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6.4.18

‘लिंगायत’ को अलग धर्म का दर्जा देने के मायने

कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश नागामोहन दास समिति की सिफारिशों को मान्य करते हुए राज्य के कांग्रेस मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायुत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देना स्वीकार कर लिया है। सिद्धारमैया सरकार ने समिति की लिंगायुत समुदाय को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा देने की सिफारिश भी मंजूर कर ली है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले लिया गया यह निर्णय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। राज्य में लिंगायत समाज अगड़ी जातियों में शामिल है और लंबे समय से मांग करता आ रहा था। इस समुदाय के लोगों की संख्या करीब 18 प्रतिशत है।
यह समुदाय भाजपा का पारंपरिक वोटबैंक माना जाता रहा है। अब लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर सिद्धारमैया ने बीजेपी के इस परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने का प्रयास किया है। वहीं इनमें बड़ी जातिगत एकता भी है। समुदाय के समर्थक शरीर पर इष्टलिंग धारण करते है। यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से बांधते हैं। इष्टलिंग को ये लोग आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते है।

आजादी के बाद से ही कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत समुदाय का वर्चस्व रहा है। 1989 में एक विवाद के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र पटेल को सत्ता से हटा दिया था, तब लिंगायत समुदाय कांग्रेस का साथ छोड़कर जनता दल के रामकृष्णा हेगड़े के समर्थन में आ गया था। हेगड़े के निधन के बाद बी. एस. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के नेता बने।  परंतु बीजेपी ने भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया तो नाराज लिंगायत समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया। अब जबकि एक बार फिर भाजपा ने  येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने कि वजह यह है कि लिंगायत समाज में उनका मजबूत जनाधार है।

राजनैतिक दृष्टि से देखें तो फिलहाल ऐसा लग रहा है कि सिद्धारमैया के इस निर्णय से राज्य के आगामी विधानसभा में कांग्रेस को फायदा होगा। इस मास्टर स्ट्रोक से सिद्धारमैया बीजेपी के लिंगायत वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रहे हैं, ऐसा लग रहा है। कांग्रेस का अनुमान है कि इस निर्णय के बाद लिंगायत समुदाय के मतदाता विधानसभा चुनाव में उसके ही समर्थन में मतदान करेंगे, जबकि दूसरी ओर वीरशैव समुदाय के लोग कांग्रेस के इस निर्णय का भारी विरोध कर रहे है। इसके साथ ही लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज कर कांग्रेस ने बीजेपी को उलझन में डाल दिया है। इस निर्णय से भाजपा के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया है। केंद्र सरकार यदि कर्नाटक सरकार के इस निर्णय पर मुहर लगाती है तो फायदा कांग्रेस को होगा और यदि उसका विरोध करती है तो भी फायदा कांग्रेस को ही होगा।

धर्म का उपयोग राजनीति में नहीं होना चाहिए।  इसके बावजूद धर्म और राजनीति का मेल सदियों से होता आ रहा है। राजनीतिक दल वोटबैंक की खातिर इसे बढ़ावा  देते रहे है। हर धर्म और वर्ग के लोग अपना प्रभुत्व चाहते हैं। यह सच है कि सत्ता प्राप्ति का  भावपारक उपाय है, परंतु यह नीतिगत विकास की राह में अड़चन है।


कुशाग्र वालुस्कर
भोपाल, मध्यप्रदेश

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