रिश्ते के बीच एक श श श होता है । आजकल बीजेपी ने शिवसेना के खिलाफ यही श अपना रखा है । पी एम मोदी कह रहे हैं वे शिव सेना के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे । शिव सेना के लोग बीजेपी के खिलाफ बोलते हुए झिझक तो रहे हैं लेकिन बोल कर रो भी रहे होंगे । दस सीट्स की ही तो बात थी । अब यदि मोदी लहर ने अपना असर दिखा दिया तो क्या होगा ? लेकिन श के दोनों तरफ जो अक्षर बचे हैं वे रिते या कह लें रीते से लगने लगे हैं विशेषकर इन दोनों के सम्बन्ध में । आडवाणी जी को लगा कुछ तो बोला जाए वैसे भी मोदी सरकार में उन्हें वह पद दे दिया गया है जिसमे भ्रष्टाचार के मामले में वे जिस भी सांसद के खिलाफ कुछ करेंगे वही उनके खिलाफ हो जाएगा और यदि कार्यवाही नहीं करेंगे तो मोदी जी को क्या जवाब देंगे ? उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि मोदी का यह मायाजाल किसी मकड़जाल से कम तो नहीं ही होगा । खैर , इधर अब समझ आने लगा है कि शिवसेना भी क्यों मोदी के नाम का पी एम के लिए समर्थन करने से बचती थी । खैर , अब तो जो हो गया उसे भुगतना ही है । यह अफजल कौन है ? अब जो अफजल है तो फिर औरंगजेब कौन है ? मोदी क्या हैं शिवसेना की नजर में ? अफजल या औरंगजेब ? चुनाव क्योंकि बी जे पी लड़ रही है तो अफजल तो मोदी हुए और यदि ऐसा तो क्या अमित शाह औरंगजेब हैं क्योंकि बी जे पी के औरंगजेब तो अमित शाह हैं । खैर , लेकिन यदि मोदी औरंगजेब हैं तो अमित शाह अफजल हैं ? तो शिवाजी को ज्यादा परेशानी अफजल से थी या औरंगजेब से ? निश्चित ही औरंगजेब से । तो फिर शिवसेना को ज्यादा परेशानी किस से है ? मोदी से या अमित शाह से ? तय कर लीजिये । दूसरे का तो पता स्वतः चल जाएगा । एक अफजल वह भी था जिसके नाम पर बी जे पी को बेचारे मनमोहन सिंह जी में भी औरंगजेब दिखाई देता रहा होगा । लेकिन सोच रहा हूँ , यदि भाजपा के लोग अफजल या औरंगजेब हो गए तो ध्रुवीकरण की जरूरत बी जे पी अब भी समझेगी ?
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