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31.8.25

मीडिया : सत्ता का प्रहरी या सत्ता का भोंपू..? पत्रकारिता का पतन औरपुनर्जन्म की आवश्यकता

बंटी भारद्वाज-

भारत की पत्रकारिता कभी समाज का वह आईना थी जिसमें जनता अपनीपीड़ा, अपनी आकांक्षाएँ और अपने संघर्षों को साफ़-साफ़ देख पाती थी।पत्रकार की कलम में वह ताक़त थी कि उसका लिखा हुआ एक वाक्यदिल्ली की सत्ता को हिला सकता था। स्वतंत्रता संग्राम इसका सर्वोत्तमउदाहरण है—जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने केसरी के माध्यम सेअंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी, महात्मा गांधी ने हरिजन और यंग इंडियाको अपने आंदोलन का हथियार बनाया, पंडित नेहरू, गणेश शंकरविद्यार्थी जैसे क्रांतिकारी लेखकों ने अपने शब्दों से जन-जागरण काबिगुल फूंका। पत्रकारिता तब किसी पेशे से बढ़कर एक "मिशन" थी—राष्ट्र की चेतना को जगाने का मिशन।

लेकिन आज…..

समय का पहिया घूमा, और पत्रकारिता पर व्यवसायिकता का बोझ बढ़तागया। जो कभी समाज और राष्ट्रहित के लिए लड़ती थी, वही अबटीआरपी, विज्ञापन और निजी लाभ के लिए झुकती दिख रही है। आजसमाचार का उद्देश्य सूचना देना कम, सनसनी फैलाना ज़्यादा हो गया है।“फेक न्यूज़” का ट्रेंड सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक फैल चुकाहै, जिससे पत्रकार की साख पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है। जो कललोकतंत्र का चौथा स्तंभ था, वही आज खोखला और संदिग्ध नज़र आनेलगा है।

लोकतंत्र और मीडिया : नींव का स्तंभ

लोकतंत्र एक इमारत है जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिकाके तीन मजबूत स्तंभों पर टिकी है। चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया उस नींवकी तरह है, जो इस पूरी संरचना को स्थिर रखता है। लेकिन जब यहीस्तंभ भ्रष्टाचार, झूठ और प्रपंच से खोखला हो जाए तो लोकतंत्र की पूरीइमारत हिलने लगती है। मीडिया यदि सत्ताओं, कॉर्पोरेट्स या अपराधजगत के साथ सांठगांठ कर ले तो उसका “वॉचडॉग” वाला रोल खत्म होजाता है। तब वह प्रहरी नहीं, बल्कि सौदागर बन जाता है।

पत्रकारिता : मिशन से पेशा और अब धंधा

 

आज पत्रकारिता के क्षेत्र में दो चेहरे साफ़ दिखाई देते हैं—

 

1. वे पत्रकार, जो आज भी अपने जीवन को मिशन मानकर सच्चाई औरनिष्पक्षता के लिए लड़ रहे हैं। ये लोग कम संसाधनों के बावजूद भ्रष्टाचार, अन्याय और असमानता के खिलाफ अपनी कलम से जंग लड़ रहे हैं।

2. वे तथाकथित पत्रकार, जिन्होंने पत्रकारिता को धंधा बना दिया है।इनकी पहचान चमचमाती गाड़ियों, ‘प्रेस’ लिखे बोर्ड और सत्ता से करीबीसे होती है। ये गाड़ियों पर बिना नंबर प्लेट घुमते हैं, हेलमेट नहीं पहनते, कानून को अपने पैरों तले कुचलते हैं और हर जगह डर का माहौल बनाकरउगाही करते हैं।

 

यही नहीं, कई जगह आपराधिक मानसिकता के लोग पत्रकारिता के नामपर वैधता हासिल कर लेते हैं ताकि अपने अवैध कारोबार को बचा सकें।ये लोग समाज में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे हैं।

मीडिया और नैतिकता का पतन

पत्रकारिता में पढ़ाई के दौरान "एथिक्स" यानी नैतिकता और निष्पक्षताकी बातें जरूर सिखाई जाती हैं। लेकिन यह पाठ्यक्रम की किताबों तकही सीमित रह गया है। व्यवहारिक जीवन में यह सब वैसा ही है जैसे स्कूलकी नैतिक शिक्षा की किताब—पढ़ ली जाती है, लेकिन अमल में नहींआती।

 

आज खबरों को "स्लैंट" देकर यानी झुकाव दिखाकर परोसा जाता है।हेडलाइन से ही यह बता दिया जाता है कि खबर किस पक्ष में है। कहींबलात्कार की खबर को जाति-धर्म का रंग दिया जाता है, कहीं अपराध कोराजनीतिक चश्मे से देखा जाता है। जबकि पत्रकारिता का असलीदायित्व है—“तथ्य” प्रस्तुत करना, न कि “मंशा” थोपना।

मीडिया : सत्ता का प्रहरी या सत्ता का भोंपू?

आज मीडिया का काम सिर्फ सत्ता की आलोचना तक सीमित मान लियागया है। लेकिन यह सोच अधूरी है। मीडिया का असली काम है—

तथ्यपूर्ण सूचना देना,

विवेचना करना,

और समाज को सही दिशा दिखाना।

 

लेकिन वर्तमान में मीडिया बाइनरी में फंस चुका है—या तो पूरी तरहसरकार के समर्थन में खड़ा होता है, या पूरी तरह विरोध में। संतुलन औरनिष्पक्षता जैसे शब्द धीरे-धीरे खो रहे हैं।

जिम्मेदारी किसकी है?

