशेषकर मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के आधार पर स्वाधीन भारत में हिन्दू ध्रुवीकरण के माध्यम से हिन्दुराज अर्थात ब्राह्मणराज का सारा फार्मूला तैयार कर दिया था.बाद में गोलवलकर,श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,डी.डी.उपाध्याय जैसे ब्राह्मण मनीषियों ने अपने अथक चिंतन से बची -खुची कमियों को दूर कर दिया.अतः 1925 में स्थापित संघ डॉ.हेडगेवार के फार्मूले पर चुपचाप काम करता रहा,लेकिन 7 अगस्त,1990 को आजाद भारत में एक ऐसी घटना हुई जिसने संघ परिवार को हेडगेवार के फार्मूले के साथ खुलकर मैदान में उतरने के लिए बाध्य कर दिया.वह घटना थी मंडल की ऐतिहासिक रिपोर्ट.मंडल रिपोर्ट ने दो तरीके से शक्ति के स्रोतों पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा जमाये सवर्णों के स्वार्थ पर आघात किया.पहले,इसने सरकारी नौकरियों के क्षेत्र में उनको 27 प्रतिशत अतिरिक्त अवसरों से वंचित कर आर्थिक रूप से कमजोर करने के साथ सता की संस्थाओं में पकड़ कमजोर कर दिया.दूसरी जो बड़ी बात हुई ,वह थी बहुजनों की जाति चेतना का लम्बवत विकास .जाति चेतना के लम्बवत विकास के बाद सवर्ण समुदाय राजनीतिक रूप से लाचार समूह में तब्दील होने के लिए बाध्य हुआ जिसका सबसे बुरा असर उन ब्राहमणों पर हुआ जिनका मंडल पूर्व संसद और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत से ऊपर रहा करता था.ऐसे में मंडल से उपजे हालात का सामना करने के संघ परिवार राम जन्मभूमि –मुक्ति आन्दोलन के जरिये खुलकर सामने आ गया.उसके इस आन्दोलन से हजारों करोड़ की संपदा और असंख्य लोगों की प्राणहानि हुई, किन्तु इसी रास्ते पहले संघी अटल बिहारी वाजपेयी और बाद में हिन्दू हृदय सम्राट मोदी के हाथ में देश के सत्ता की बागडोर आई.
चूंकि संघ का एकमेव उद्देश्य ब्राह्मणों के नेतृत्व में सवर्णों के स्वार्थ की रक्षा करना रहा है,इसलिए जब-जब उसके लोग सत्ता में पहुंचे उन्होंने बहुजनों के आरक्षण पर अघात करने में सर्वशक्ति लगाया.आरक्षण के खात्मे के लिए ही स्वयंसेवक वाजपेयी ने  सत्ता में आने के साथ उन सरकारी उपक्रमों को बेचने के लिए बाकायदे विनिवेश मंत्रालय गठित कर दिया था ,जहां जन्मजात वंचितों के लिए आरक्षण के अवसर सुलभ है.आरक्षण को निष्प्रभावी करने के लिए ही  वाजपेयी जी ने निजीकरण ,उदारीकरण की उन नीतियों को खूब बढ़ावा दिया ,जिसके खिलाफ संघ ‘स्वदेशी जागरण मंच’के तहत लम्बे समय से यह कहकर अभियान चलता रहा था कि इससे देश आर्थिक रूप से विदेशियों का गुलाम बन जायेगा,जिसके फलस्वरूप स्वतंत्रता संग्राम की भांति आर्थिक आजादी की एक और लड़ाई लड़नी पड़ेगी.मोदी भी आज निजीकरण और उदारीकरण की डगर पर वाजपेयी को बौना बनाने के साथ ही सुरक्षा से जुड़े उपक्रमों में 100 प्रतिशत ऍफ़डीआई को हरी झंडी दिखा रहे हैं तो उसके पीछे संघ का वही आरक्षण विरोधी षडयंत्र जो पूना-पैक्ट से अबतक जारी है.