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31.8.13

उत्तर प्रदेश, बदतर प्रदेश


समाजवादी सरकार सफल हुई| उसके साम्प्रदायिक विभाजन का मंसूबा कामयाब हुआ| शासन की हठधर्मिता के आगे लाचार संतों ने हथियार डाल दिए| किसी ने सच ही कहा है ‘Power tends to corrupt and absolute power corrupts absolutely’ अर्थात सत्ता भ्रष्ट बनाती है और सम्पूर्ण सत्ता समग्र रूप से भ्रष्ट बना देती है| हिंदी में भी कहा गया ‘सत्ता पाई काहि मद नाहीं’| आज समाजवादी पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में है, इसीलिए मदांध भी है| मार्च २०१२ से अब तक यह सरकार अपने डेढ़ साल पूरे कर चुकी है| लोगों को यह लगा था की इस बार की समाजवादी पार्टी कुछ अलग होगी, क्योंकि इस बार मुलायम नहीं बल्कि उनके पुत्र के रूप में प्रदेश को एक युवा चेहरा मिलेगा| यह तिलिस्म भी टूट गया| अब युवा कोई मुद्दा ही नहीं रहा| साथ ही यह भी सिद्ध होने लगा है की युवा नेतृत्व दिशाहीन होता है और उद्दंड भी| अखिलेश के डेढ़ साल के नेतृत्व में मुफ्तखोरी, मुनाफाखोरी, घटतौली और बेईमानी को संस्थागत रूप प्रदान किया जा चूका है| इस बात को बकायदा कैमरे के सामने कहा गया| शिवपाल यादव ने कैमरे के सामने कार्यकर्ताओं को राजनैतिक बेईमानी का पाठ पढाते हुए स्पष्ट रूप से कहा ‘अगर मेहनत करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हो लेकिन डकैती नहीं डालोगे”| फीचर फिल्म “नायक” के अनिल कपूर की प्रत्याशा में लोगों ने विभेदकारी राजनीति और तुष्टिकरण के खलनायक को चुन लिया| अखिलेश मुसलमानों के मुख्यमंत्री हैं, अखिलेश यादवों के मुख्यमंत्री हैं और यह बात उनके वक्तृत्व और कृतित्व दोनों में ही साफ़ झलकती है| इस सरकार का शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ था, केवल मतगणना के परिणाम आये थे और उत्तर प्रदेश के ७५ जिलों में कोहराम मच गया था| इस परिवार की रही सही सदस्य डिंपल यादव भी निर्विरोध लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गयी| भारत का सबसे बड़ा राजनैतिक परिवार सत्ता की अकड और हनक को जाया कैसे जाने देती? दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन के बाद रामगोपाल यादव ने केन्द्र सरकार को अपने समस्त प्रशासनिक अधिकारियों को वापस बुलाए जाने तक की चेतावनी दे दी और कहा की हम प्रदेश का शासन चला लेंगे| किसके बलबूते पर? स्पष्ट है की दबंगई के क्षेत्र में इस सरकार का कोई मुकाबला ही नहीं है| सुनने में आया है की वाराणसी के जिलाधिकारी शिवपाल यादव के काफी करीबी हैं| बनारस में पंचक्रोशी मार्ग का सुंदरीकरण किया गया| दर्जनों पौराणिक मंदिरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया| विकास की बलिवेदी पर हिंदू समाज ने उफ़ भी नहीं किया| दूसरी ओर, मस्जिद की एक जर्जर दीवाल अपने आप गिर गयी, मुस्लिम समुदाय को इस पर कोई आपत्ति नहीं थी, फिर भी नागपाल को निलम्बित कर दिया गया| इसे तुष्टिकरण नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? पता चला है की दुर्गा शक्ति नागपाल उत्खनन माफिया के विरुद्ध अपने प्रशासनिक कर्तव्य का पालन कर रही थी| इतना ही नहीं सरकार को कन्यायों में भी हिंदू मुसलमान नजर आते हैं| मुस्लिम छात्राओं को ३० हजार रूपये की आर्थिक सहायता आखिर किसलिए दिया जा रहा है? यह संविधान द्वारा दिए गए समानता और