मीडिया की गिरती साख का सबसे बड़ा कारण स्वयं मीडिया है।

जब पत्रकार अपनी बैठक में तय करते हैं कि “हिंदू बनाम मुस्लिम वालीखबर ज्यादा बिकेगी”, तभी खबर की मौत हो जाती है।

जब टीआरपी के नाम पर समाज के पूर्वाग्रहों को हवा दी जाती है, तभीपत्रकारिता का नैतिक कर्तव्य खत्म हो जाता है।

और जब बड़े पत्रकार खुद स्वीकारते हैं कि उनका काम अब "एंटरटेनमेंट" भर रह गया है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

लोग कहते हैं, “जनता वही देखना चाहती है।” लेकिन सच्चाई यह है किजनता को दिशा दिखाने का दायित्व मीडिया का ही है। जनता दूध पीनेवाली बकरी और 2000 के नोट में चिप जैसे फर्जी किस्सों को देखने नहींआती, बल्कि मीडिया ही यह ठान लेता है कि यही दिखाना है।

समाधान : पत्रकारिता का पुनर्जागरण

 

अगर लोकतंत्र को बचाना है तो पत्रकारिता को अपने मिशन-काल मेंलौटना होगा।

 

1. नैतिकता और निष्पक्षता – पत्रकार को अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं सेऊपर उठकर तथ्यों को रखना होगा।

2. एथिक्स की वापसी – मीडिया हाउस को व्यावसायिक दबाव से ऊपरउठकर पत्रकारिता की मूल आत्मा को प्राथमिकता देनी होगी।

3. सोशल मीडिया का संयम – फेक न्यूज की चुनौती का मुकाबला सच्ची, फैक्ट-चेक्ड और जिम्मेदार रिपोर्टिंग से करना होगा।

4. जन-जवाबदेही – मीडिया को समाज को यह भरोसा दिलाना होगा किवह बिकाऊ नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ है।

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। अगर यह स्तंभ खोखला हुआ तोलोकतंत्र की पूरी इमारत धराशायी हो जाएगी। इसलिए आवश्यकता हैकि पत्रकारिता फिर से अपने मूल स्वरूप में लौटे—जहाँ सत्य सर्वोपरि हो, जहाँ खबर बिके नहीं बल्कि समाज को जगाए, जहाँ पत्रकारिता धंधा नहींबल्कि जन-जागरण का माध्यम बने। यह लेख एक चेतावनी भी है औरएक आह्वान भी—यदि पत्रकारिता ने समय रहते आत्ममंथन नहीं किया तोलोकतंत्र की नींव ही हिल जाएगी। लेकिन यदि पत्रकार कलम को फिर सेसमाजहित और राष्ट्रहित का हथियार बना लें तो न सिर्फ पत्रकारिता कापुनर्जन्म होगा, बल्कि लोकतंत्र भी और मजबूत होगा।

 

बंटी भारद्वाज,पत्रकार

पत्रकारिता के क्षेत्र मे 17 साल का अनुभव.

आरा, बिहार

27.8.25

शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण पर राजस्थान में मुकदमा


राजस्थान के वकील का आरोप- डिफेक्टिव वाहनों की ब्रांडिंग करते हैं, दोनों हुंडई कार के ब्रांड एंबेसडर

नई दिल्ली। भरतपुर के एक कार मालिक ने हुंडई की तकनीकी रूप से खराब कार बेचने के आरोप में ब्रांड एंबेसडर शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण और एजेंसी के छह अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज कराया है. शिकायतकर्ता ने 2022 में कार खरीदी थी, जिसके बाद तकनीकी खराबी सामने आई।

राजस्थान के भरतपुर में एक कार मालिक ने फिल्म स्टार शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण और हुंडई कार एजेंसी के छह लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया है. मामला तकनीकी रूप से खराब कार बेचने से जुड़ा हुआ है.

थाना मथुरा गेट क्षेत्र के अनिरुद्ध नगर निवासी 50 वर्षीय कीर्ति सिंह ने बताया कि उन्होंने 14 जून 2022 को हरियाणा के सोनीपत स्थित मालवा ऑटो सेल्स प्राइवेट लिमिटेड से हुंडई अल्काजार कार खरीदी थी. लेकिन खरीद के तुरंत बाद ही कार में तकनीकी खराबियां आने लगीं।

यह शिकायत 25 अगस्त को थाना मथुरा गेट में दर्ज कराई गई. मामला बीएनएस 312, 318, 316, 61 और भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 406 और 120 बी के तहत दर्ज हुआ..

22.8.25

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित “ऑपरेशन सिंदूर काव्य प्रतियोगिता” के परिणाम घोषित

  1. देशभर के 28 राज्यों के 3500 कवि इस काव्य प्रतियोगिता से जुड़े

• 361 कविताओं का चयन किया गया 

• ज्यूरी से चुने गए पहले तीन विजेताओं को मिला नकद पुरस्कार

• प्रेरणादायक कविताओं के लिए 50 अन्य कवियों को विशेष पुरस्कार

• दिल्ली के डॉ. ओंकार त्रिपाठी को प्रथम पुरस्कार, कोटा के दिव्यांश पॉटर मासूम को द्वितीय पुरस्कार और दिल्ली की डॉ. अमृता अमृत को तृतीय पुरस्कार

 

दिल्ली। भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम से सुसज्जित ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शानदार सफलता पर H B Poetry द्वारा आयोजित ‘ऑपरेशन सिंदूर काव्य प्रतियोगिता’ के परिणामों की घोषणा बड़े हर्ष और गर्व के साथ की गई। साहित्य और कला जगत के प्रतिष्ठित लोगों के निर्णायक मंडल ने पहला पुरस्कार दिल्ली के डॉ. ओंकार त्रिपाठी, दूसरा जयपुर के दिव्यांश पॉटर मासूम और तीसरा पुरस्कार दिल्ली की डॉ. अमृता अमृत को दिया। तीनों विजेताओं को नकद पुरस्कार के साथ प्रशस्ति पत्र देने की घोषणा की गई है। यह प्रतियोगिता केवल एक साहित्यिक आयोजन ही नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य की विविधता, जीवंतता और सामूहिक रचनाशीलता का उत्सवभी बना।

 

प्रतियोगिता में 28 राज्यों से सहभागिता 

ऑपरेशन सिंदूर काव्य प्रतियोगिता लगभग तीन महीने पहले प्रारंभ हुई। इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देशभर के कवियों और साहित्य प्रेमियों ने अत्यंत उत्साह, उमंग और जोशके साथ भाग लिया। इस प्रतियोगिता में भारत के 28 राज्यों से करीब 3500 कवियों ने अपनी रुचि दिखाई। इनमें से 361 कवियों ने सक्रिय रूप से भाग लेकर अपनी रचनात्मकता और साहित्यिक प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इतनी बड़ी सहभागिता से साफ है कि कविता आज भी समाज के भावों को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है।

साहित्य जगत की प्रतिष्ठित विभूतियों का निर्णायक मंडल

प्रतियोगिता की विश्वसनीयता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए साहित्य और कला जगत की प्रतिष्ठित विभूतियों को निर्णायक मंडल में शामिल किया गया। इनमें प्रख्यात कवि गजेंद्र सिंह सोलंकी, चर्चिच कवि सुदीप भोला और सुप्रसिद्ध गीतकार चरणजीत सिंह चरण शामिल हुए। इन विद्वानों ने निष्पक्ष और पारदर्शी मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद विजेताओं का चयन किया।

