स्वच्छता से पवित्रता की ओर
मानव या पशु हर कोई स्वच्छता पसन्द होता है भले ही पवित्रता पसन्द ना भी
करता हो। यह सत्य सार्वभौमिक है। फिर क्या कारण रहा कि जो आर्य पवित्रता
का संदेशवाहक था वह पवित्रता तो भुला ही मगर स्वच्छता भी भूलता चला गया।
आज हम लापरवाह और बेजबाबदार हो चुके हैं हमारी स्वच्छता खुद के शरीर तक
खुद के कमरे या मकान तक सिमित हो गयी है ,सार्वजनिक स्थान की हर जबाबदारी
चाहे वह रखरखाव की हो या स्वच्छता की,हम उसमे अपना कर्तव्य नहीं देखते ;
उसको प्रशासन का कर्त्तव्य मानते हैं।
हम अपने घर का कूड़ा कचरा बाहर सड़क पर इसलिए भी बेहिचक फैंक
देते हैं कि सफाई कर्मचारी को काम मिलता रहे !!हमारी इस सोच के कारण सफाई
कर्मचारी भी कुण्ठित हो अपने काम के प्रति उदासीन हो जाता है क्योंकि वह जानता
है हर दिन ऐसे ही होना है।
हम हवा,जल और पृथ्वी तीनों ही सम्पदा का दुरूपयोग करने में लगे हैं। बड़े पैसे
वाले जमकर प्रदुषण करते हैं जिसका कुफल निचे से मध्यम वर्ग पर सबसे ज्यादा
पड़ता है और हमारा पर्यावरण विभाग कुम्भकर्ण की नींद में रहता है या कभी कभार
खानापूर्ति करके चुप हो जाता है या अपनी जेब में सिक्के का वजन देख अनदेखी
करता रहता है।
हम वर्षो से स्वच्छता पर राष्ट्र के धन को खर्च करके भी आज तक शून्य ही हासिल
कर पाये हैं ,क्यों ? यह प्रशासनिक अव्यवस्था है जो कटु सत्य है इसे मानकर दुरस्त
करने के लिए हमें जबाबदेही तय करनी पड़ेगी,कार्य के प्रति प्रतिबद्धता रखनी पड़ेगी।
सड़को को टॉयलेट आम आदमी क्या चाह करके बनाता है ?नहीं ना। इसके पीछे
का कारण है सार्वजनिक जगहों पर टॉयलेट का अभाव। यह काम किसको करना था ?
क्या उस आम आदमी को जिसके पास पेट भरने तक का साधन नहीं है ?हम फैलती
जा रही गन्दगी के लिए उसे तब तक जिम्मेदार नहीं मान सकते जब तक हम हर
नागरिक की पहुँच तक टॉयलेट ना बनवा दे।
हमारे पास कूड़ा निष्पादन की आधुनिक तकनीक का अभाव है। प्रशासन शहर का
कूड़ा या तो शहर की सीमा पर या समीप के गाँव के पास ढेर लगा देता है। क्या इसे
समाधान कहा जा सकता है ?
स्वच्छता के लिए जरुरी है पवित्रता। पवित्रता मानसिक और आत्मिक विचारों में
भी झलकनी चाहिए और बाहर वातावरण में भी दिखनी चाहिये। कूड़ा -कचरा बाहर
फैलाने या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने से पहले हमें खुद से प्रश्न करना चाहिए कि
क्या मुझे ऐसा करना चाहिये ? जब हम इस प्रक्रिया को शुरू करेंगे तो परिणाम भी
पायेंगे। आइये- हम केवल स्वच्छ ही नहीं पवित्र भारत के निर्माण के लिए स्वयं की
गन्दी आदतों को अभी से बदले और राष्ट्र निर्माण में सहयोगी बनें।
मानव या पशु हर कोई स्वच्छता पसन्द होता है भले ही पवित्रता पसन्द ना भी
करता हो। यह सत्य सार्वभौमिक है। फिर क्या कारण रहा कि जो आर्य पवित्रता
का संदेशवाहक था वह पवित्रता तो भुला ही मगर स्वच्छता भी भूलता चला गया।
आज हम लापरवाह और बेजबाबदार हो चुके हैं हमारी स्वच्छता खुद के शरीर तक
खुद के कमरे या मकान तक सिमित हो गयी है ,सार्वजनिक स्थान की हर जबाबदारी
चाहे वह रखरखाव की हो या स्वच्छता की,हम उसमे अपना कर्तव्य नहीं देखते ;
उसको प्रशासन का कर्त्तव्य मानते हैं।
हम अपने घर का कूड़ा कचरा बाहर सड़क पर इसलिए भी बेहिचक फैंक
देते हैं कि सफाई कर्मचारी को काम मिलता रहे !!हमारी इस सोच के कारण सफाई
कर्मचारी भी कुण्ठित हो अपने काम के प्रति उदासीन हो जाता है क्योंकि वह जानता
है हर दिन ऐसे ही होना है।
हम हवा,जल और पृथ्वी तीनों ही सम्पदा का दुरूपयोग करने में लगे हैं। बड़े पैसे
वाले जमकर प्रदुषण करते हैं जिसका कुफल निचे से मध्यम वर्ग पर सबसे ज्यादा
पड़ता है और हमारा पर्यावरण विभाग कुम्भकर्ण की नींद में रहता है या कभी कभार
खानापूर्ति करके चुप हो जाता है या अपनी जेब में सिक्के का वजन देख अनदेखी
करता रहता है।
हम वर्षो से स्वच्छता पर राष्ट्र के धन को खर्च करके भी आज तक शून्य ही हासिल
कर पाये हैं ,क्यों ? यह प्रशासनिक अव्यवस्था है जो कटु सत्य है इसे मानकर दुरस्त
करने के लिए हमें जबाबदेही तय करनी पड़ेगी,कार्य के प्रति प्रतिबद्धता रखनी पड़ेगी।
सड़को को टॉयलेट आम आदमी क्या चाह करके बनाता है ?नहीं ना। इसके पीछे
का कारण है सार्वजनिक जगहों पर टॉयलेट का अभाव। यह काम किसको करना था ?
क्या उस आम आदमी को जिसके पास पेट भरने तक का साधन नहीं है ?हम फैलती
जा रही गन्दगी के लिए उसे तब तक जिम्मेदार नहीं मान सकते जब तक हम हर
नागरिक की पहुँच तक टॉयलेट ना बनवा दे।
हमारे पास कूड़ा निष्पादन की आधुनिक तकनीक का अभाव है। प्रशासन शहर का
कूड़ा या तो शहर की सीमा पर या समीप के गाँव के पास ढेर लगा देता है। क्या इसे
समाधान कहा जा सकता है ?
स्वच्छता के लिए जरुरी है पवित्रता। पवित्रता मानसिक और आत्मिक विचारों में
भी झलकनी चाहिए और बाहर वातावरण में भी दिखनी चाहिये। कूड़ा -कचरा बाहर
फैलाने या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने से पहले हमें खुद से प्रश्न करना चाहिए कि
क्या मुझे ऐसा करना चाहिये ? जब हम इस प्रक्रिया को शुरू करेंगे तो परिणाम भी
पायेंगे। आइये- हम केवल स्वच्छ ही नहीं पवित्र भारत के निर्माण के लिए स्वयं की
गन्दी आदतों को अभी से बदले और राष्ट्र निर्माण में सहयोगी बनें।
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