स्वतंत्रता के अधिकार का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है| फिर भी, समाजवादी पार्टी अपने अड़ियल रुख पर कायम है, क्योंकि उसे लगता है की भारत का संविधान उसकी जेब में है और वह जब चाहे संविधान में संशोधन कर सकती है| ऐसा लगने का उसके पास ठोस आधार भी है| प्रदेश सरकार के केन्द्र सरकार के साथ गहरे ताल्लुकात हैं| उसका मैच फिक्स है इसलिए वह मनमानी करने को स्वतंत्र है| गंभीर से गंभीर मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग देकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेना, समाजवादी पार्टी की विशेषता है| MY के समीकरण को ध्यान में रखकर राजनीती की रोटियां सेंकने वाली समाजवादी पार्टी किसी को भी पसंद नहीं| जिन्होंने इसे चुनकर सरकार चलने के लिए भेजा है, वे भी अब इसे नापसंद करने लगे हैं| राजनैतिक अपराधीकरण को संस्थागत रूप देकर उसे लोकतंत्र की मुख्य धारा में लाने का काम समाजवादी पार्टी पहले से ही करती रही है| २०१२ के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार ४०१ लोगों में से लगभग आधे १९९ लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे| २००६ में समाजवादी युवजन सभा के कार्यकर्ताओं ने हूटर लगे जीप से एक पुलिस उपनिरीक्षक को खींच लिया था| यहीं से उत्तर प्रदेश में अराजकतावादी राजनीती का प्रारम्भ होने लगा| लोगों ने “ गाडी पर सपा का झंडा तो समझो अंदर बैठा है गुंडा” कहना प्रारम्भ किया और तत्कालीन समाजवादी सरकार राजनैतिक आतंकवाद का पर्याय बन गयी| उत्तर प्रदेश गुंडागर्दी के मामले में भारत का अव्वल राज्य बन गया और उसके तुरंत बाद हुए चुनावों में तत्कालीन प्रमुख विपक्षी दल बसपा ने नारा दिया “चढ गुंडों की छाती पर, बटन दबाना हाथी पर” जनता मुलायम सरकार की गुंडागर्दी से ऊब चुकी थी, इसलिए उसे नारा समीचीन लगा फलतः बेरोजगारी भत्ता की रेबड़ीयां बाटने के बावजूद समजवादी पार्टी फिसड्डी रही और बसपा का बहुमत के साथ राज्यारोहण हुआ| इस बार नए मतदाता उस अंधेरगर्दी को जानते ही नहीं थे और पुराने मतदाता उसे भूल चुके थे| वर्तमान सरकार अपने पूर्ववर्ती शासन की सत्यापित यथार्थ प्रतिलिपि है| बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य के यह कहने पर की “बसपा के चार साल के शासनकाल में एक बार भी साम्प्रदायिक तनाव की घटना सामने नहीं आई” जबाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री आज़म खान ने कहा की “बसपा के शासनकाल में उसके लोग लूट, बलात्कार तथा ऐसे ही अन्य गतिविधियों में शामिल रहे और अब, जब उनके पास कोई काम नहीं बचा है तो वे साम्प्रदायिक माहौल को खराब करने में लगे हैं” ज्ञातव्य है की सपा के १८ महीने के कार्यकाल में अब तक २७ बड़े दंगे और ७२ से अधिक छोटी मोटी साम्प्रदायिक झडपें हो चुकी हैं| इन दंगों में अब तक २०० से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और इससे दुगुनी महिलाओं को बलात्कार का दंश झेलना पड़ा है| यह आलम तब है जब चुनाव पूर्व सपा ने बलात्कार पीडिता को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था और इस बयान पर काफी हो हल्ला भी मचा| ध्यातव्य है की आज़म खान वही शख्स है जिसने खुलेआम काशिराज को भगोड़ा कहा था और वंदे मातरम पर ऐतराज जताने के बावजूद, हिंदू मान्यताओं के विपरीत कुम्भ २०१३ में मेला प्रभारी का पद भी सुशोभित कर चुका है| इनके संवैधानिक अज्ञानता की कोई मिसाल ही नहीं मिल सकती| चुनाव पूर्व अखिलेश ने टीईटी परीक्षा को रद्द करने की धमकी दी और अनुत्तीर्ण अथवा परीक्षा में कम अंक प्राप्त परीक्षार्थियों का वोट बैंक अपनी ओर आकर्षित करना चाहा और वे उसमे सफल भी हुए| किये गए वाडे को पूरा करने के लिए टीईटी पर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाए गए और परीक्षा की पवित्रता को कलंकित करने के लिए मनगढंत कहानियाँ गढ़ी गयी| शुचिता को भंग करने के सारे हथकंडे अपनाए गए यहाँ तक की आज़म खान द्वारा सार्वजनिक रूप से टीईटी अभ्यर्थियों को चोर कह कर पुकारा गया कंतु तथ्यों के आलोक में सारे असफल रहें| विपदा के मारे टीईटी अभ्यर्थी आज भी न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं और सपा सरकार द्वारा बिना मामला पूरी तरह निस्तारित हुए अवैधानिक तरीके से प्राथमिक शिक्षक के रूप में लोगों की नियुक्तियां की जा रही हैं| इस चक्कर में शिक्षक बनने की बाट जोह रहे पता नहीं कितने गरीब छात्रों ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया| आर्थिक तंगी के मारे लोगों की जमकर जेबें ढीली हुई| तुष्टिकरण के नुमाइंदों ने अब एक नया शिगूफा छोड़ा है| मुस्लिम छात्रों को खुश करने के लिए उर्दू भाषा की योग्यतादायी परीक्षा को ही टीईटी के समकक्ष बना दिया गया| आम जनता के यह समझ में नहीं आ रहा है की हिसाब में कच्चे पर उर्दू में अच्छे उस्तादों के बलबूते अखिलेश सरकार मुसलमानों का कौन सा भला करने जा रही है? इस सरकार के बनते ही मंत्री से लेकर संतरी तक सब बहकने लगते हैं| मंत्री गोंडा के सीएमएस को जान से मारने की धमकी देता है तो संतरी कहता है की अगर मेरी बहन भाग जाती तो मैं उसे गोली मार देता| एक अन्य पुलिस अधिकारी यहाँ तक कह देता है की पुलिस चोरों को पकडे या फिर लड़कियों को ढूंढती फिरे| अभी उत्तर प्रदेश की राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा जरीना उस्मानी ने बयान दिया है की लड़कियों को माहौल देखकर कपडे पहनना चाहिए| जनता यह जानना चाहती है की आप बयान क्यों देते हैं, घटनाओं को घटने से रोकते क्यों नहीं? जिया उल हक की बेवा को तन मन धन से लाभान्वित करने वाली सरकार को हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता रामबाबू गुप्ता की विधवा पत्नी का करूँ विलाप क्यों नहीं सुनाई देता? कारन स्पष्ट है, इस हत्याकांड में स्थानीय सपा विधायक के हाँथ होने की संभावना जताई जा रही है या फिर यदि सरकार राष्ट्रवादियों पर नरम होती है तो सिमी में बैठे सरकार के उच्चस्तरीय आकाओं का हाजमा बिगड सकता है| उत्तर प्रदेश को गुजरात नहीं बनने देंगे का उद्घोष करने वाले सपाइयों को वाइब्रेंट गुजरात नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि उनके लिए विकास की एकमात्र परिभाषा है – सैफई उत्सव| मायावती कहती रह गयी किन्तु केन्द्र सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश का विकास करने के नाम पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी जबकि सपा सरकार बनते ही अखिलेश को ५०० करोड रूपये की धनराशि बिना मांगे ही मिल गयी| राज्य सरकार इस पैसे से एक एक हजार रूपये में उत्तर प्रदेश की जवानी खरीद रही है और शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण विपदा के मारों द्वारा एकत्रित धनराशि से इंटर पास युवकों को लैपटॉप का झुनझुना थमा रही है| विधायक निधि से २० लाख रूपये की गाडी ले सकने के फैसले को तुरंत पलटना पड़ा, जिससे सरकार की किरकिरी हुई और मुलायम को भी नाटकीय रूप से अखिलेश को अपने ज़माने के सुशासन की याद दिलानी पड़ी, जब उन्होंने निहत्थे कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसा कर ढाँचे की सुरक्षा को अपनी महानतम उपलब्धियों में शुमार किया था| साम्प्रदायिक विभाजन यहाँ से प्रारम्भ हुआ| अखिलेश मुलायम की परम्परा को समाजवादी तरीके से आगे बाधा रहे हैं, इसीलिए प्रदेश के चुनिन्दा शहरों में समाजवादी एम्बुलेंस सेवा की स्थापना की जा रही है| इस सरकार की आलोचना करना ही व्यर्थ है क्योंकि समाजवाद, साम्यवाद का ही कनिष्ठ भाई है और इतना बिगड़ा हुआ है की सत्ता प्राप्ति के लिए हुक्मे खूनबहा तक को न सिर्फ जायज मानता है बल्कि अपने सम्प्रदाय में दीक्षित एक सभासद तक को “गुंडा भव” के राजनैतिक उपदेश से अनुग्रहीत करने का काम करता है| यही कारण है की असिक्षितों के तथा कम पढ़े लिखे अथवा पढ़े लिखे मूर्खों के मध्य इस राजनैतिक दल ने अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है और चूंकि इनकी तादाद ज्यादा है इसलिए फिलहाल जनजागृति लाकर ही इसके जनाधार को चुनौती दी जा सकती है, अन्यथा इन्हें चुनौती देना पढ़े लिखे अल्पसंख्यकों के बूते की बात नहीं है| ८४ कोसी परिक्रमा का मुद्दा पूरी तरह सामाजिक और आस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा था| यह संतों का कार्यक्रम था और सामान्य जनता को इससे दूर रखा गया था| केवल २५० संतों के अयोध्या की परिक्रमा कर लेने से सूबे का अमन चैन बिगड जाता, यह बात किसी को भी समझ में नहीं आ सकती किन्तु अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पकार सूबे का २००० करोड रुपया पानी की तरह बहा देने वाली समाजवादी पार्टी के लिए यह एक खुले चैलेन्ज की तरह था| विहिप से यहाँ एक गलती हो गयी| उसे अनुमति के लिए सरकार के पास जाना ही नहीं चाहिए था| रावण के पास सीताजी की वापसी के लिए हनुमान ने भी दूत का कार्य किया और अंगद ने भी यही कार्य किया| हनुमान ने सोने की लंका को जलाकर उसे पानी की तरह पिघला दिया और अंगद ने प्रभु राम का नाम लेकर रावण को भी झुकने को विवश कर दिया| विहिप ने हनुमान का धर्म निभाया किन्तु वह लंका नहीं जला सकी| प्रतिक्रिया स्वरुप उसके ही हाँथ जल गए क्योंकि सपा का चरित्र रावण के भी बराबर नहीं है| इसे कंस की संज्ञा देना उपयुक्त रहेगा| तीन दिन के इस नाटक को देश ने भी देखा और परदेश ने भी| अंतर्राष्ट्रीय मंच पर समाजवादी पार्टी के उत्तम प्रदेश और जनता द्वारा संबोधित बदतर प्रदेश स्थित अयोध्या युद्ध भूमि की तरह नजर आ रही थी| सरकार ने तोपों और टैंकों को छोड़कर संतो को रोकने के हर संभव उपाय कर रखे थे| ऐसा लगता था की जैसे अयोध्या पर कोई बड़ा आतंकी हमला होने वाला हो और कर्तव्यनिष्ठ सरकार को पहले से ही इसकी खुफिया सूचना प्राप्त हो गयी हो| इस तरह की वारदातों से देश का मनोबल गिरता है| अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमें उपहास की दृष्टि से देखा जाता है| अमेरिका ने प्रदेश के काबीना मंत्री को पहचानने में भूल नहीं की| लोगों का कहना है की तलाशी के नाम पर उनके कपडे तक उतार दिए गए थे| वास्तविकता चाहे जो भी रही हो| क्या यह बात संदेह नहीं पैदा करती कि अखिलेश भी उनके साथ अमेरिका प्रवास पर गए थे फिर उनके साथ अभद्रता क्यों नहीं कि गयी| समाजवादी पार्टी के डेढ़ साल के शासनकाल में कुछ हजार लैपटॉप बांटे गए, कुछ लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया, सैकड़ों आतंकवादियों को (जिन पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के प्रमाण भी हैं) बेगुनाह बना कर उन पर चल रहे मुकदमे को कमजोर करने की साजिश रची गयी, नर्वाच्निक दृष्टि से महज तीन जिलों एटा, इटावा और कन्नौज को २४ घंटे विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की गयी, वर्ग विशेष को संतुष्ट करने के हर संभव प्रयास किये गए, अलविदा के नमाज के बाद सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे करवाए गए, लखनऊ में बुद्ध की प्रतिमा को खंडित करने का प्रयास किया गया, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वन्देमातरम का उद्घोष कर रहे मासूमों पर आततायियों द्वारा निर्मम लाठियां बरसाई गयी, टीईटी अभ्यर्थियों को जेल में डाला गया, उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक यंत्रणा भोगने को विवश होना पड़ा, टीईटी के ही सन्दर्भ में दुहरे आरक्षण की व्यवस्था की गयी, प्रशासनिक सेवाओं में प्रारम्भिक परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक हर चरण में आरक्षण का प्रावधान किया गया, इसके विधायक शाकिर अली पर सामंतवाद का ऐसा भूत सवार हुआ के वे स्टेशन पर ही घोड़े पर सवार हो गए और रेलगाड़ी से स्पर्धा करने लगे, कब्रिस्तान की दीवार बनाने के लिए जनता के पैसे लुटाए गए, मुसलमानों को प्रदेश की सेवाओं में २० फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया, विकास का २० फ़ीसदी पैसा अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर केवल एक वर्ग पर खर्च किये जाने हैं, पंथिक आधार पर महिलाओं के साथ अन्याय और बलात्कार की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई, अखिलेश कभी अपना वजन लेने धर्मकांटे पर चढ गए तो कभी सुरक्षाकर्मियों से मिलने टावर पर चढ गए, शुरूआती दिनों में जनता दरबार की नौटंकी आयोजित की गयी, अश्न्तुष्टों का बढ़ता जमावड़ा देख कर तीन महीने बाद ही इसे बंद कर दिया गया, समाजवादी पार्टी भूखे, नंगों की फ़ौज से क्योंकर मिलने लगी? यथा राजा तथा प्रजा| इस शासन पर इतने दाग हैं की उन्हें पृथक पृथक गिनना असंभव हो चला है| मात्र डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश, बदतर प्रदेश बन गया है| अभी साढ़े तीन साल इस सरकार को और झेलना होगा यह सोचकर ही लोगों के होश उड़े हुए हैं| मुलायम सिंह यादव प्रधानमन्त्री बनने का सपना पाले हुए हैं| प्रधानमन्त्री बनने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है अतः उन्हें विश्वास है की देश के अगले प्रधानमन्त्री वही होने| यदि ऐसा हुआ तो आज सिर्फ हमारा प्रदेश ही बदतर प्रदेश के रूप में जाना जाता है, तब समूचा देश ही बदतर देश के रूप में जाना जाएगा| आज विदेशी निवेशक प्रदेश में निवेश करने से थर्राते हैं, तब देश में निवेश करने से थर्रायेगें और लोकतंत्र का समाजवादी माडल इस देश का कबाडा कर चुका होगा| यह सिद्ध हो चका है की इस सरकार की संवैधानिक मूल्यों में रंच मात्र भी आस्था नहीं है|

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