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27.1.18

समय उनका है!


वे हमारा सूरज अपनी जेबों में ठूंस लेते हैं 
हम रात की तारीक घाटियों में ज़िंदगी तलाशते हैं,
वे चमन की सारी खुशबुओं को अपने हम्माम में बंद कर लेते हैं 
और हम.... 
सड़ांध में मुस्काने खोजते हैं,
एक दिन जब भर जाएगा उनका पेट..... 
वे उल्टियां करेंगे शानो-शौकत की 
और हम उनकी उतरन
अपनी तिजोरियों में बंद कर लेंगे,
बाकी नहीं हैं दिन 
और......... रातें भी ख़त्म!
सुई की टिक-टिक उनके इशारों पर नाचती है,
हम...... अपने समय  का इंतज़ार कर रहे हैं!!!!!!
प्रक्षेपण न जाने कब हो जाए,
बंद हो जाए रौशनी
दर्शक दीर्घा में पसर जाए सन्नाटा
आओ एक आवाज़ तलाशें
मरघट में शायद चीत्कार के अर्थ बदल जाएँ।



(Image credit google)

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