हें -हें …हिंदी बोलता तू !!
हिंदी दिवस है और हिंदी बोलना है ,यह देश चलाने वाले कर्णधारों को एक मिठ्ठी सजा
है वरना धकाधक इंग्लिश झाड़ना इनकी आदत है।
हिंदी अभी राष्ट्र भाषा की गरिमा और ताज से दूर है क्योंकि हमारे संविधान ने यह
ताज हिन्दी को नहीं बख्शा है।
हम अंग्रेजी के दीवाने हैं ,जो व्यक्ति फिरंगी भाषा में ऊल जलुल कुछ भी बक देता है
तो हम उसको ऊँचे दर्जे का साहब समझने लग जाते हैं। हम अपनी रगो में हिंदी को
बहने ही नहीं देना चाहते हैं क्योंकि हमें घर का जोगी जोगना और बाहर गाँव का
सिद्ध लगता है।
हिंदी बोलने वाले को आज अच्छी नौकरी और छोकरी नसीब नहीं होती है और ये
दोनों जीवन जीने के लिए जरुरी है। जब भी कोई पढ़ा -लिखा नौजवान किसी
महत्वपूर्ण सभा में राज भाषा में बोलने लग जाए तो कोई ना कोई फुलझड़ी बोल
पड़ती है - हें -हें …हिंदी बोलता तू !!
हमारा भविष्य जब अंग्रेजी में बोलता है तो हम गर्व महसूस करते हैं और सोचते
हैं कि हमारे बुढ़ापे में सुखद समय आने वाला है ,इस मृग तृष्णा से हम बच नहीं
पाते हैं और खुद अपनी खुशियाँ कम करके देश के भविष्य को फिरंगी भाषा के
हवाले कर प्रगती के शिखर को तय करना चाहते हैं। हम बैसाखियों के सहारे चोटी
पर पहुंचना चाहते हैं इसलिए हम अढाई दिन में एक कोस चलते हैं।
हमारे नेता ,वाह! क्या कहना -जब देश का बजट भाषण संसद में पढ़ते हैं तो बड़े
गर्व से इंग्लिश जबान में बोलते हैं ,बेचारा देश उनके चेहरे को देख अपने भाग्य
को फोड़ता है ,हमारे प्रधान संसद में बड़ी सहजता से हिंदी को दरकिनार कर देते
हैं और फिरंगी भाषा में भारत निर्माण की बातें करते हैं। लोकसभा और राज्यसभा
में हिन्दी अपनी माथे की बिन्दी भी सुहागिन आधुनिका के ललाट की बिंदी की तरह
खोती जा रही है।
मुन्शी प्रेमचंद को कौन भारत रत्न देगा और क्यों देगा ? उन्होंने जो कुछ किया देशी
भाषा में किया और देशी का मोल गुलाम आत्माएँ कैसे समझे ?
हम विकास की बातें इंग्लिश में करते हैं और तुर्रा यह ठोकते हैं कि हिंदी अंतर्राष्ट्रीय
भाषा नहीं है इसलिए मज़बूरी में बोलना पड़ता है … वाह रे कपूत !किसे उल्लू बना
रहा है ,इस देश के अगले कदम पर चीन है और वह अपनी भाषा के साथ विकास का
पर्याय बन रहा है,क्या चीन की भाषा विश्व के पल्ले पड़ती भी है ?
फिरंगी भाषा का बेजा फायदा नेता लोग उठा लेते हैं। वो जिनके सामने भाषण करते
हैं ,उनकी बर्बादी पर अंग्रेजी में बोलते हैं और उनसे तालियाँ भी बटोर लेते हैं!