 

प्रथम तीन विजेता कविओं को नकद पुरस्कार

प्रतियोगिता में ओजपूर्ण, वीर और श्रृंगार रस से परिपूर्ण साहित्यिक रचनाएं शामिल हुईं। इसलिए प्रथम तीन विजेताओं के चयन के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा रही। ज्यूरी ने विजेताओं की घोषणा की। प्रथम पुरस्कार विजेता को ₹25,000 नकद नकद, द्वितीय विजेता को ₹15,000 नकद और तृतीय विजेता को ₹11,000 नगद दिए जाएंगे। 

 

प्रेरणादायी कविताओं के लिए 50 कविओं को विशेष पुरस्कार

इसके अलावा प्रतियोगिता को और अधिक प्रेरणादायक एवं समावेशी स्वरूप देने के लिए 50 प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। इन पुरस्कृत कवियों में देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि शामिल रहे।

ये रहे Top-50 कवि: इन सभी प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  इनमें गार्गी कौशिक (दिल्ली), राजीव कुमार पांडेय (दिल्ली), मनीष शर्मा (बस्ती, उत्तर प्रदेश),डॉ प्रशान्त जामलिया (सीहोरा, मध्यप्रदेश), उमा विश्वकर्मा (कानपुर,उत्तर प्रदेश), डॉ अशोक सम्राट (दिल्ली), स्नेहलता पांडे (दिल्ली), पुष्पा पोरवाल (फिरोज़ाबाद,उत्तर प्रदेश), सरिता गुप्ता (दिल्ली), राजकुमार 'अर्जुन' (दिल्ली), हरि अग्रवाल (राजस्थान), प्रवेश कुमार (गया, बिहार), शालिनी शर्मा (दिल्ली), अजीत सिंह ग्रामरिक (प्रयागराज, उत्तर प्रदेश), डॉ सुषमा सिंह (कानपुर,उत्तर प्रदेश), शिवकुमार बिलगरामी (दिल्ली), ज्योति (वाराणसी, उत्तर प्रदेश), अनीता जोशी (उत्तराखंड), अंकित शर्मा 'इषुप्रिय' (मध्यप्रदेश), देवेंद्र कुमार पांडेय (उत्तर प्रदेश), मनीष शेंडे (उत्तर प्रदेश) डॉ. अशोक कुमार(उत्तर प्रदेश), सुनीता छाबड़ा (उत्तर प्रदेश), मंजू बरनवाल(पश्चिम बंगाल), रोहित रोज (दिल्ली), गुलाब सिंह (उत्तर प्रदेश), सुधा बसोर सौम्या (दिल्ली), कृतिका सैनी (उत्तर प्रदेश), प्राची प्रवीण कुलकर्णी (महाराष्ट्र), कामना मिश्रा (दिल्ली), अंजना जैन (दिल्ली), डॉ. अनुराग शर्मा (उत्तराखंड), पूजा श्रीवास्तव (पूजा श्रीवास्तव), डॉ. सुरंगमा यादव (उत्तर प्रदेश), मीना रुंगटा (गुजरात), संजय कुमार गिरि (दिल्ली), नरेन्द्र मस्ताना वर्मा (उत्तर प्रदेश), डॉ. जयप्रकाश मिश्र (दिल्ली), धीरज सारस्वत (उत्तर प्रदेश), आयुष यादव (उत्तर प्रदेश), बृजभूषण प्रसाद (बिहार), स्मृति श्रीवास्तव (हरियाणा), आशा झा (छत्तीसगढ़), अतुल जैन सुराणा (मध्य प्रदेश), कपिल कुमार झा (बिहार), निवेदिता शर्मा (दिल्ली), सुशीला शर्मा(उत्तर प्रदेश), हरीश चंद्र सिंह (दिल्ली), शुभ बरनवाल (दिल्ली)और दीपक राजा (दिल्ली) शामिल रहे।

 

हिंदी कविता के ऐसे व्यापक आयोजन भविष्य में भी होंगे- डॉ. हरीश चंद्र बर्णवाल

H B Poetry के मुख्य आयोजक डॉ. हरीश चंद्र बर्णवाल के मुताबिक प्रतियोगिता का उद्देश्य नवोदित और स्थापित कवियों को एक साझा मंच प्रदान करना है। यह पहल ना केवल नई पीढ़ी को हिंदी साहित्य से जोड़ने का माध्यम बनी, बल्कि युवा और नवोदित कवियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का भी अवसर बनी। उन्होंने बताया कि ऐसे आयोजन आने वाले वर्षों में और भी बड़े स्तर पर किए जाएंगे, ताकि हिंदी कविता को नई ऊर्जा, नई पहचान और अधिक व्यापक मंच मिल सके।उन्होंने बताया कि जल्द ही इन कविताओं का एक संकलन प्रभात प्रकाशन से लाने की तैयारी हो रही है।

19.8.25

गड़बड़ियां तो साबित हैं, पर जिम्मेदार कौन सिर्फ बीएलओ या शीर्ष कर्ता-धर्ता!

केपी सिंह-

देश की चुनाव प्रणाली कितनी गड़बड़ रही है इसे लेकर एक के बाद एक नये धमाके हो रहे हैं और हर धमाका पहले से अधिक विस्फोटक साबित हो रहा है। राहुल गांधी ने कर्नाटक के बंगलुरू में महादेवपुर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 1 लाख फर्जी वोटर पंजीकृत किये जाने का मीडिया के सामने प्रेजेंटेशन देकर पहला धमाका किया था। इसके बाद जबाबी कार्रवाई के बतौर भारतीय जनता पार्टी पहले तो अपने को चुनाव आयोग के वकील के रूप में पेश करने लगी और इसके बाद वह खुद भी मतदाता सूची बनाने में व्यापक धांधली होने की शिकायतों पर उतर आई। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने रायबरेली और वायनाड में हुए लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची में 1-1 लाख फर्जी वोटर गिना डाले। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री और पूर्व पुलिस अधिकारी असीम अरुण ने कन्नौज के लोकसभा चुनाव में भी फर्जी वोटरों की कारामात सुना डाली। उधर तेलंगाना में जगन रेडडी ने अपने राज्य की विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटरों के इस्तेमाल से चुनाव परिणाम बदले जाने का कथित रहस्योदघाटन कर डाला। अगर सभी मतदाता सूचियों को बनाने की प्रक्रिया को गड़बड़ बता रहे हैं तो इससे यह सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित होता है कि शुद्ध मतदाता सूचियां बनाने में चुनाव आयोग विफल रहा है। अब मीमांसा यह होनी चाहिए कि ऐसा लापरवाही या जल्दबाजी की वजह से है या इसमें कोई षणयंत्र और बदनियती है।

