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19.8.19

370 व 35 ए हटाना कितना सही, कितना गलत और कितना सफल

पिछले कई दिनों से जम्मू- कश्मीर राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है. बना भी क्यों न रहे, जो जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटा दिया गया. हालाकि भारत की शान व अभिन्न हिस्सा कहा जाने वाला कश्मीर आजादी के बाद से ही विवादित रहा और चर्चा का विषय बना रहा.

संशोधन के अनुसार जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 के पहले क्लॉज़ 370(1) बाकायदा कायम है. सिर्फ 370 (2) और (3) व 35-ए हटाए जाने से पूरे भारत की राजनीति में सुनामी सी आ गई है. इस संशोधन के बाद जम्मू-कश्मीर अब राज्य नहीं रहेगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर की जगह अब दो केंद्र शासित प्रदेश होंगे. चूंकि पहले क्लॉज 370(2), 370(3) में कुछ प्रावधान था. जिसे संशोधित कर जम्मू एवं कश्मीर को लेकर कर नया कानून पारित किया गया है. बाकी अनुच्छेद 370 बाकायदा भारतीय संविधान में मौजूद है. अब इस कानून के तहत एक का नाम होगा जम्मू-कश्मीर, दूसरे का नाम होगा लद्दाख. दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन लेफ़्टिनेंट गवर्नर के हाथ में होगा. जम्मू-कश्मीर की विधायिका होगी जबकि लद्दाख में कोई विधायिका नहीं होगी.

खैर संसद में वाद- विवाद और इन तमाम अटकलों के बाद यह प्रस्ताव संसद के इम्तिहान में पास हो गया. बड़ी बात तो यह कि, कश्मीर के इस बहुप्रतीक्षित मसले को लेकर केंद्र सरकार ने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थी. जिसके चलते कश्मीर में बड़ी संख्या में केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा बल की व्यवस्था की गई है. हालाकि पिछले कुछ दिनों पहले जब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को वापस रोक लिया गया था और सुरक्षा बलों की गतिविधियां बढ़ गई थी, तभी जम्मू- कश्मीर के नेताओं में हलचल और दहशत फैल गई थी.

लेकिन सुरक्षा व्यवस्था की इतनी जद्दोजहद को लेकर सभी के मन में आशंका थी कि जम्मू- कश्मीर में जरूर कुछ होने वाला है. जिसको लेकर कश्मीरी नेताओं में छटपटाहट भी देखने को मिल रही थी. आखिरकार छटपटाहट क्यों न हो, जो कश्मीर पर अजगर की तरह कुंडली मारकर बैठे थे. बड़ी बात तो यह है कि इस पूरे मसले पर विपक्षी पाले से लेकर अन्य राजनीतिक हलकों में हंगामा मचा हुआ है. इस राष्ट्रीय मामले पर कुछ राजनेताओं का मानना है कि एक देश- एक संविधान. अच्छा.. वहीं कुछ राजनेताओं ने इसका जमकर विरोध किया. मजे की बात तो यह है कि इतने विरोध के बाद भी राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई, और अभी भी लगातार विरोध जारी है.

लेकिन इस पूरे मामले पर सोचने का विषय तो यह कि, क्या इस पूरे फैसले पर कश्मीर की राय सरकार ने जानने की कोशिश की? क्या लद्दाख और जम्मू- कश्मीर की प्रतिक्रिया ली गई? यदि हम इसके दूसरे पहलू पर बात करें तो, पिछले कई दिनों से कश्मीर के लोग कैसे जी रहे और कैसे सांस ले रहे हैं, क्या इसकी खबर किसी को है.

खास बात यह है कि इस प्रस्ताव को सदन में पेश करने से पहले जम्मू- कश्मीर के कुछ दिग्गज नेताओं को नजरबंद और गिरफ्तार भी कर लिया गया. जिसके चलते राजनीतिक खेमे में खलबली मच गई. लेकिन चिंता का विषय तो यह कि जितने भी नेताओं को को गिरफ्तार किया गया, वो लोकसभा सदस्य है. लोकसभा में नेशनल कांफ्रेंस के तीन सांसद हैं. राज्यसभा में पीडीपी के दो सांसद हैं. ये तो अलगाववादी नहीं थे, फिर इनकी राय क्यों नहीं ली गई. खैर अभी भी इस पूरे मामले पर तरह- तरह की बयानबाजी जारी है. कश्मीर में भी अभी कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

इतना ही नहीं इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अलग- अलग देश बयानबाजी कर रहे हैं. बड़ी बात तो यह है कि न पाक पाकिस्तान इस पर बौखला गया है. जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने के बाद भारत और पाकिस्‍तान के बीच तनाव का असर अमृतसर-लाहौर के बीच चलने वाली बस सेवा पर भी पड़ा है। बौखलाए पाकिस्तान ने शनिवार को भारत से अपनी बस मंगवा ली और लाहौर से भारत की बस को खाली लौटा दिया। इतना ही नहीं, पाकिस्‍तान ने इस बस सेवा को बंद या निलंबित किए जाने के बारे में लिखित सूचना भी नहीं दी। इसके साथ ही दिल्‍ली और लाहौर के बीच चलने वाली बस सेवा भी बंद कर दी गई है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि पाकिस्तान की सोच नपाक होती तो उसको इतनी समस्या न होती.

खैर अब सरकार की चिंता का विषय तो यह है कि जम्मू- कश्मीर के मौजूदा असाधारण हालात से कैसे निपटे और अहम बात यह भी है कि हम जम्मू- कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मनाते हैं और है भी. ऐसे में कश्मीरी लोग भी इस देश के अभिन्न अंग हैं. उन्हें उग्र राष्ट्रवाद की ज़रूरत नहीं है, आपके करुणा की ज़रूरत है।

हालाकि देखना यह होगा कि जम्मू- कश्मीर से 370 व 35 ए हटाना कितना सही, कितना गलत और कितना सफल साबित होता है. एक तरफ कश्मीर से इस अनुच्छेद के निशक्त होने से कश्मीरी पंडितों के साथ अन्य प्रदेश की जनता में खुशी का महौल है. होना भी चाहिए. क्या जिनके बारे में, जिनके लिए, जिनके हितों का एलान करते हुए ये कानून बना है, क्या किसी खुशी के काफिरे में आपको वो नज़र आ रहे हैं? लेकिन केंद्र सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला तो तब सफल साबित होगा, जब कश्मीर के लोग भी इस फैसले से संतुष्ट हों, और जिस दिन सड़क पर कश्मीरी उल्लास मानते नज़र आएं आप समझ लीजिएगा की सरकार का ये प्रयास सफल रहा.


राजकुमार पाण्डेय
स्वतंत्र पत्रकार
रायपुर
pandey96.rajk@gmail.com

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