बड़ी मुश्किल से बड़े लोग हिंदी दिवस पर इस तरह बोलते हैं -
"आज हिंदी दीन है,हमे एक भी वर्ड आज अंग्रेजी में नहीं बोलना है ,आज मेरा लेक्चर
हिन्दी के वास्ते हैं ,मैं इस टाइम आपसे वादा करता हूँ कि इण्डिया में हिंदी को डवलप
करने का हार्टली प्रयास करूंगा। बाई ……
हिंदी दिवस है और हिंदी बोलना है ,यह देश चलाने वाले कर्णधारों को एक मिठ्ठी सजा
है वरना धकाधक इंग्लिश झाड़ना इनकी आदत है।
हिंदी अभी राष्ट्र भाषा की गरिमा और ताज से दूर है क्योंकि हमारे संविधान ने यह
ताज हिन्दी को नहीं बख्शा है।
हम अंग्रेजी के दीवाने हैं ,जो व्यक्ति फिरंगी भाषा में ऊल जलुल कुछ भी बक देता है
तो हम उसको ऊँचे दर्जे का साहब समझने लग जाते हैं। हम अपनी रगो में हिंदी को
बहने ही नहीं देना चाहते हैं क्योंकि हमें घर का जोगी जोगना और बाहर गाँव का
सिद्ध लगता है।
हिंदी बोलने वाले को आज अच्छी नौकरी और छोकरी नसीब नहीं होती है और ये
दोनों जीवन जीने के लिए जरुरी है। जब भी कोई पढ़ा -लिखा नौजवान किसी
महत्वपूर्ण सभा में राज भाषा में बोलने लग जाए तो कोई ना कोई फुलझड़ी बोल
पड़ती है - हें -हें …हिंदी बोलता तू !!
हमारा भविष्य जब अंग्रेजी में बोलता है तो हम गर्व महसूस करते हैं और सोचते
हैं कि हमारे बुढ़ापे में सुखद समय आने वाला है ,इस मृग तृष्णा से हम बच नहीं
पाते हैं और खुद अपनी खुशियाँ कम करके देश के भविष्य को फिरंगी भाषा के
हवाले कर प्रगती के शिखर को तय करना चाहते हैं। हम बैसाखियों के सहारे चोटी
पर पहुंचना चाहते हैं इसलिए हम अढाई दिन में एक कोस चलते हैं।
हमारे नेता ,वाह! क्या कहना -जब देश का बजट भाषण संसद में पढ़ते हैं तो बड़े
गर्व से इंग्लिश जबान में बोलते हैं ,बेचारा देश उनके चेहरे को देख अपने भाग्य
को फोड़ता है ,हमारे प्रधान संसद में बड़ी सहजता से हिंदी को दरकिनार कर देते
हैं और फिरंगी भाषा में भारत निर्माण की बातें करते हैं। लोकसभा और राज्यसभा
में हिन्दी अपनी माथे की बिन्दी भी सुहागिन आधुनिका के ललाट की बिंदी की तरह
खोती जा रही है।
मुन्शी प्रेमचंद को कौन भारत रत्न देगा और क्यों देगा ? उन्होंने जो कुछ किया देशी
भाषा में किया और देशी का मोल गुलाम आत्माएँ कैसे समझे ?
हम विकास की बातें इंग्लिश में करते हैं और तुर्रा यह ठोकते हैं कि हिंदी अंतर्राष्ट्रीय
भाषा नहीं है इसलिए मज़बूरी में बोलना पड़ता है … वाह रे कपूत !किसे उल्लू बना
रहा है ,इस देश के अगले कदम पर चीन है और वह अपनी भाषा के साथ विकास का
पर्याय बन रहा है,क्या चीन की भाषा विश्व के पल्ले पड़ती भी है ?
फिरंगी भाषा का बेजा फायदा नेता लोग उठा लेते हैं। वो जिनके सामने भाषण करते
हैं ,उनकी बर्बादी पर अंग्रेजी में बोलते हैं और उनसे तालियाँ भी बटोर लेते हैं!
बड़ी मुश्किल से बड़े लोग हिंदी दिवस पर इस तरह बोलते हैं -
"आज हिंदी दीन है,हमे एक भी वर्ड आज अंग्रेजी में नहीं बोलना है ,आज मेरा लेक्चर
हिन्दी के वास्ते हैं ,मैं इस टाइम आपसे वादा करता हूँ कि इण्डिया में हिंदी को डवलप
करने का हार्टली प्रयास करूंगा। बाई ……
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