राजनीतिक दलों के अलावा तटस्थ संगठनों ने भी मतदाता सूचियों की पड़ताल में हाथ बटाया है। उनके निष्कर्षो पर भी गौर कर लिया जाये। द रिपोटर्स कलेक्टिव की 17 अगस्त 2025 की रिपोर्ट में बताया गया है कि कई दक्ष पत्रकारों ने बिहार विधानसभा के तीन विधानसभा क्षेत्रों पिपरा, बगहा और मोतिहारी में अपडेटेड मतदाता सूचियों का सर्वे किया जिसमें 80 हजार से अधिक मतदाताओं को गलत या गैर मौजूद पतों पर पंजीकृत पाया गया। कुछ जगह यह पाया गया कि एक ही घर में सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग धर्म और अलग-अलग जाति के मतदाताओं को दर्ज कर लिया गया था। ऐसे एक-दो नही बल्कि 3590 मामले सामने आये। फिर याद दिला दें कि यह सिर्फ तीन निर्वाचन क्षेत्रों की कहानी है। जाहिर है कि पूरे बिहार की हालत क्या होगी।

रिपोटर्स कलेक्टिव की टीम ने संबंधित बीएलओज से इस बारे में बात करने का प्रयास किया। जिन कुछ लोगों ने मुंह खोला उनके अनुसार उनके पास इतना समय नही था कि वे संदेह होते हुए भी ऐसे घरों में सत्यापन के लिए पहुंच सकें। उनके बयान विपक्ष के इस आरोप की तस्दीक करने वाले हैं कि चुनाव आयोग किसी गलत मंशा से सघन पुनरीक्षण के संबंध में दुराग्रह पर आमादा था। अन्यथा उसे भी यह समझ थी कि बिहार में नये विधानसभा चुनाव का समय सिर पर है तो सघन पुनरीक्षण का कार्य सीमित समय में नही हो सकता। अगर इसके लिए हठधर्मिता न छोड़ी गई तो जल्दबाजी में बीएलओज से बड़ी गलतियां होना अवश्यम्भावी है। फिर भी उसने प्रतिपक्ष की आपत्ति पर विवेकपूर्ण ढंग से गौर करने की जरूरत क्यों नही समझी। क्या उसके फैसलें कहीं और से प्रेरित हो रहे थे।

बीएलओ भी इतने मासूम नही हैं। अगर उनके लिए अपने क्षेत्र में घर-घर पहुंचना संभव नही था तो उन चुनिंदा घरों में तो उन्हें जाना ही चाहिए था जिनमें अलग-अलग जाति और अलग-अलग धर्म के अलग-अलग सैकड़ों वोटर वे दर्ज कर रहे थे। उनकी बुद्धि बालक को भी समझ में आ जाने वाली इस गड़बड़ी को नोटिस में क्यों नही ले सकी। फिर यह है कि आखिर एक ही घर में इतनी बड़ी मात्रा में मतदाताओं के फार्म उसे सौंपने वाले लोग कौन थे। क्या वे ऐसे लोग थे जिनके द्वारा थोक में सौंपे गये फार्मों पर संदेह जताने की स्थिति में बूथ लेवल अधिकारियों को अपनी नौकरी पर आ जाने का खतरा दिख रहा था।

इस सबसे तो यह लगता है कि मतदाता सूचियों में जिन गड़बड़ियों को स्थापित किया जा रहा है वे केवल लापरवाही का नतीजा नही हैं। दिखाई तो यह दे रहा है कि आपराधिक मंशा से और सुनियोजित तरीके से मतदाता सूचियों में विकृति का समावेश किया गया है। पहले भी चुनाव में गड़बड़ियां होती रहीं हैं लेकिन उस समय आवाज उठाने वालों में किसी ने कभी आयोग पर उंगली नही उठाई। यह हाल के वर्षों में है जब आयोग के जिम्मेदारों पर आक्षेप लगाये गये और आयोग ने आरोपों को पुख्ता ढंग से नकारने की कोशिश करने की बजाय संदेह के रंगों को और अधिक गाढ़ा करने की मशक्कत दिखाई। उदाहरण के तौर पर अगर बीएलओ और एसडीएम बगैरह चुनाव आयोग की साख पर बटटा लगाते हुए विपक्ष ने पकड़ लिए थे तो आयोग का काम था कि वह पार्टी बनने की बजाय स्वयं हस्तक्षेप करके दोषी अमले को दंडित करने का फरमान सुना डालता। पर आयोग तो ढिठाई पर उतर आया। उसने जांच का कोई कदम उठाने की बजाय संदिग्ध मतदाता सूचियों को सही ठहराने का बोझ अपने ऊपर ले लिया। इण्डिया टुडे की टीम महादेवपुरम में उस कमरे में पहुंच गई जहां दर्जनों मतदाता पंजीकृत थे। लेकिन चुनाव आयोग ने जहमत नही उठाई कि अपने स्तर से किसी अधिकारी को मौके पर भेजता। चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से महादेवपुरम विधानसभा क्षेत्र के बारे में शपथ पत्र पर आरोप मांगे लेकिन अनुराग ठाकुर ने रायबरेली और वायनाड में फर्जी मतदाताओं की मौजूदगी का जो खुलासा किया था इस मानक से उनसे भी तो शपथ पत्र पर लिखकर देने की मांग की जानी चाहिए थी। उनसे, असीम अरुण और जगन रेडडी से शपथ पत्र मांगने के नाम पर उसकी जुबान पर ताला क्यों लग गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने सपा द्वारा 17 हजार शपथ पत्रों को उसे सौंपे जाने के बावजूद कार्रवाई न की जाने के आरोप पर कहा कि उन्हें कोई शपथ पत्र नही मिला तो अखिलेश यादव ने पावती की रसीदें सोशल मीडिया पर डाल दीं। अब मुख्य चुनाव आयुक्त इस पर क्यों नही बोल रहें। अगर अखिलेश द्वारा प्रदर्शित की जा रहीं रसीदें फर्जी हैं तो ज्ञानेश कुमार को यह कहना चाहिए। वे अकबकाये से क्यों हैं। इसीलिए चुनाव आयोग संदेह के लपेटे में आ रहा है। कई और विवादित काम ऐसे हुए हैं जिनमें बीएलओ की नही सीधे चुनाव आयोग की भूमिका है। जैसे उसने हरियाणा के एक चुनाव में फंसने पर जब हाईकोर्ट का यह आदेश आया कि मतदान के दिन की वीडियो फुटेज याची को सौंपी जाये तो प्रधानमंत्री के साथ बैठकर उसने यह नियम लागू कर दिया कि कोई भी मतदान के वीडियो फुटेज नही मांग सकता। एकदम साफ है कि किसी चीज को छुपाने के लिए गले के नीचे न उतरने वाला यह नियम लागू कराया गया। इसी तरह उसने मतदाताओं की ऑनलाइन डिजिटल सूची को राहुल गांधी के खुलासे के बाद हटा दिया और स्केन सूची डाल दी जो सर्च नही हो सकती। जब सवाल पूंछा गया तो मुख्य चुनाव आयुक्त ने 2019 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की आड़ ले ली। फिर इस पर भी कायम नही रहा। अब बिहार के हटाये गये 65 लाख मतदाताओं का डिजिटल डाटा लोड कर दिया है। आखिर चुनाव आयोग इतना हड़बड़ाया क्यों है। इसीलिए चुनाव आयोग को पहली बार गड़बड़ियों में संलिप्त करार दिया जा रहा है।

अभी तक की पड़ताल से जो सामने आया है उससे कुछ बातें स्पष्ट हैं। एक तो यह है कि गड़बड़ियां स्थानीय और इक्का-दुक्का नही हैं इसके पीछे व्यापक और संगठित अभियान है। इसमें किसी दल के आधिकारिक कार्यकर्ता शामिल नही हैं। ऐसा लगता है कि कतिपय कारपोरेट कंपनियों ने राजनैतिक कामों के लिए अघोषित तौर पर बनाये गये दस्तों को इस टास्क में इन्वाल्व किया है। लेकिन यह बात हम प्रमाणिक तौर पर नही कह सकते। अगर कोई जांच हो तभी इसकी वास्तविकता स्पष्ट हो सकती है। इस देश में पहले भी बड़ी-बड़ी धांधलियां होती रहीं हैं। लोगों ने एनटी रामाराव को अपनी नाजायज बर्खास्तगी के खिलाफ दिल्ली में उनके बहुमत को साक्षात करने वाले विधायकों की संख्या के साथ भटकते देखा और उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता इसके बावजूद अपनी सरकार को सही करार देने में लगे हुए थे। हरियाणा में जब ऐसी ही धृष्टता के कारण देवीलाल ने गवर्नर जीडी तपासे को राजभवन में ही तमाचा जड़ दिया था तब भी इस स्थिति के लिए उत्तरदायी केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता अपनी सरकार के कुकृत्य को जायज करार देने में संकोच नही कर रहे थे। आखिर कार्यकर्ताओं को क्यों नही लगता कि पार्टी के प्रति वफादारी एक अच्छा गुण है लेकिन अगर पार्टी के नेता ऐसे फैसले ले रहे हों जो राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और हमारी व्यवस्था की मजबूती के लिए घातक बनने वाले हैं तो हम देश पहले पार्टी बाद में कहने के लिए आगे आ जायें। जिस दिन राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं का जमीर इतना मजबूत हो जायेगा उस दिन किसी पार्टी का नेता निरंकुश होने का साहस नही दिखा पायेगा। 

कंपन में छिपे संकेतों को नज़रअंदाज़ करना होगी बड़ी भूल, आपदा आने से पहले सचेत होना ज़रूरी

डॉ. बृजेश सती

उत्तर हिमालय भूकंप के लिहाज़ से अति संवेदनशील क्षेत्र है। हालांकि लंबे समय से यहां कोई बड़ा भूकंप नहीं आया, लेकिन मध्यम तीव्रता के झटके लगातार दर्ज होते रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज़मीन के भीतर हो रहे कंपन दरअसल आने वाले खतरे के संकेत हैं, जिन्हें अनदेखा करना बड़ी भूल होगी। यदि समय रहते मज़बूत आपदा प्रबंधन और भूकंप-रोधी तंत्र विकसित नहीं किया गया तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

भारत का भूकंपीय मानचित्र बताता है कि उत्तराखंड जोन-5 में आता है, जो सबसे अधिक जोखिम वाला क्षेत्र है। पिछली सदी में यहां कई बड़े भूकंप दर्ज हुए—उत्तरकाशी (1991, 6.9 तीव्रता), चमोली (1999, 6.6 तीव्रता) और उससे पहले धारचूला (1964, 6.2 तीव्रता)। विशेषज्ञ मानते हैं कि टेक्टोनिक गतिविधियां लगातार जारी हैं और भविष्य में किसी बड़े भूकंप की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

वैज्ञानिकों की राय

वरिष्ठ वैज्ञानिक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. विजय प्रसाद डिमरी का कहना है कि उपग्रह चित्र और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) से मिली जानकारी का सही इस्तेमाल कर हिमालयी क्षेत्र की वास्तविक स्थिति को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। उनका मानना है कि बड़े भूकंप के बाद भूस्खलन, नदियों का अवरोधन और कृत्रिम झीलों का निर्माण आम है। ये झीलें मामूली झटकों या भारी वर्षा से टूटकर भारी तबाही मचा सकती हैं। इसके लिए सभी वैज्ञानिकों को एक मंच पर आकर हिमालय अध्ययन केंद्र बनाने की आवश्यकता है।

पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली चेतावनी देते हैं कि सुरंग निर्माण, भारी मशीनों और विस्फोटों से पहाड़ों की स्थिरता प्रभावित हो रही है। इससे धरती के भीतर की गड़बड़ियां और बढ़ेंगी और भविष्य में उच्च तीव्रता के भूकंप का खतरा और गंभीर हो सकता है।

सरकारी प्रयास

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह के अनुसार, आपदा के समय खोज एवं बचाव कार्यों में मदद के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और आधुनिक तकनीकों की तैनाती की जा रही है। इसरो, एनजीआरआई और अन्य संस्थान मिलकर 3-डी सॉफ्टवेयर मॉडलिंग और भू-स्थानिक डेटा से अधिक सटीक मानचित्र तैयार कर रहे हैं।

दुनिया से सीख

जापान, अमेरिका, चिली, न्यूज़ीलैंड और चीन जैसे देशों ने भूकंप-रोधी भवन निर्माण, त्वरित चेतावनी प्रणाली, आपदा प्रबंधन और आधुनिक सेंसर नेटवर्क पर व्यापक कार्य किया है। भारत को भी इसी दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

निष्कर्ष

प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है। राहत और पुनर्वास की ठोस योजना, आधुनिक तकनीक का उपयोग और स्थानीय स्तर पर मज़बूत आपदा प्रबंधन तंत्र विकसित करना समय की सबसे बड़ी मांग है। उत्तराखंड ने भले ही 2007 में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसकी प्रभावशीलता अभी भी सवालों के घेरे में है।

18.8.25

अब ट्रेन में तय सीमा से ज्यादा सामान ले जाने पर देना होगा चार्ज

नई दिल्ली। रेलवे ने यात्रियों के लिए नया लगेज सिस्टम लागू किया है, जो हवाई यात्रा की तर्ज पर होगा। नई व्यवस्था के तहत अब तय सीमा से अधिक सामान ले जाने पर यात्रियों को अतिरिक्त शुल्क (Extra Charge) चुकाना पड़ेगा। 


जानकारी के मुताबिक प्रयागराज जंक्शन, कानपुर सेंट्रल, मिर्जापुर, अलीगढ़ और टुंडला समेत कई प्रमुख स्टेशनों पर यह व्यवस्था लागू कर दी गई है। इसके लिए स्टेशन के एंट्री और एग्जिट प्वाइंट पर इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीनें लगाई गई हैं।

रेलवे के नियमों के अनुसार—

  • AC-1 यात्री: 70 किलो तक सामान मुफ्त

  • AC-2 यात्री: 50 किलो तक सामान मुफ्त

  • AC-3 और स्लीपर यात्री: 40 किलो तक सामान मुफ्त

  • जनरल डिब्बा यात्री: केवल 35 किलो तक सामान की अनुमति

निर्धारित सीमा से अधिक वजन होने पर यात्रियों को अतिरिक्त शुल्क देना होगा। रेलवे का कहना है कि इस व्यवस्था से यात्रियों की सुविधा बढ़ेगी और कोच में अनावश्यक भीड़भाड़ व सामान का दबाव कम होगा।

17.8.25

टाटा ग्रुप की कंपनी TCS अपने सबसे खराब समय में पहुंच गई है!

 


टाटा ग्रुप अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. ग्रुप की प्रमुख कंपनी टीसीएस साल 2008 की मंदी के बाद अपने सबसे खराब समय में पहुंच गई है. कंपनी की मार्केट वैल्यू 5.66 लाख करोड़ रुपये कम हो गई है. 

मंदी के साल में कंपनी के शेयर 55 प्रतिशत टूट गए थे. उसके बाद साल 2025 उसके लिए बुरा जा रहा है. इस साल भी कंपनी के शेयर करीब 26 प्रतिशत टूट गए हैं

13.8.25

पत्रकार से सांसद बनीं सागरिका घोष का लिखा ये भाषण पीएम मोदी पंद्रह अगस्त के दिन दे पाएंगे?

आर के जैन-

माननीया सासंद ( राज्य सभा ), श्रीमती सागरिका घोष , भारतीय तृणमूल कांग्रेस द्वारा लिखा गया भाषण जो पीएम मोदी को इस स्वतंत्रता दिवस पर देना चाहिए ।

भाइयों और बहनों, मेरे प्यारे देशवासियों,

आज मैं आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देता हूँ । जैसा कि आप जानते हैं, 2047 तक विकसित भारत बनाना मेरी सरकार का लक्ष्य है, लेकिन इस दिन, मैं 2025 के भारत की हकीकत पर विस्तार से बात करना चाहता हूँ, न कि 22 साल बाद पूरे होने वाले विकसित भारत के सपने पर।

मुझे पता है कि मैं लगातार इस बारे में बोलता रहा हूं कि दो दशक बाद भारत कैसा दिखेगा, लेकिन आज मुझे लगता है कि मुझे दूर के भविष्य का सपना दिखाने के बजाय, आज के भारत की बात करनी चाहिए।

पिछले 11 सालों के प्रधानमंत्री कार्यकाल में मैंने कई वादे किए। 2014 में मैंने “अच्छे दिन” का वादा किया । कुछ साल बाद “न्यू इंडिया” बनाने की बात की। फिर “अमृत काल” का ज़िक्र किया और आखिर में “विकसित भारत” का विचार आपके सामने रखा। इन सबका मकसद एक अच्छा माहौल बनाना था।

लेकिन मुझे मानना पड़ेगा कि “अच्छे दिन” सच में नहीं आए। हां, सुधार करूं—कुछ लोगों के लिए (जिनमें मेरे कुछ अच्छे दोस्त भी हैं, जिनका नाम नहीं लूंगा) अच्छे दिन ज़रूर आए, लेकिन ज़्यादातर भारतीयों के लिए नहीं।

वर्ल्ड इनइक्वालिटी डाटाबेस की 2024 की एक स्टडी बताती है कि देश की कुल संपत्ति का 40% से ज्यादा हिस्सा सिर्फ 1% भारतीयों के पास है।

भारत भले ही ब्रिटिश राज से आज़ाद हो चुका हो, लेकिन अब यह ‘बिलियनेयर राज’ की गिरफ्त में है। देश की निचली 50% आबादी के पास कुल संपत्ति का सिर्फ 3-4% हिस्सा है।

मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर, सौरभ मुखर्जी, ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि ज़्यादातर भारतीयों की आय ठहरी हुई है। जिस “खपत में उछाल” की बात की जाती है, वह क्रेडिट (उधार) की उपलब्धता की वजह से है, इसलिए यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है। असमानता पहले से ज्यादा गहरी और स्थायी हो रही है।

ब्लूम वेंचर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 1 अरब भारतीय (यानी 90% आबादी) के पास अतिरिक्त सेवाओं पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं है। इसका मतलब है कि उनके पास रोज़मर्रा की ज़िंदगी के अलावा कुछ भी खर्च करने लायक पैसा नहीं है।

अमीर भी खुश नहीं दिखते। 2017 से 2022 के बीच, 30,000 से ज्यादा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (HNIs) ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी। 2024 में 4,000 से ज्यादा करोड़पतियों के ऐसा करने की उम्मीद थी। पिछले साल, 2 लाख भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी।

नोटबंदी से स्मार्ट सिटीज़ तक-

मित्रों, 2014 में मैंने मुंबई में सर एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया था। उस समय मैंने कहा था कि भगवान गणेश और महाभारत के नायक कर्ण के रूप में प्लास्टिक सर्जरी और जेनेटिक साइंस के सबूत मिलते हैं।

मैंने कहा था, “हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं । ज़रूर उस समय कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा जिसने इंसान के शरीर पर हाथी का सिर लगाया और प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत की.”।

मैं हमेशा भारत के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष मिशनों का श्रेय लेता हूँ । मैं इसरो को बधाई देता हूँ , लेकिन सच कहूं तो मैंने हमेशा वैज्ञानिक सोच के बजाय अंधविश्वास और आस्था को ज्यादा महत्व दिया है।

शायद इसी वजह से मुझे यह समझ में नहीं आता कि पिछले साल मेरे इस बयान पर इतना हंगामा क्यों हुआ कि मुझे भगवान ने भेजा है और मेरा जन्म “गैर–जैविक” है।

मित्रों, 8 नवंबर 2016 की शाम को मैंने अपनी मशहूर नोटबंदी की घोषणा की।

रात 8 बजे, सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर, मैंने ऐलान किया कि 500 और 1,000 रुपये के नोट, यानी भारत की 86% नकदी आधी रात से बेकार हो जाएगी। इस बड़े कदम के जरिए मैंने काला धन खत्म करने का वादा किया।

दरअसल, मैंने यह भी कहा था कि अगर मैं 50 दिनों में काला धन खत्म करने में सफल नहीं हुआ, तो मुझे फांसी पर लटका देना चाहिए।

बिलकुल, नकदी तो जैसे वापस लौट आई है। हाल ही में दिल्ली में एक हाई कोर्ट जज के घर से नोटों के ढेर मिलना इसी बात का सबूत है, लेकिन नवंबर 2016 की उस शाम मैं बहक गया था। नोटबंदी पूरी तरह नाकाम रही, सैकड़ों छोटे कारोबार तबाह हो गए। अगर यह सफल होती, तो क्या मेरी सरकार हर 8 नवंबर को ‘नोटबंदी दिवस’ नहीं मनाती? लेकिन नहीं, ऐसा नहीं होता ।

मुझे नारे, चटपटे वाक्य, संक्षिप्त रूप (एक्रोनिम) और छोटी-छोटी लाइनें बहुत पसंद हैं। मैं इन्हें एक अच्छे कलाकार की तरह पेश करता हूँ ,जो दर्शकों को जोश से भर देता है। ये मीडिया के लिए भी बढ़िया हेडलाइन बन जाते हैं। 2021 से मेरी सरकार का विज्ञापन और प्रचार पर खर्च 84% बढ़ गया है। 2024-25 में ही सरकार ने विज्ञापन पर 600 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर डाले।

2015 में मैंने स्मार्ट सिटी मिशन की शुरुआत की थी, वादा किया था कि 100 शहरों को बदल देंगे, लेकिन आज इन कथित स्मार्ट सिटीज़ में पानी भरने और पुल गिरने जैसी समस्याएं हैं। गुजरात के वडोदरा में, जिसे स्मार्ट सिटी चुना गया था, पिछले महीने ही एक पुल ढह गया। पटना में, जिसे स्मार्ट सिटी कहा गया, उद्घाटन के सिर्फ दो महीने बाद ही डबल-डेकर फ्लाईओवर टूटकर गिर गया।

देश की राजधानी नई दिल्ली में तो सबसे बुरा जलभराव देखा गया, जिससे साफ हुआ कि चरम मौसम से निपटने की तैयारी ही नहीं है। स्मार्ट सिटीज़ की समस्याओं के अलावा, राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की छत भी पिछले महीने गिर गई, जिसमें सात बच्चों की मौत हो गई।

अपने उद्घाटनों और घोषणाओं की होड़ में, मैं रखरखाव और इंफ्रास्ट्रक्चर की नियमित जांच की ज़रूरत पर जोर नहीं देता। मेरे भव्य मीडिया और पीआर इवेंट्स एक तरह के भागने वाले सपनों जैसे हैं। प्रशासनिक तंत्र को रोज़मर्रा की हकीकत से आंख मूंदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

2016 में मैंने छह साल में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन एक रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर राज्य यह लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए। आमतौर पर मैं इसकी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल देता हूँ । लेकिन सूची में कुछ बीजेपी-शासित राज्य भी हैं।

मुझे यह भी कहना होगा कि मुझे विपक्ष-शासित राज्यों को फंड देना पसंद नहीं है। पश्चिम बंगाल को ही अलग-अलग मदों में 1.7 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं, जिनमें 7,000 करोड़ रुपये मनरेगा और 8,000 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हैं । मैं आमतौर पर उन राज्यों को पसंद नहीं करता जो मुझे वोट नहीं देते। मैं “सहकारी संघवाद” की बात करता हूं, लेकिन अक्सर भेदभाव वाला संघवाद अपनाता हूँ ।

2020 में मेरी सरकार ने किसान संगठनों से बिना बातचीत किए तीन कृषि कानून लागू किए, जिसके खिलाफ किसानों का आंदोलन शुरू हुआ । बीजेपी-शासित सरकारों ने आंदोलनकारी किसानों पर आंसू गैस चलाई और लाठियां बरसाईं । मैंने किसानों में कुछ “आंदोलनजीवी” लोगों की ओर इशारा किया था। आंदोलनजीवी वे पेशेवर प्रदर्शनकारी होते हैं — ‘लेफ्टिस्ट’, ‘अर्बन नक्सल’ और ‘खान मार्केट गैंग’ जैसे — जो मेरे सपनों का भारत बनने से रोकते हैं।

मुझे यह भी मानना पड़ेगा कि किसान आत्महत्याओं का आंकड़ा कम नहीं हो रहा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में 11,000 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की ।

यहां यह भी कहना होगा कि एनसीआरबी — जो अपराधों का अहम रिकॉर्ड रखता है — अब नियमित रूप से प्रकाशित नहीं हो रहा । राज्यसभा में एक सांसद ने पूछा कि 2023 का एनसीआरबी डेटा — जो 2024 में आना चाहिए था — अभी तक क्यों जारी नहीं हुआ ।

भारत की जनगणना, जो 1871 से हर 10 साल में होती आ रही है और 2021 में होनी थी, वह भी टल गई है, इसलिए कुछ लोग मेरी एनडीए सरकार को ‘नो डेटा अवेलेबल’ सरकार कहते हैं।

नेहरू को दोष दो, मुझे नहीं -

2014 में, मैंने एक और नारा दिया था — “सबका साथ, सबका विकास।” लेकिन, मेरी सरकार और मैं इस नारे पर भी खरे नहीं उतर सके। आज धार्मिक विभाजन और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं।

हाल ही में, छत्तीसगढ़ में केरल की दो कैथोलिक ननों को गिरफ्तार कर उन पर मानव तस्करी का झूठा आरोप लगाया गया । ये नन लगातार मेरी पार्टी से जुड़े हिंदुत्व संगठनों, जैसे बजरंग दल, के निशाने पर थीं ।

महाराष्ट्र में कुरैशी समाज मीट व्यापारियों पर तथाकथित “गौ रक्षकों” के हमलों के खिलाफ विरोध कर रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संपत्तियों को ढहाने के लिए बुलडोज़र के इस्तेमाल का विरोध किया है और कहा है कि इस समुदाय को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन बुलडोज़र कार्रवाइयों को “अस्वीकार्य” कहा है और इन्हें रोक दिया है।

मैं खुद भी अक्सर अपनी सार्वजनिक भाषणों में धार्मिक नफरत की बातें करता रहा हूँ । 2024 के लोकसभा चुनाव में मैंने कहा कि कांग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीनकर उन्हें घुसपैठियों या मुसलमानों को दे देगी ।

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मैंने ‘श्मशान घाट’ और ‘कब्रिस्तान’ का ज़िक्र किया । 2019 में मैंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है । गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मेरा “हम पांच, हमारे पच्चीस” वाला भाषण मशहूर हुआ था ।

पिछले दशक में, हमने नफरत भरे भाषणों को सामान्य बना दिया है और मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुलकर पूर्वाग्रह व्यक्त करना मानो स्वीकार्य हो गया है।

मैंने युवाओं के लिए कई वादे किए और बार-बार कहा कि “युवा शक्ति” भारत को आगे बढ़ाएगी, लेकिन आज छात्र परीक्षा पेपर लीक से परेशान हैं । हाल ही में, अभ्यर्थियों ने एसएससी सेलेक्शन पोस्ट फेज 13 परीक्षा में गड़बड़ियों के खिलाफ नई दिल्ली में विरोध किया. पिछले सात साल में 70 से ज्यादा परीक्षा पेपर लीक हो चुके हैं।

2015 में मैंने एक और नारा दिया — “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” लेकिन 2022 तक, यानी फंड बनने के 10 साल बाद भी, महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए निर्भया फंड का 30% हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ था । 2021 में एक संसदीय समिति ने कहा कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना का 70% से ज्यादा पैसा सिर्फ विज्ञापन पर खर्च किया गया । खासकर बीजेपी-शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ भयावह अपराध हो रहे हैं ।

भारत की तथाकथित स्वायत्त संस्थाएं आज लगभग पूरी तरह मेरे नेतृत्व वाले राजनीतिक कार्यपालिका के अधीन हो चुकी हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 95% मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं । 2014 के बाद से, भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेताओं में से 23 को बीजेपी में शामिल होने के बाद क्लीन चिट मिल गई । मैंने इस नई तरह की राजनीति शुरू की है — “वॉशिंग मशीन” वाली राजनीति!

लोकतांत्रिक संस्थाओं की बात करें, तो मैं संसद में बहुत कम जाता हूँ । प्रधानमंत्री रहते हुए 11 साल में, मैंने कभी प्रश्नकाल के दौरान न सवाल पूछा, न अपने विभाग से जुड़े सवालों का जवाब दिया ।

इस मानसून सत्र में, जब राज्यसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हुई, तो मैं जवाब देने संसद जाने की जहमत तक नहीं उठाई। आखिर क्यों मैं संसद में समय बर्बाद करूं, जब इतने देश मुझे “बेहद अहम” पुरस्कार देने के लिए बुला रहे हैं?

मैंने “अबकी बार ट्रंप सरकार” और “नमस्ते ट्रंप” जैसे नारे दिए ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से रिश्ते मजबूत हों, लेकिन अब वही ट्रंप “बेवफा” हो गए । मैं नारे और अंतर्राष्ट्रीय फोटो-ऑप में इतना खो जाता हूं कि मुझे लगता है ये गंभीर कूटनीति और भरोसा बनाने की जगह ले सकते हैं । गाज़ा युद्ध पर इज़रायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से दूरी बनाकर, या रूस के यूक्रेन पर हमले पर चुप रहकर, मैंने दुनिया में भारत की सैद्धांतिक विदेश नीति पर जो भरोसा था, उसे खो दिया । मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था कि पश्चिम देश इस तरह की लेन-देन वाली राजनीति को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे ।

अंत में, मीडिया से मेरे रिश्तों पर एक बात। मेरे नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है — पिछले 11 साल में मैंने एक भी खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की । मैं ऐसा करने वाला एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री हूँ। .

जैसा कि मैं कहता हूं: “अपनी दोस्ती बनी रहे.”।

अब सवाल उठता है: पिछले 11 साल में मैं अपने सारे वादे, संकल्प, नारे, पीआर घोषणाएं, योजनाएं, प्रचारित कार्यक्रम और भव्य स्कीमें क्यों पूरी नहीं कर पाया?

जवाब आसान है । एक ही शख्स इसके लिए जिम्मेदार है — पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू । पिछले 11 साल से, नेहरू लगातार मेरी कोशिशों को रोकते रहे हैं और मेरी कई योजनाओं और अभियानों को नाकाम बनाते रहे हैं । नेहरू ही वजह हैं कि मेरे ज्यादातर काम नतीजे तक नहीं पहुंचते , तो मेरी नाकामी के लिए मुझे मत कोसिए । कृपया नेहरू को दोष दीजिए।

जय हिंद-जय भारत ।

( सागरिका घोष )

लेखिका अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की सांसद (राज्यसभा) है।