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22.4.17

"मई" आ रहा है, न्यौछावर के लिए तैयार हो जाओ डिजाईनर पत्रकारों...

छत्तीसगढ़ में डिजाईनर पत्रकारों की भरमार है। और ये सब "खाने" के लिए ऑलवेज तैयार हैं। तो इससे पहले कोई बड़ा वाला वरिष्ठ, ज्ञानी, निर्भीक, सम्मानीय बुद्धिजीवी "सच्चा पत्रकार" व्यक्तिगत लेकर मुझे डसने लगे, मैं बता दूं मैं तो फर्जी पत्रकार हूं। क्योंकि न गिफ्ट लेता हूं और न प्रेस कॉन्फ्रेंस अटेंड करने मरा जाता हूं। और यह दोनों क्वालिटी तो नींव का पत्थर है एक जुझरु, जनप्रिय पत्रकार बनने के। खैर आदतन मुद्दे पर वापस आते हैं। हां तो मैं कह रहा था कि मई आ रहा है। पिछले साल जैसे इस बार भी न्यौछावर खाने तैयार हो जाओ... इस बार तो सरकार को घेरने मुद्दे भी धांसू धांसू हैं। (ये वाली लाईन आंख मारकर बोली है)
जो नये रंगरूट हैं और बेसब्र हैं "वरिष्ठ पत्रकार" बनने उनको बता दूं पिछले साल गृहमंत्री महोदय ने इन्हीं दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। और करीब 4 दर्जन बोले तो 48 अच्छे वाले मतलब जिनकी कलम की धार कागज के जरिये दिल चीर देती है टाइप "डिजाईनर" पत्रकारों को PC के बाद महंगे वाले सूट प्रदान किये थे। (हमारी इसलिये जल रही क्योंकि हमको नहीं न मिला है) अब वो सूट क्यों दिए गये। और दिए तो लिस्ट में किन "क्वालिटी" वालों को शामिल किया गया यह सब सवाल तो सूट की आस्तीन में दबकर पसीने की मौत मर गये। अभी का सवाल यह की इस बार सूट मिलेगा या किसी नये ब्रांड का नया माल?

तो नेताओं के सगे वाले पत्रकारों... जाओ तो थोड़ी औकात बड़ी करके जाना। तुम लोगों की सस्ती औकात के चलते हमको बेइज्जती फील होती है। अरे इस बार तो मुद्दे भी बहुतै बड़े-बड़े हैं। और एक नहीं कई सारे हैं। खाने में तुम लोग वैसे ही माहिर हो तो बबुआ खाओ तो अच्छा खाओ। और हां क्या खाया ये बताना जरुर। (फिर आंख मारी है)

तुम सबका प्रिय पत्रकार...
आशीष चौकसे और हां... हम राजनीतिक विश्लेषक और ब्लॉगर भी हैं।
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मीडिया में जज्बात की कोई जगह नहीं है। संपादक को काम चाहिए और वो आपको करना ही पड़ेगा।

अलेप्पो में विस्फोट से उत्पन्न भयावक हालात ने जहां एक कैमरामैन के जज्बात से काम लेने पर उसे "नायक" बना दिया। वहीं हिंदुस्तान में ऐसा करोगे तो नौकरी जायेगी। क्योंकि संपादक को काम चाहिए और वो आपको करना ही पड़ेगा। यहां तो बेचारे कैमरामैन पर एक्सक्लूसिव फोटो न लाने पर उल्टी कार्रवाई हो जाती।

आपको याद होगा कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ CM के कार्यक्रम में एक युवक ने खुद को आग लगा ली थी। उस समय पत्रिका का कोई कैमरामैन वहां था जिसने हर मूमेंट की फोटो खींची और उन फोटोज को वेबसाईट और सोशल मीडिया के जरिये प्रधान संपादक ने एक्सक्लूसिव लिखकर ऐसे वाह-वाही लूटी मानो उसने
इस घटना के जरिये रातोंरात CM बदलवा देगा।

दरअसल संपादक वो बंदा होता है जो आपके अच्छे काम का क्रेडिट खुद रखता है। और अपने बुरे का आपके मत्थे चढ़ा देता है। यही वजह है कि न चाहते हुये भी पत्रकार आजकल चांटूकार बनने मजबूर हैं। क्योंकि घर तो चलाना ही है साहब।

Ashish Chouksey
ashishchouksey0019@gmail.com

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