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16.8.13

राजनैतिक हित साधने के लिये  धर्म , जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर नफरत के बीज बोने से परहेज करें वरना देश में विकास के पहिये थम जायेंगें
आज पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की 66 वीं वर्षगांठ मना रहा हैं। आजादी के बाद देश ने प्रजातंत्र के साथ साथ धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त को भी अंगीकार किया है। इसके तहत सर्व धर्म समभाव की नीति का पालन किया गया। हर धर्म के मानने वाले नागरिकों को अपने अपने  धर्मानुसार आचरण करने की स्वतंत्रता तो दी गयी है लेकिन किसी दूसरे के धर्म की आलोचना का अधिकार नहीं दिया गया हैं। लेकिन धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण कर सत्ता के गलियारे तक पहुंचने की ललक ने देश के राजनीतिज्ञों को धर्म की आड में राजनीति करने का रास्ता खोल दिया। धर्म,जाति और क्षेत्रीयता के शार्ट कट से सत्ता पाने का लालच राजनीतिज्ञ छोड़ नहीं पाये और इसी कारण वासुदैव कुटुम्बकम् की संस्कृति को मानने वाले देश में तरह तरह के विभाजन दिखायी देने लगे हैं। अब धर्मनिरपेक्षता और छद्म धर्मनिरपेक्षता के शब्द राजनैतिक गलियारों में आरोप प्रत्यारोप लगाने में उपयोग होते दिखायी दे रहें हैं। कोई राजनैतिक दल अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहता है तो दूसरा उसे मुस्लिम तुष्टीकरण की संज्ञा देकर छद्म धर्मनिरपेक्ष होने का आरोप लगाता हैं। वहीं दूसरी ओर आरोप लगाने वाले खुद ही सत्ता में आने के बाद वही कुछ करते नजर आते हैं जिनके आधार पर वे दूसरे दल पर छद्म धर्मनिरपेक्षता का आरोप लगाते हैं। एक ही राजनैतिक दल के दो मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से अलग अलग आचरण करते दिखायी दे रहें है। एक मुख्यमंत्री सदभावना मंच पर एक मौलवी द्वारा पहनायी जा रही टोपी पहनने से इंकार कर कट्टर हिन्दू होने का संकेत देता है तो दूसरा मुख्यमंत्री ईद मिलन समारोह में इस्लामी टोपी पहनकर खुद को धर्मनिरपेक्ष दिखाने का प्रयास करता है। लेकिन मंशा दोनों की ही एक है कि वे अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते है। क्या राजनेताओं का यह आचरण उचित है? लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि विभिन्नता में एकता ही भारत की विशेषता है। हमारे देश में अलग अलग धर्म और जाति के लोग आपस में भाई चारे के साथ रहते है। इसीलिये धर्म और जाति को आधार मानकर राजनैतिक बिसात बिछाना देश के लिये हितकारी नहीं हैं। भारत एक विकासशील देश है। विकास की प्रक्रिया सतत जारी रखने के लिये यह आवश्यक है कि देश में अमन चैन कायम रहे। आज यह समय की मांग है कि देश में राजनैतिक नेतृत्व करने वाले राजनेता अपने राजनैतिक हित साधने के लिये  धर्म और जाति के आधार पर नफरत के बीज बोने से परहेज करें वरना देश में विकास के पहिये थम जायेंगें और देश के नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा और आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।़ इसलिये आइये आज के दिन हम यह संकल्प लें कि हम अपने राजनैतिक हितों के लिये हम धर्म, जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को बंटने नहीं देंगें और देश के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगें।     

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