Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

30.11.19

मृत्युदंड से कम स्वीकार्य नहीं

किसी भी देश के लिए महिलाओं की स्थिति इस बात का सूचकांक होती है कि वह देश और समाज पतन के रास्ते पर चल रहा है या सामाजिक प्रगति के रास्ते पर। इस दृष्टिकोण से देखें तो भारत का भविष्य उज्जवल दिखाई नहीं देता। तेलंगाना राज्य के हैदराबाद में पशु चिकित्सक 26 वर्षीया डॉ. प्रियंका रेड्डी के साथ जो हृदय विदारक घटना हुई उसकी सजा मृत्युदण्ड से तनिक भी कम स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। हैवानियत की सारी हदें पार कर दरिंदों ने जिस तरह पहले सामूहिक बलात्कार और फिर पुलिस से बचने के लिए जिंदा जलाने का घृणित कार्य किया वह इस बात को दर्शाता है कि महिला सुरक्षा कानून का आज भी वहशियों के भीतर कोई खौफ नहीं है, अन्यथा वर्ष 2012 से लेकर अब तक करीब दो लाख बलात्कार के मामले दर्ज नहीं किये जाते।

उल्लेखनीय है कि 16 दिसम्बर वर्ष 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद उन्नाव, कठुआ, मुजफ्फरपुर के बाद हर दिन कोई न कोई घटनाएं प्रकाश में आती है, जिससे सामाजिक पतन का प्रमाण मिलता है। यह हालात इसलिए भी हैं कि देश की न्याय व्यवस्था आज भी समय से न्याय देने में असमर्थ्य है। निर्भया कांड के दोषियों को भले ही फांसी की सजा सुना दी गई हो मगर फंदा अभी तक उनके गले से दूर है। यदि हम अतीत की गलतियों से सबक ले लेते तो यह समाज गलती दोहराने वाला अपराधी न बनता। मगर दुर्भाग्य है हर बार बलात्कार और जघन्य अपराधों के बाद कुछ दिनों तक चर्चा कर शांत बैठ जाते हैं और अपराधी अगली घटना को अंजाम देता है जो हमारे देश पर कलंक की तरह है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक निर्भया कांड के बाद बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ष 2012 में 24923, वर्ष 2013 में 33707, वर्ष 2014 में 36735, वर्ष 2015 में 34651, वर्ष 2016 में 38947 और वर्ष 2017 में 32539 घटनाएं घटित हुई हैं। प्रशासनिक और सरकारों का तर्क है कि यह घटनाएं पहले भी होती रही हैं मगर जागरूकता की वजह से अब मामले दर्ज होने लगे हैं। चाहे कुछ भी हो यह आंकड़े घटने चाहिए। हर घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है। हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा मुद्दा क्यो नही  बनाता। कन्या पूजन वाला देश महिलाओं को रक्षा देकर उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दे पाएगा?

देश ने 7 वर्ष पूर्व हुए निर्भया कांड के बाद जनता का जो आक्रोश देखा उसने सत्ता तक बदल डाली। लेकिन अब लगता है कि वह जोश और आक्रोश चंद सालों में ही ठंडा पड़ गया। घटना के बाद सोशल मीडिया पर या तो गुस्सा देखने को मिलता है या उससे भी ज्यादा हुआ तो मोमबत्ती जलाकर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर ली जाती है। हैदराबाद की घटना के बाद देश को आंदोलनरत हो जाना चाहिए या पूरे देश में आक्रोश की ज्वाला भड़क जानी चाहिए थी। मगर अफसोस ऐसा कुछ भी नहीं होता।अब समय की मांग है-

"मोमबत्ती नहीं मशाल जलाओ, आंखों से आंसू नहीं अंगारे बरसाओ"


अवनिन्द्र कुमार सिंह
पत्रकार, वाराणसी
9450089691
avanindrsingh3@gmail.com

No comments: