सफल जीवन और आचार्य तुलसी
चट्टान -किसी के पथ की बाधा बन सकती है और किसी के लिए सीढ़ी का एक चरण
यह हम पर निर्भर करता है कि हम मार्ग में आई चट्टान को किस नजरिये से लेते हैं।
समस्याओं के समाधान के लिए हमे स्वयं ईश्वर बनना पडेगा यानि हम ये सोच
कर समय व्यतीत कर दे कि हमारी समस्या कोई और सुलझायेगा तो यह बड़ी भूल
होगी।
सफलता का अमोघ अस्त्र है -श्रम और साधना ,हमे मेहनती बनना पडेगा और विषय
का पूरा ज्ञान प्राप्त करना होगा।
चिंता नहीं ,चिंतन करो। व्यथा नहीं,व्यवस्था करो। प्रशस्ति नही,प्रस्तुति करो।
हम समस्या का समाधान नहीं कर सके कोई बात नहीं ,स्वयं समस्या ना बन जाए
इसका ध्यान रखना होगा ,अच्छे कम में हमे नहीं पूछा गया इसलिए कोई ना कोई
अडंगा डाले,यह अनुचित है ।
अशांति का मूल कारण आवश्यकताओं की वृद्धि है।
खुली आँख से देखे ,ठंडे दिमाग से सोचे ,पूर्ण निष्ठां से कार्य क्षेत्र में उतरे। ये करने से
कभी असफलता नहीं मिलेगी।
व्यक्ति की मन्जिल कितनी ही दूर क्यों नहीं हो ,उसे चलना तो एक-एक कदम ही
है। वर्तमान का यह कदम सही दिशा में है और पूरी मजबूती से टिका है तो अगला
कदम रखने के लिए ठोस धरातल स्वयं उपलब्ध हो जाएगा।
विस्फोट ध्वंस के लिए भी होता है और सृजन के लिये भी।
परिस्थितियाँ सबके सामने होती है ,पुरुषार्थी व्यक्ति उन्हें पारकर आगे बढ़ जाता है
और निष्क्रिय व्यक्ति उसके सामने घुटने टेक देता है।
थोडा सा ज्ञान प्राप्त करते ही व्यक्ति में अहंकार जग उठता है ,अभिमान का नशा
छा जाता है ,विनम्रता भूल जाता है ,यह क्या है ? ज्ञान या अज्ञान … ?
आत्मविश्वास के अभाव में विकास का स्वप्न कभी साकार नही होता है।
तुम भाग्य की ओर मत झांको ,तुम झांको उस पुरुषार्थ की ओर जो तुम्हारे भाग्य
की रचना करता है।
इस संसार की सबसे बड़ी कला है दुसरो के ह्रदय को स्पर्श करना।
जो व्यक्ति अपने अतीत के पन्ने को नहीं पढता ,कार्य कारण के परिणाम पर
दृष्टि नही डालता ,जाग्रति और अभ्युदय ,भूल और सुधर के पन्ने नहीं उलटता ,
वह सफल व्यक्ति नही बन सकता।
विकास का अर्थ है जो सोये हुए हैं उन्हें जगाओ और जो जागे हुए हैं उन्हें प्रगति
की ओर ले जाओ।
धर्म की भूमिका यह होनी चाहिए कि अपनी बुराई को व्यक्ति स्वयं में समेटे
और अपनी अच्छाई को समाज में फैलाए।
चट्टान -किसी के पथ की बाधा बन सकती है और किसी के लिए सीढ़ी का एक चरण
यह हम पर निर्भर करता है कि हम मार्ग में आई चट्टान को किस नजरिये से लेते हैं।
समस्याओं के समाधान के लिए हमे स्वयं ईश्वर बनना पडेगा यानि हम ये सोच
कर समय व्यतीत कर दे कि हमारी समस्या कोई और सुलझायेगा तो यह बड़ी भूल
होगी।
सफलता का अमोघ अस्त्र है -श्रम और साधना ,हमे मेहनती बनना पडेगा और विषय
का पूरा ज्ञान प्राप्त करना होगा।
चिंता नहीं ,चिंतन करो। व्यथा नहीं,व्यवस्था करो। प्रशस्ति नही,प्रस्तुति करो।
हम समस्या का समाधान नहीं कर सके कोई बात नहीं ,स्वयं समस्या ना बन जाए
इसका ध्यान रखना होगा ,अच्छे कम में हमे नहीं पूछा गया इसलिए कोई ना कोई
अडंगा डाले,यह अनुचित है ।
अशांति का मूल कारण आवश्यकताओं की वृद्धि है।
खुली आँख से देखे ,ठंडे दिमाग से सोचे ,पूर्ण निष्ठां से कार्य क्षेत्र में उतरे। ये करने से
कभी असफलता नहीं मिलेगी।
व्यक्ति की मन्जिल कितनी ही दूर क्यों नहीं हो ,उसे चलना तो एक-एक कदम ही
है। वर्तमान का यह कदम सही दिशा में है और पूरी मजबूती से टिका है तो अगला
कदम रखने के लिए ठोस धरातल स्वयं उपलब्ध हो जाएगा।
विस्फोट ध्वंस के लिए भी होता है और सृजन के लिये भी।
परिस्थितियाँ सबके सामने होती है ,पुरुषार्थी व्यक्ति उन्हें पारकर आगे बढ़ जाता है
और निष्क्रिय व्यक्ति उसके सामने घुटने टेक देता है।
थोडा सा ज्ञान प्राप्त करते ही व्यक्ति में अहंकार जग उठता है ,अभिमान का नशा
छा जाता है ,विनम्रता भूल जाता है ,यह क्या है ? ज्ञान या अज्ञान … ?
आत्मविश्वास के अभाव में विकास का स्वप्न कभी साकार नही होता है।
तुम भाग्य की ओर मत झांको ,तुम झांको उस पुरुषार्थ की ओर जो तुम्हारे भाग्य
की रचना करता है।
इस संसार की सबसे बड़ी कला है दुसरो के ह्रदय को स्पर्श करना।
जो व्यक्ति अपने अतीत के पन्ने को नहीं पढता ,कार्य कारण के परिणाम पर
दृष्टि नही डालता ,जाग्रति और अभ्युदय ,भूल और सुधर के पन्ने नहीं उलटता ,
वह सफल व्यक्ति नही बन सकता।
विकास का अर्थ है जो सोये हुए हैं उन्हें जगाओ और जो जागे हुए हैं उन्हें प्रगति
की ओर ले जाओ।
धर्म की भूमिका यह होनी चाहिए कि अपनी बुराई को व्यक्ति स्वयं में समेटे
और अपनी अच्छाई को समाज में फैलाए।
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