संघ के रग-रग में सामाजिक न्याय –विरोधी भावना की व्याप्ति है इसीलिए ही 2004 में मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज होते ही साध्वी उमा भारती को  अगस्त  2002 में दिग्विजय सिंह द्वारा लागू  ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’ जैसे  क्रन्तिकारी निर्णय को रातों-रात ख़त्म करने कोई विवेक दंश नहीं हुआ था.कितना उदाहरण गिनाया जाय!मंडल उत्तरकाल का इतिहास आँख में अंगूली डालकर बताता है कि केंद्र से लेकर राज्यों तक की सत्ता में आने के बाद भापजा के लोगों ने सिर्फ और सिर्फ बहुजन की मुक्ति का औंजार आरक्षण के निर्मूलन में सर्वशक्ति लगाया है,क्योंकि यही उसका चरम लक्ष्य है.वर्तमान में पांच राज्यों के हो रहे चुनावों में यदि भाजपा बेहतर परिणाम देने में सफल हो जाती है,खासतौर से यूपी में,तो राज्यसभा में उसकी लाचारी दूर हो जाएगी .फिर तो उसके भयावह संस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे के लागू होने के साथ-साथ आरक्षण के खात्मे का मार्ग प्रशस्त से होने कोई नहीं रोक पायेगा .ऐसे में भाजपा को रोकना यूपी के विवेकवान लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न हो गया है.

लेकिन यूपी के लोग अगर भाजपा से देश को बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ बातों को खासतौर से ध्यान में रखना होगा.पहला, राज्यों से लेकर केंद्र की भाजपा राजनीति में जो बहुजन चेहरों की भरमार है,उसका अर्थ यह नहीं कि भाजपा पिछड़ापंथी पार्टी हो गयी है.बहुजनों की जाति चेतना के प्राबल्य के कारण दलित –पिछड़ों को फ्रंट में रखना उसकी मज़बूरी है.वह ब्राह्मणों के नेतृत्व में सवर्णों की स्वार्थ रक्षा की नीति पर आज भी अडिग है,इसका जायजा उसके मंत्रिमंडल में शामिल चेहरों को देखकर लगाया जा सकता है,जिसमें  ब्राह्मणों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ऊपर दिखाई पड़ती है.दूसरी बात जो ध्यान में रखने की है वह यह कि आरक्षण विरोधी उसके खौफनाक इरादे को भांपते हुए ही मोदी की तुगलकी नीतियों से बुरी तरह निराश होने के बावजूद उद्योग-व्यापार,फिल्म-मीडिया,ज्ञान और सांस्कृतिक इत्यादि शक्ति के तमाम स्रोतों पर बेहिसाब कब्ज़ा जमाया सवर्ण समुदाय इस बार भापजा के पीछे और मजबूती से लामबंद हो गया है.तीसरी बात यह है कि कुछ अज्ञात कारणों से भाजपा विरोधी दलित-पिछड़े नेता उसके खिलाफ पर्याप्त रूप से आक्रामक नहीं हैं.ऐसे में यूपी के लेखक ,एक्टिविस्टों और जागरूक लोगों पर अतिरिक्त जिम्मेवारी आन पड़ी है.ऐसे लोगों को अपनी सारी शक्ति  इस बात पर केन्द्रित करनी होगी कि संघ एक विशुद्ध सामाजिक न्याय विरोधी संगठन है ,जो अपने राजनीतिक संगठन भाजपा के जरिये राजसत्ता पर कब्ज़ा ज़माने के लिए इसलिए अग्रसर है ताकि आरक्षण का खात्मा किया जा सके.जागरूक भाजपा विरोधी यदि उसके आरक्षण विरोधी चरित्र पर फोकस न कर ,अतीत की भांति उसके साम्प्रदायिक चरित्र को ही उजागर करने में अपनी ताकत झोंकते हैं,फिर तो भाजपा से देश को बचाना कठिन हो जायेगा.

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